- मध्य प्रदेश के सतना में कुपोषण से चार महीने के बच्चे हुसैन रजा की मौत हुई, जो सिस्टम की नाकामी दर्शाती है
- आंगनबाड़ियों में सामान्य बच्चों को प्रति दिन आठ रुपये और गंभीर कुपोषितों को बारह रुपये का पोषण दिया जाता है
- प्रदेश में तीन महीनों में कुपोषण से तीन बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि दस लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं
मध्य प्रदेश के सतना में हुसैन रजा की हुई मौत ने सबको झकझोर दिया है. कुपोषण से हुई इस बच्चे की मौत ने हमें खुद पर सोचने को मजबूर कर रही है. सरकार कुपोषण पर लाखों खर्च करने का दावा करती है. पर इस मौत ने तो सिस्टम के खर्च पर ही सवाल उठा दिए हैं. आंगनबाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपये और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये रोज़ खर्च दिखाए जाते हैं पर हुसैन की मौत तो इस खर्च पर ही सवाल उठा रही है. 3 महीने में मध्य प्रदेश में कुपोषण से तीसरे बच्चे की मौत हुई है.
सरकार हर दिन बच्चों के पोषण पर लाखों खर्च करने का दावा करती है, आंगनवाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपये और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये रोज़ खर्च दिखाए जाते हैं. लेकिन इन्हीं 8 और 12 रुपयों के बीच, एक और मासूम ज़िंदगी थम गई. सतना के मझगंवा ब्लॉक के मरवा गांव के चार महीने के हुसैन रज़ा ने मंगलवार की रात जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। 3 महीने में मध्यप्रदेश में कुपोषण से तीसरे बच्चे की मौत हुई है .
मैंने आख़िरी बार उसके होंठों पर उंगली रखकर देखा था… सूखे हुए… फट चुके… जैसे रोना भी भूल चुके हों ... नर्स ने कहा “बच्चा बहुत कमज़ोर है, डॉक्टर भी हैरान थे ... मैं बस इतना कह पाई ...
डॉक्टर मशीनें बदलते रहे, ट्यूबें लगाते रहे… पर मेरा बेटा, हुसैन… मेरी उंगलियों में ढलता गया… ढाई किलो की वह एक नन्ही-सी जान… इतनी हल्की कि गोद में नहीं, आत्मा पर रखी-सी लगती थी। चार रातें… PICU की सफ़ेद लाइटों के बीच… मैं देखती रही… उसकी चमड़ी हड्डियों से चिपकी हुई, आँखों में एक बुझा हुआ सवाल ... “अम्मी, मैंने क्या गुनाह किया?” और उस रात वो सवाल भी बंद हो गया…
मैं उसे लायी थी इस खामोश गांव में ... मरवा, मझगांवा ब्लॉक. कहती थी, यहीं पलोगे, खेत की खुशबू में, मिट्टी की गोद में. पर मेरी गोद तो खाली हो गई… और खेतों में खुशबू नहीं, सिर्फ़ धुआं है. इसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, हम घास और पन्नी से बनी झोपड़ी में गुजर-बसर करते हैं. लोग आते हैं… चुप खड़े रहते हैं… कोई आंख बचाकर पूछता है ... दूध नहीं उतरता था क्या? किसे बताऊं कि मेरी छाती में दूध सूखा नहीं था.
आसमां खान, हुसैन की मां ने कहा कि बच्चों को दूध देते थे मुझे कुछ नहीं मिला, कोई पोषण आहार नहीं मिला ... ना पूछा किसी ने ... यहां कोई नहीं आता सर्वे के लिए, डॉक्टर ने कहा था डबल निमोनिया है इलाज कर रहे हैं यह भी नहीं बताया कि बच्चा सीरियस है नहीं तो कहीं और दिखाते हमारा बच्चा वहां खत्म हो गया ... यहां पोषण के लिये जो मिलता है ... दलिया पंजीरी एक बार भी नहीं मिला कुछ नहीं मिला.
वहीं, हुसैन के पिता आमिर खान ने कहा कि जन्म के बाद मेरे बेटे को निमोनिया हो गया था, जिससे उसका वजन लगातार घटता गया. आप हैरान ना हों ये सुनकर चार महीने तक उसे एक भी टीका नहीं लगा था ऐसे में वो बीमारी से लड़ता भी तो कैसे. सरकारी आंकड़ों कहते हैं अकेले सतना ज़िले में 1451 कुपोषित बच्चे हैं, 6484 बच्चों को मध्यम कुपोषित श्रेणी में रखा गया है.लेकिन मेरे पूरे प्रदेश में 10 लाख से ज़्यादा बच्चे कुपोषित हैं.1.36 लाख गंभीर रूप से अप्रैल 2025 में राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गंभीर और मध्यम कुपोषण का औसत 5.40% था, जबकि मध्य प्रदेश में यह दर 7.79% रही.
हुसैन अकेला नहीं था ...
अगस्त में शिवपुरी की दिव्यांशी 15 महीने की थी, वज़न बस 3.7 किलो था.श्योपुर की राधिका डेढ़ साल, वज़न 2.5 किलो था. दोनों ने दम तोड़ दिया. सबकी कहानियां अलग हैं. मौत एक ही है.दूध से पहले व्यवस्था की लापरवाही हमारे बच्चों के मुंह में उतर जाती है.हर साल NRC में बढ़ते नंबर, हर महीने रेड जोन बढ़ाते 45 ज़िले, हर बजट में करोड़ों,और हर गांव में सूखी गोदें.
यहां आशा कार्यकर्ता हैं लेकिन कोई पूछने नहीं आता कि तुम्हारे बच्चे को क्या तकलीफ है कोई नहीं आता पूछने. यहां सुविधा किसी चीज की नहीं है. ना मरीजों को लाभ मिलता है जो गर्भवती है उनको भी कुछ नहीं मिलता है . उनको आयरन की बोतल तक नहीं चढ़ाते, इंजेक्शन लगता है वो तक तो लगवाने आते नहीं है .बच्चों को क्या पूछेगा कोई.पोषण क्या देंगे कुछ नहीं मिलता . कागजों में लिख देते हैं लेकिन देता कोई नहीं है किसी को भी . यहां आंगनबाड़ी भी है लेकिन वहां लिख देते हैं ये मिलेगा वो मिलेगा लेकिन देने कोई नहीं आता है ना बुलाने आता है .यहां की स्थिति ऐसी है कोई लाभ तो मिलता नहीं है ना कार्ड बना .टीका लगवाने जाते हैं तो बहुत वक्त लगता है . खड़े-खड़े पैर दुखने लगता है . दवाई भी अच्छे से नहीं देते .कुछ नहीं मिलता पोषण आहार, गर्भवती हैं लेकिन कुछ नहीं मिलता पोषण आहार में . कुछ नहीं मिलता . टीका नहीं लगता कमजोर हैं खून की कमी है गर्भवती महिलाओं में.
यहां की स्थिति कोई लाभ तो मिलता नहीं है ना कार्ड बन न कुछ बना ना टीका लगवाने जाते हैं तो बहुत वक्त लगता है खड़े-खड़े पैर दुखने लगता है दवाई भी अच्छे से नहीं देते कुछ नहीं मिलता पोषण आहार, गर्भवती है लेकिन कुछ नहीं मिलता पोषण आहार में , कुछ नहीं मिलता, टीका नहीं लगता कमजोर है खून की कमी है.
डॉक्टर बोले हमने कोशिश की, सिस्टम कहेगा निगरानी में कमी थी. फाइलों में लिखा जाएगा एक और केस . इस घटना के बाद खुटहा के मेडिकल ऑफिसर डॉ. एस.पी.श्रीवास्तव, उप स्वास्थ्य केंद्र मरवा की स्वास्थ्य कार्यकर्ता लक्ष्मी रावत, और आशा कार्यकर्ता उर्मिला सतनामी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया गया है. हमारे जिले में 2054 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, हजारों कर्मचारी हैं लेकिन जमीनी स्तर पर न तो बच्चों तक पोषण पहुंच पा रहा है और न ही निगरानी तंत्र सक्रिय है.
महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि कुपोषण विश्व की समस्या है, इसके लिए जागरूकता भी जरूरी है ,हमारा लगातार प्रयास है कि हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में दोनों जगह कुपोषण को कैसे खत्म कर सकें इसके लिए हम और हमारी सरकार पूरी तरीके से लगी हुई है. केंद्र सरकार से हमने मांग की है.जब भी हमारी बात होती है, राज्य सरकार और हम केंद्र सरकार से डिमांड करते हैं ,मुझे लगता है कि केंद्र सरकार इस विषय पर जल्द फैसला लेगी .
पर मैं? मैं क्या लिखूं? क्या नाम दूं उस चीख को... जो मेरे गले में अटकी है, पर निकलती नहीं. मैं अपने बच्चे को दफना आई हूं .अब घर में चूल्हा जलता है . पर आवाज़ नहीं. मेरी बांहें अब भी उसे ढूंढती हैं और सिर्फ़ हवा पकड़ पाती हैं. मैं सवाल नहीं पूछती क्योंकि जवाब कोई देगा ही नहीं. मैं बस… चुप हूँ. पर यह चुप्पी चुप नहीं है ... ये चीख है ... जो आपने सुनी या नहीं… मुझे नहीं पता.
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