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रेंट पर दिया फ्लैट, स्विगी से मंगवाया खाना या म्यूचुअल फंड में किया इंवेस्ट... 150 से 300 रुपये में बिक रहा आपका हर पर्सनल डेटा

डेटा चोरी के इस खेल में हैकर्स अपना डेटासेट कॉल सेंटर, BPO या टेलीमार्केटर्स को बेच रहे हैं. ये जानकारी उनके लिए एक सोने की चिड़ियां बन गई है. वहीं, इससे आपकी प्राइवेसी और सिक्योरिटी को गहरा खतरा है.

रेंट पर दिया फ्लैट, स्विगी से मंगवाया खाना या म्यूचुअल फंड में किया इंवेस्ट... 150 से 300 रुपये में बिक रहा आपका हर पर्सनल डेटा
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:

आजकल दुनिया सोशल मीडिया, ऐप्स में सिमटती जा रही है. घर का खाना पसंद नहीं आ रहा, तो स्विगी-जोमाटो से ऑनलाइन ऑर्डर कर लीजिए. वीकेंड का मज़ा लेना है, तो नेटफ्लिक्स-प्राइम वीडियो सब्सक्राइव कर फिल्में और वेबसीरीज देखिए. दोस्तों से बात करनी हैं तो स्नैप चैट, फेसबुक और न जाने कितने प्लेटफॉर्म हैं. घर खरीदना है या फ्लैट किराये पर चढ़ाना है... उसके लिए भी ऑनलाइन डिलिंग की जा सकती है. अपने मोबाइल फोन से तो आप घर बैठे मार्केट में पैसा लगा सकते हैं और जब चाहें निकाल भी सकते हैं. ये सब काम करने के लिए हमें अपने मोबाइल में डेटा की जरूरत पड़ती है. लेकिन अब यही डेटा पूरी दुनिया में प्राइवेसी और सिक्योरिटी का बड़ा मुद्दा बन गया है.

गूगल-फेसबुक जैसी ग्लोबल कंपनियों को इस मुद्दे पर अमेरिकी संसद में जवाब देना पड़ रहा है, लेकिन भारत में इस बेशकीमती डेटा की कीमत चंद पैसों में सिमटकर रह गई है. आपको हैरानी होगी कि सिर्फ 150 से 300 रुपये देकर किसी का भी मोबाइल नंबर, ईमेल और यहां तक कि घर का पता तक हासिल किया जा सकता है. 

डेटा आज के समय में बेहद अहम चीज हो गई है. इंटरनेट के सहारे आप रोजमर्रा के जो भी काम करते हैं, उन सब पर हैकर्स की नजर है. चाहे अपना मकान किराये पर दे रहे हों या फिर फ्लैट बेच रहे हों. स्विगी-जोमाटो से खाना ऑर्डर कर रहे हों या फ्लाइट से सफर कर रहे हों... ये सबकुछ हैकर्स की निगाह है. आपके ब्रॉडबैंड कनेक्शन की रिक्वेस्ट, कार इंश्योरेंस खत्म होने की डेट और यहां तक कि आपके म्यूचुअल फंड की डिटेल... हैकर्स ये सारी जानकारियां चुरा रहे हैं और बेच रहे हैं. 'इकनॉमिक टाइम्स' की एक इंवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग में ये बात सामने आई है. 

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डेटा चोरी के इस खेल में हैकर्स अपना डेटासेट कॉल सेंटर, BPO या टेलीमार्केटर्स को बेच रहे हैं. ये जानकारी उनके लिए एक सोने की चिड़ियां बन गई है. वहीं, इससे आपकी प्राइवेसी और सिक्योरिटी को गहरा खतरा है.

कैसे चोरी होता है डेटा?
एक टेलीमार्केटिंग कंपनी अपने कर्मचारी को सुबह 9 बजे 70-100 फोन नंबरों की एक लिस्ट देती है. इसमें वे लोग शामिल होते हैं जिन्होंने हाल ही में किसी अपार्टमेंट में प्रॉपर्टी खरीदी या फ्लैट बेचा हो. या फिर किराए पर मकान लिया हो. ये कर्मचारी इन नंबरों पर कॉल करके संभावित ग्राहक ढूंढते हैं. अगर वे अच्छे लीडस् ढूंढते हैं, तो उन्हें इंसेंटिव मिलता है. जब बात नहीं बनती, तो टेलीमार्केटिंग के कर्मचारी नई-नई तरकीबें अपनाते हैं. वे नए अपार्टमेंट्स में जाकर सिक्योरिटी गार्ड्स को टिप देते हैं और इसके एवज में विजिटर्स रजिस्टर की तस्वीरें खींचते हैं. 

ऑनलाइन रियल-एस्टेट प्लेटफॉर्म्स बेच देते हैं डेटा
इस सटीक जानकारी को वे ऑनलाइन रियल-एस्टेट प्लेटफॉर्म्स को बेचते हैं, जो इस डेटा का इस्तेमाल इंटीरियर डिजाइनर्स, ब्रोकर, प्रॉपर्टी डीलर्स, हाउसकीपिंग एजेंसियों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को लीड्स प्रदान करने के लिए करते हैं. इसके बदले में कर्मचारी को प्रति डेटा सेट 10,000 रुपये तक मिल सकते हैं. इसी तरह आपका पर्सनल डेटा चोरों के हाथों में पहुंचकर विभिन्न कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. 

ढाई हजार में मिलता है क्रेडिट कार्ड का डेटा
पर्सनल इंफॉर्मेंशन के साथ ही आपकी बैंकिंग डिटेल्स, आधार और पैन कार्ड का डेटा भी मार्केट में उपलब्ध है. यहां तक कि आपने मार्केट में कहां पैसा लगाया है, कौन से शेयर खरीदे या बेचे हैं? इसकी इंफोर्मेशन भी बेची जा रही है. ऑनलाइन ठगी करने के लिए हैकर इनका ही इस्तेमाल करते हैं. डेटा माफिया हमेशा ई-मेल, वेब, फोन कॉल या फिर व्हाट्सऐप के जरिए डील करते हैं. आपका नाम, मोबाइल नंबर, पता, पहचान पत्र केवल 5 पैसे में मिल जाता है. वहीं, एक क्रेडिट कार्ड के डेटा का रेट 35 डॉलर यानी ढाई हजार रुपये है.

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बिटकॉइन के जरिए बेचा जा रहा डेटा
डेटा डार्क वेब पर क्रिप्टो करेंसी बिटकॉइन के जरिए अघोषित कीमत पर बेचा जा रहा है. इस डेटा के लिए हैकर भी टेलीग्राम के जरिए संपर्क कर रहे हैं. जसपे यूजर्स के डेटा स्टोर करने में पेमेंट कार्ड इंडस्ट्री डेटा सिक्योरिटी स्टैंडर्ड (PCIDSS) का पालन करती है. अगर हैकर कार्ड फिंगरप्रिंट बनाने के लिए हैश अल्गोरिथम का इस्तेमाल कर सकते हैं, तो वे मास्कस्ड कार्ड नंबर को भी डिक्रिप्ट कर सकते हैं. इससे 10 करोड़ कार्ड होल्डरों के अकाउंट को खतरा हो सकता है.

डेटा प्रोटेक्शन के लिए भारत में क्या है कानून?
डेटा चोरी के इस खतरनाक खेल से बचना भी बहुत जरूरी हो गया हैं. इससे बचने के लिए कई सारे कदम हैं, जो उठाये जा सकते हैं. इसमें पहला कदम आपकी अपनी सावधानी और डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट पर सख्ती से अमल जरूरी है. ये एक्ट नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाता है, जिससे डेटा कंट्रोलर अधिक सावधान रहेंगे. देश में डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के मुताबिक, कोई संस्था किसी व्यक्ति का डेटा इकट्ठा तो कर सकती है, लेकिन बिना अनुमति बेचना जुर्म है.

क्या है डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023?
इस एक्ट के तहत लोगों को अपने डेटा से जुड़ी कई जानकारी मांगने का अधिकार मिला है. इसके अलावा, कंपनियों को यह बताना होगा कि वे कौन सा डेटा ले रही हैं और उसका इस्तेमाल किस तरह से कर रही हैं. इस बिल में डेटा संरक्षण नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना 250 करोड़ रुपये तक लगाया जा सकता है. 

अगर डेटा चोरी हुई और आपने शिकायत दर्ज कराई है, तो आईटी एक्ट की धारा 43, 72, और 72ए के तहत डेटा चोरी से जुड़ी कार्रवाई की जा सकती है. 

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