दिल्ली, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश समेत पूरा उत्तर भारत और उत्तर पश्चिम इन दिनों भीषण गर्मी (Today's Weather Update) की चपेट में है. ज्यादातर हिस्सों में तापमान 45 के पार चला गया है. उमस (Humidity) और लू के थपेड़े (Excessive Heat)अब लोगों के लिए बर्दाश्त से बाहर हो रहे हैं. 25 मई से नौतपा की भी शुरुआत हो चुकी है, जो 2 जून तक रहेगा. इस दौरान गर्मी रोज नए रिकॉर्ड बनाएगी. भीषण गर्मी के बीच उत्तर पश्चिम में 17 स्थानों पर तापमान 48 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. हरियाणा के सिरसा में तापमान 48.4 डिग्री दर्ज किया गया. राजस्थान में लू के मरीजों की संख्या सोमवार को 2809 से बढ़कर 3622 हो गई. बेंगलुरु-मुंबई और हैदराबाद का भी यही हाल है. आइए जानते हैं कि दिल्ली समेत इन शहरों में इतनी उमस क्यों हो रही है? आखिर क्यों ये शहर आग की भट्टी बनते जा रहे हैं.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक दशक की तुलना में अब भारतीय महानगरों में रात का तापमान ज्यादा नहीं गिर रहा है, जिसके चलते रातें ठंडी नहीं हो रही हैं. CSE ने जनवरी 2001 से लेकर अप्रैल 2024 तक देश के छह महानगरों दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई और कोलकाता के डेटा की स्टडी की. इस दौरान हीटवेव, सरफेस टेंपरेचर और ह्यूमिडिटी (उमस) लेवल में आए बदलावों को रिव्यू किया गया.
10 साल में 6 मेट्रो शहरों में कितनी बढ़ी आर्द्रता
CSE के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 साल में औसत सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) यानी हवा में जल वाष्प की मात्रा का माप 2001-10 के औसत की तुलना में काफी बढ़ गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु को छोड़ दें, तो बाकी 5 मेट्रो सिटी के RH में 5-10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. हैदराबाद में पिछले 10 साल में 2001-10 की तुलना में औसतन 10% अधिक आर्द्रता रही है. दिल्ली की बात करें, तो पिछले 10 साल में यहां 8% अधिक आर्द्रता रही है. दूसरी ओर, मुंबई की सापेक्ष आर्द्रता 7% बढ़ी है, जबकि कोलकाता और चेन्नई में गर्मियों में औसतन 5% अधिक आर्द्रता रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु में गर्मियों के दौरान आर्द्रता के स्तर में कोई बदलाव नहीं देखा गया. RH बढ़ने की वजह से ही आम लोगों को भयंकर हीटवेव के संकट से जूझना पड़ रहा है.
बढ़ते तापमान और उमस का असर जानलेवा
CSE की अर्बन लैब के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी बताते हैं, "बढ़ते तापमान और उमस के चलते मानव शरीर में पसीने का वाष्पीकरण नहीं हो पा रहा है. उस वजह से शरीर की जो खुद अपने आप को ठंडा करने की प्रक्रिया थी, वो नहीं हो पा रही है. शरीर में गर्मी संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं. इसका असर जानलेवा हो सकता है."
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हीटवेव में भी साल दर साल आया फर्क
भारत में हीटवेव ने शहर का ताप प्रभाव खराब कर दिया है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के प्रोग्राम एग्जिक्यूटिव शरणजीत कौर ने बताया कि शहरों में भीषण गर्मी की वजह उच्च तापमान और आर्द्रता है. उन्होंने कहा, "आमतौर पर हीटवेव मार्च और जुलाई के बीच होती हैं, लेकिन आजकल हम गर्मी की तुलना में अधिक आर्द्रता देख रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप गर्मी बढ़ रही है. रात का तापमान भी ठंडा नहीं हो रहा. क्योंकि कंक्रीट के स्ट्रक्चर दिन के दौरान गर्मी को अब्सॉर्ब (अवशोषित) कर लेती हैं और फंसकर रह जाती है. लिहाजा रात में भी गर्म हवाओं का एहसास होता है.
प्री-मॉनसून और मॉनसून के बीच भी बदला ट्रेंड
CSE की स्टडी के मुताबिक, 2001-10 के दौरान दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में प्री-मॉनसून और मॉनसून के बीच तापमान बढ़ता था. लेकिन हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई में प्री-मॉनसून और मॉनसून के बीच तापमान में गिरावट आती थी. अब ये ट्रेंड बदल गया है. पिछले 10 साल में दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में मॉनसून पहले की तुलना में ज्यादा गर्म हो गया है. चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में ऐसा नहीं है. कुल मिलाकर 2001-10 की तुलना में मॉनसून औसतन 1 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गया है.
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सरफेस टेंपरेचर का भी असर
रिपोर्ट के मुताबिक, भीषण गर्मी के पीछे सरफेस टेंपरेचर का भी असर है. इससे सूरज ढलने के बाद भी शहर का तापमान कम नहीं होता है, बल्कि इमारतों के बीच फंसा उत्सर्जन वातावरण में घुलकर तापमान को और अधिक गर्म करता है. लिहाजा दिन में भट्टी की तरह जलने के बाद रात में भी ये शहर तपते हैं.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सरफेस टेंपरेचर हीट स्ट्रेस को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन 3.3 डिग्री सेल्सियस हीट स्ट्रेस बढ़ रहा है. दिल्ली में ऐसा ही हो रहा है. इसी वजह से दिल्ली में रात में भी ठंडक का एहसास नहीं हो रहा. दिन और रात के बीच लैंड सरफेस टेंपरेचर 9% कम हो रहा है.
शहरीकरण से 60% तक गर्म हुए शहर
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अकेले शहरीकरण ने भारतीय शहरों में गर्मी को 60% तक बढ़ा दिया है. उनके मुताबिक, पूर्वी भारत के टियर-2 शहर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इसका मतलब है कि शहरों में बढ़ता कंक्रीट और जमीन के इस्तेमाल में आता बदलाव अतिरिक्त गर्मी पैदा कर रहा है.
शहरों में ज्यादा पाई जाने वाली सड़कों और बिल्डिंगों में डमर, कंक्रीट का इस्तेमाल होता है. ये ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा गर्मी सोखते हैं. इसके कारण शहरों में बड़े पैमाने में इस्तेमाल किए जाने वाले कंक्रीट में ज्यादा गर्मी सहन करने की क्षमता होती है. इस वजह से दिल्ली समेत ये बड़े शहर हीट स्ट्रेस की चपेट में आ रहे हैं.
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मशीनों से भी बढ़ रही गर्मी
मानव जनित गर्मी और वायु प्रदूषण शहरों में गर्मी ज्यादा होने का भी एक कारण है. मानव जनित गर्मी गाड़ियों और इमारतों (पंखा, कंप्यूटर, फ्रिज और एयर कंडीशन) द्वारा पैदा होती है. इसे भी कम करने की जरूरत है.
हीटवेव मैनेजमेंट प्लान की जरूरत
CSE ने आगाह किया है कि हीटवेव के संकट से निपटने के लिए देश के हर प्रभावित राज्य और शहर में एक हीटवेव मैनेजमेंट एक्शन प्लान तत्काल लागू करने की जरूरत है. इससे आम लोगों को हीटवेव के संकट से बचाया जा सके. इसके तहत कंस्ट्रक्शन सेक्टर या आउटडोर में काम करने वाले मजदूरों और वर्करों के काम के घंटे में बदलाव करना बेहद जरूरी बताया गया है. इसके साथ ही सार्वजनिक स्थलों पर पीने के पानी की सुविधा बढ़ाने के लिए भी पहल करने पर जोर दिया गया है.
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