नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले सप्ताह 500 और 1,000 रुपये के नोटों पर अचानक लगाई गई पाबंदी से उत्तर प्रदेश में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को फायदा मिलेगा. यह कहना है कुछ विपक्षी नेताओं तथा चुनाव विश्लेषकों का.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप माथुर का कहना है, "हमें पूरी चुनावी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी..." उन्होंने यह भी कहा कि 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद हो जाने की वजह से अब उनकी पार्टी को छोटी रैलियां आयोजित करनी पड़ेंगी, और वोटरों के लिए 'तोहफे' भी कम हो जाएंगे.
प्रदीप माथुर की टिप्पणी से ऐसे संकेत मिलते हैं कि अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में ज़्यादा सदस्य संख्या वाली और कथित रूप से बड़े कॉरपोरेट 'दानदाताओं' से करीबी संबंध रखने वाली बीजेपी इस नकदी संकट से निपटने में ज़्यादा सक्षम है, जिससे उसे उत्तर प्रदेश में जीतने में मदद मिलेगी, और यूपी की यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय पाने की योजना में खासा महत्व रखती है.
प्रचार अभियानों की फंडिंग पर नज़र रखने वाले दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस) के मुताबिक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कुल फंडिंग के दो-तिहाई से भी कम के लिए बीजेपी नकदी पर निर्भर है, जबकि माना जाता है कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे क्षेत्रीय दल अपने प्रचार पर होने वाले कुल खर्च के 80 से 95 प्रतिशत हिस्से के लिए नकदी पर निर्भर करते हैं.
वाशिंगटन स्थित कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ मिलन वैष्णव ने कहा, "आकलन है कि इससे सभी को नुकसान होगा, लेकिन अगर तुलनात्मक रूप से देखें, तो बीजेपी ज़्यादा मजबूती से इससे बाहर आ सकेगी..."
चुनावों के लिए सरकारी फंडिंग नहीं होने के चलते गैरकानूनी नकदी ही राजनैतिक दलों के काम आती है, जो वे प्रत्याशियों और समर्थक व्यापारियों से एकत्र करती हैं, और फिर वही नकदी रैलियों के आयोजन, हेलीकॉप्टरों के इंतज़ाम और वोट पाने की खातिर 'तोहफे' बांटने में खर्च की जाती है.
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक की गई विमुद्रीकरण की घोषणा को अब तक भ्रष्टाचार से परेशान रहे ज़्यादातर वोटरों द्वारा सराहा गया है, लेकिन अर्थशास्त्रियों तथा आबादी के एक हिस्से में इस कदम की निष्पक्षता और प्रभाव को लेकर अलग-अलग मत भी सामने आए हैं.
इस कदम के बाद से बैंकों और एटीएम के सामने लगीं लंबी-लंबी लाइनों को लेकर सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सरकार पर हमला बोल रहे हैं. उन्होंने बुधवार को संसद में आरोप भी लगाया कि बड़े व्यापारियों तथा बीजेपी के कुछ पदाधिकारियों को पहले ही नोटबंदी के फैसले की जानकारी दे दी गई थी, हालांकि सरकार ने ज़ोरदार तरीके से इस आरोप का खंडन करते हुए इसे आधारहीन बताया है.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं ताकतवर नेता और बसपा प्रमुख मायावती का कहना है कि नोटबंदी का समय पूरी तरह राजनैतिक लगता है. कई दशक से अन्य पार्टियां मायावती पर पार्टी टिकट के बदले प्रत्याशियों से पैसा लेकर अपनी फंडिंग के लिए काला धन जमा करने का आरोप लगाती आई हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी तथा मायावती के करीबी ने समाचार एजेंसी रॉयटर को बताया कि उनकी पार्टी की कुछ रैलियां रद्द कर दी जाएंगी, और उसके स्थान पर घर-घर जाकर प्रचार ज़्यादा किया जाएगा. अधिकारी ने कहा, "पिछले महीने हमें पूरे यूपी से 300,000 ग्रामीणों को एक दिन के लिए लखनऊ लाना पड़ा था... और सिर्फ हम नहीं, वोट जीतने के लिए हर पार्टी निचले स्तर पर इसी तरह पैसा खर्च करती है..."
इस वक्त राज्य में सत्तासीन समाजवादी पार्टी के मथुरा के नेता अशोक अग्रवाल ने कहा कि उन्हें वोटरों से संपर्क करने के लिए अब 1,000 वॉलंटियरों की अपनी टीम पर निर्भर रहना पड़ेगा. रॉयटर के अनुसार, शहर में अलग-अलग पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने बताया है कि राजनैतिक दल कार्यकर्ताओं को बैंकों में पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए लगी लंबी-लंबी लाइनों में खड़े रहने के लिए पैसे दे रही हैं, ताकि टैक्स इंस्पेक्टरों की नज़रों में आए बिना नए नोट जुटाए जा सकें.
इन दिनों वे ईवेंट मैनेजर भी चिंतित दिख रहे हैं, जिनका कामकाज आमतौर पर चुनाव के दिनों में काफी फलता-फूलता है. पिछले 10 साल से लाउड स्पीकरों, आउटडोर एयरकंडीशनरों तथा रैलियों में सुरक्षा की व्यवस्था करने के कारोबार में लगे राजेश प्रताप का कहना है, "बीजेपी के अलावा कोई भी राजनैतिक दल जनवरी से पहले बड़ी रैली आयोजित नहीं करना चाहता... सभी पार्टियां नकदी पर निर्भर हैं..."
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण या नोटबंदी के फैसले को सीधे-सीधे चुनावी फंडिंग को 'साफ' करने से नहीं जोड़ा है, लेकिन रॉयटर के मुताबिक, बीजेपी के ही कुछ पदाधिकारियों (जिनके नाम रॉयटर ने नहीं बताए) ने कहा है कि प्रतिद्वंद्वियों को इसी साल इससे पहले पीएम द्वारा दी गई चेतावनियों को सुनना चाहिए था कि वह 'काले धन' पर शिकंजा कसने के प्रति गंभीर हैं.
सीएमएस के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2014 के चुनाव में पार्टियों ने रिकॉर्ड 37,000 करोड़ रुपये खर्च किए थे. पार्टियां लंबे समय से नियमों से बचने और नकदी के बिना काम चलाने के रास्ते खोज चुकी थीं - रैलियों के लिए सीधे 'दान देने वालों' से ही भुगतान करवा दिया जाता था, या वोटरों को रिझाने के लिए मोबाइल फोन रीचार्ज जैसे 'तोहफों' का खर्च स्थानीय व्यापारी कर दिया करते थे.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप माथुर का कहना है, "हमें पूरी चुनावी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी..." उन्होंने यह भी कहा कि 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद हो जाने की वजह से अब उनकी पार्टी को छोटी रैलियां आयोजित करनी पड़ेंगी, और वोटरों के लिए 'तोहफे' भी कम हो जाएंगे.
प्रदीप माथुर की टिप्पणी से ऐसे संकेत मिलते हैं कि अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में ज़्यादा सदस्य संख्या वाली और कथित रूप से बड़े कॉरपोरेट 'दानदाताओं' से करीबी संबंध रखने वाली बीजेपी इस नकदी संकट से निपटने में ज़्यादा सक्षम है, जिससे उसे उत्तर प्रदेश में जीतने में मदद मिलेगी, और यूपी की यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय पाने की योजना में खासा महत्व रखती है.
प्रचार अभियानों की फंडिंग पर नज़र रखने वाले दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस) के मुताबिक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कुल फंडिंग के दो-तिहाई से भी कम के लिए बीजेपी नकदी पर निर्भर है, जबकि माना जाता है कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे क्षेत्रीय दल अपने प्रचार पर होने वाले कुल खर्च के 80 से 95 प्रतिशत हिस्से के लिए नकदी पर निर्भर करते हैं.
वाशिंगटन स्थित कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ मिलन वैष्णव ने कहा, "आकलन है कि इससे सभी को नुकसान होगा, लेकिन अगर तुलनात्मक रूप से देखें, तो बीजेपी ज़्यादा मजबूती से इससे बाहर आ सकेगी..."
चुनावों के लिए सरकारी फंडिंग नहीं होने के चलते गैरकानूनी नकदी ही राजनैतिक दलों के काम आती है, जो वे प्रत्याशियों और समर्थक व्यापारियों से एकत्र करती हैं, और फिर वही नकदी रैलियों के आयोजन, हेलीकॉप्टरों के इंतज़ाम और वोट पाने की खातिर 'तोहफे' बांटने में खर्च की जाती है.
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक की गई विमुद्रीकरण की घोषणा को अब तक भ्रष्टाचार से परेशान रहे ज़्यादातर वोटरों द्वारा सराहा गया है, लेकिन अर्थशास्त्रियों तथा आबादी के एक हिस्से में इस कदम की निष्पक्षता और प्रभाव को लेकर अलग-अलग मत भी सामने आए हैं.
इस कदम के बाद से बैंकों और एटीएम के सामने लगीं लंबी-लंबी लाइनों को लेकर सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सरकार पर हमला बोल रहे हैं. उन्होंने बुधवार को संसद में आरोप भी लगाया कि बड़े व्यापारियों तथा बीजेपी के कुछ पदाधिकारियों को पहले ही नोटबंदी के फैसले की जानकारी दे दी गई थी, हालांकि सरकार ने ज़ोरदार तरीके से इस आरोप का खंडन करते हुए इसे आधारहीन बताया है.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं ताकतवर नेता और बसपा प्रमुख मायावती का कहना है कि नोटबंदी का समय पूरी तरह राजनैतिक लगता है. कई दशक से अन्य पार्टियां मायावती पर पार्टी टिकट के बदले प्रत्याशियों से पैसा लेकर अपनी फंडिंग के लिए काला धन जमा करने का आरोप लगाती आई हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी तथा मायावती के करीबी ने समाचार एजेंसी रॉयटर को बताया कि उनकी पार्टी की कुछ रैलियां रद्द कर दी जाएंगी, और उसके स्थान पर घर-घर जाकर प्रचार ज़्यादा किया जाएगा. अधिकारी ने कहा, "पिछले महीने हमें पूरे यूपी से 300,000 ग्रामीणों को एक दिन के लिए लखनऊ लाना पड़ा था... और सिर्फ हम नहीं, वोट जीतने के लिए हर पार्टी निचले स्तर पर इसी तरह पैसा खर्च करती है..."
इस वक्त राज्य में सत्तासीन समाजवादी पार्टी के मथुरा के नेता अशोक अग्रवाल ने कहा कि उन्हें वोटरों से संपर्क करने के लिए अब 1,000 वॉलंटियरों की अपनी टीम पर निर्भर रहना पड़ेगा. रॉयटर के अनुसार, शहर में अलग-अलग पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने बताया है कि राजनैतिक दल कार्यकर्ताओं को बैंकों में पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए लगी लंबी-लंबी लाइनों में खड़े रहने के लिए पैसे दे रही हैं, ताकि टैक्स इंस्पेक्टरों की नज़रों में आए बिना नए नोट जुटाए जा सकें.
इन दिनों वे ईवेंट मैनेजर भी चिंतित दिख रहे हैं, जिनका कामकाज आमतौर पर चुनाव के दिनों में काफी फलता-फूलता है. पिछले 10 साल से लाउड स्पीकरों, आउटडोर एयरकंडीशनरों तथा रैलियों में सुरक्षा की व्यवस्था करने के कारोबार में लगे राजेश प्रताप का कहना है, "बीजेपी के अलावा कोई भी राजनैतिक दल जनवरी से पहले बड़ी रैली आयोजित नहीं करना चाहता... सभी पार्टियां नकदी पर निर्भर हैं..."
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण या नोटबंदी के फैसले को सीधे-सीधे चुनावी फंडिंग को 'साफ' करने से नहीं जोड़ा है, लेकिन रॉयटर के मुताबिक, बीजेपी के ही कुछ पदाधिकारियों (जिनके नाम रॉयटर ने नहीं बताए) ने कहा है कि प्रतिद्वंद्वियों को इसी साल इससे पहले पीएम द्वारा दी गई चेतावनियों को सुनना चाहिए था कि वह 'काले धन' पर शिकंजा कसने के प्रति गंभीर हैं.
सीएमएस के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2014 के चुनाव में पार्टियों ने रिकॉर्ड 37,000 करोड़ रुपये खर्च किए थे. पार्टियां लंबे समय से नियमों से बचने और नकदी के बिना काम चलाने के रास्ते खोज चुकी थीं - रैलियों के लिए सीधे 'दान देने वालों' से ही भुगतान करवा दिया जाता था, या वोटरों को रिझाने के लिए मोबाइल फोन रीचार्ज जैसे 'तोहफों' का खर्च स्थानीय व्यापारी कर दिया करते थे.
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