कुतुब मीनार मामले में साकेत कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. 9 जून को फैसला आएगा.साकेत कोर्ट ये तय करेगा कि कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदू और जैन देवी-देवताओं की बहाली और पूजा का अधिकार दिया जाए या नहीं. इससे पहले सिविल जज याचिका को खारिज कर चुका है, जिसके फैसले को अतिरिक्त जिला जज की अदालत में चुनौती दी गई थी. मामले में साकेत कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई शुरू की. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने दलील दी कि हमारी तीन अपील हैं जिसे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने ख़ारिज किया था. हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि 27 मंदिर को तोड़ कर यहाँ कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई है. जैन ने अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा कि उसके तहत ही कुतुब मीनार परिसर को स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था. मुस्लिमों ने यहां कभी नमाज़ नहीं अदा की. मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कर इस्लाम की ताकत दिखाना चाहते थे. इस्लाम के उसूलों के मुताबिक नमाज अदा करने के लिए मुसलमान इसका इस्तेमाल कभी नहीं करते. सुनवाई के दौरान एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज निखिल चोपड़ा ने याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन से पूछा, 'आप कोर्ट से क्या राहत चाहते हैं? क्या आप परिसर के कैरेक्टर को बदलना चाहते हैं? ' इस पर जैन ने कहा कि हम पूजा का अधिकार चाहते हैं क्योंकि मुख्य देवता तीर्थंकर ऋषभदेव और भगवान विष्णु के सहित 27 देव मंदिर कुतुबुद्दीन ऐबक तोड़कर ये ढांचा बनाया गया है. कोर्ट आदेश देगा तभी ASI अपने नियमों में ढील दे सकता है.
जज ने पूछा कि आप किस कानून के तहत यहां पूजा का अधिकार मांग रहे है? इस पर मॉन्यूमेंट एक्ट का हवाला देते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि हम कोई मंदिर निर्माण नहीं चाहते. बस पूजा का अधिकार चाहते हैं. इस पर जज ने पूछा कि आप इसे किस आधार पर बहाल करने का दावा कर रहे हैं? इस पर जैन ने कहा कि स्मारक के चरित्र के मुताबिक तो वहां पूजा होनी चाहिए. राममंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है. एक बार देवता की संपत्ति, हमेशा एक देवता की संपत्ति होती हैं. देवता की दिव्यता कभी मिटती नहीं. मंदिर के विध्वंस के बाद भी देवता और मंदिर की पवित्रता और देवत्व कभी नष्ट नहीं होता. अगर मूर्ति तोड़ भी दी जाए या हटा दी जाए तो भी वहां मंदिर माना जाता है. कुतुब परिसर में अभी भी अलग अलग देवी देवताओं की मूर्तियां है. साथ ही एक लौह स्तंभ है. जो कम से कम 1600 साल पुरानी संरचना है. उस मिश्र धातु के स्तम्भ पर पौराणिक लिपि संस्कृत में श्लोक भी लिखें हैं. हमें वहां पूजा की इज़ाज़त दी जाए
ADJ निखिल चोपड़ा ने पूछा कि यदि देवता पिछले 800 वर्षों से बिना पूजा के वहां पर हैं तो रहने दें तो जैन ने जवाब दिया कि मूर्ति का अस्तित्व तो वहा विद्यमान है. मूर्ति तो है लेकिन असली सवाल पूजा के अधिकार का है. सवाल यह है कि क्या अपीलकर्ता के मौलिक अधिकारों से इनकार किया जा सकता है? संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मेरे अपने धार्मिक रीति रिवाजों के मुताबिक पूजा करने के संवैधानिक अधिकार का हनन हो रहा है. ADJ निखिल चोपड़ा ने याचिकाकर्ता से पूछा कि अदालत क्या राहत दे सकती है ? कैसे करेक्टर बदला जा सकता है तो जैन ने कहा कि हम पूजा का अधिकार चाहते हैं क्योंकि मुख्य देवता तीर्थंकर ऋषभदेव और भगवान विष्णु के सहित 27 देव मंदिर कुतुबुद्दीन ऐबक तोड़कर ये ढांचा बनाया गया है. कोर्ट आदेश देगा तभी ASI अपने नियमों में ढील दे सकता है. अपने धर्म और आस्था के अनुसार पूजा का अधिकार हमारा मौलिक अधिकार है. अदालत हमारे उस अधिकार की सुरक्षा करे बहाल करे. अदालत ने पूछा कि क्या ऐसा कोई कानून है जो कहता है कि पूजा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है? मूर्तियां तो वहां हमेशा से रही हैं.ASI ने भी साफ कर दिया कि उन्हें नहीं हटाया जाएगा. आप बस साफ करे कि पूजा अर्चना के अधिकार का क्या क़ानूनी आधार है? इस पर हरिशंकर जैन ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसके मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है. अयोध्या मामले में दिए फैसले में साफ है कि देवता की उपस्थिति हमेशा विद्यमान मानी जाती है तो उनकी पूजा अर्चना का अधिकार भी हमेशा के लिए सुरक्षित है. इस पर प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट इस पर लागू नहीं होता. कोर्ट ने पूछा कि वर्शिप एक्ट का उद्देश्य क्या है?
जैन ने कहा कि पूजा स्थल कानून पुरातात्विक संरक्षित स्मारकों पर लागू नहीं होता. लिहाजा उनके दावे पर इस कानून का कोई असर नहीं है.ये स्थल और उनकी याचिका इस कानून के दायरे से बाहर है. इसमें कोई धार्मिक विवाद भी नहीं है क्योंकि मुसलमानों ने पिछले 800 सालों से नमाज अदा ही नहीं की है. कोर्ट ने पूछा कि तो आप ये कहना चाहते हैं कि स्मारक होने की वजह से 800 साल का समय निकलने के बावजूद ये जगह पूजा स्थल कानून की धारा तीन के दायरे में नहीं आती ? जैन ने कहा- 800 क्या 8000 साल बाद भी ये ही अस्तित्व में रहेगा.अधिकार इसलिए है कि ये कानून भी स्मारक को छूट देता है.इसके अलावा पुरातत्व स्मारक और अवशेष संरक्षण कानून की धारा 16 और 19 पर भी अदालत निगाह डालें. जज निखिल चोपड़ा ने कहा कि इसकी धारा 16 भी तो आजादी के दिन पर स्थान की प्रकृति और स्थिति को बनाए रखने की बात करती है. संरक्षित स्मारक का इस्तेमाल तय दायरे के अलावा किसी और उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा. इस पर जैन ने दलील दी लेकिन वो मस्जिद नहीं है. तथाकथित मस्जिद है सिर्फ नाम के लिए. वहां कोई नमाज नहीं हुई. ASI के वकील सुभाष गुप्ता ने दलील दी, 'कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर खुदा हुआ हैकि मस्जिद का निर्माण 27 मंदिरों के अवशेष से किया गया था लेकिन ये कहीं नहीं लिखा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया. हालांकि, यह भी नहीं बताया गया है कि मस्जिद के लिए सामग्री वहीं से जुटाई गई थी या कहीं और से लाई गई थी. कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है क्योंकि इस तरह की पूजा गतिविधि कभी मौजूद नहीं थी जब इसे एक स्मारक के रूप में घोषित किया गया था तब भी नहीं. ASI ने हिंदू पक्ष की याचिका ख़ारिज करने की मांग की.जैन ने कहा कि यह एरिया स्मारक अधिनियम द्वारा संचालित है. मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण सवाल यह होगा कि इमारत का चरित्र क्या है? ASI ने कहा कि स्मारक सदियों पहले बनाया गया था. किसी भी बदलाव के लिए कोई अनुरोध या याचिका नहीं आई थी. अभी हाल ही में ये बातें सामने आ रही है.
गौरतलब है कि ऐतिहासिक कुतुब मीनार में हिन्दू पक्ष की पूजा के अधिकार की याचिका पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी ASI ने निचली अदालत में हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें ASI ने हिंदू पक्ष की याचिका का विरोध किया और कहा है कि ये पुरातात्विक महत्व का स्मारक है, ये कोई पूजास्थल नहीं है. इसलिए यहां किसी को पूजा पाठ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. पुरातात्विक संरक्षण अधिनियम 1958 के मुताबिक संरक्षित स्मारक में सिर्फ पर्यटन की इजाजत है. किसी भी धर्म के पूजा पाठ की इजाजत नहीं है.
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"कुतुब मीनार पुरातात्विक महत्व का स्मारक है, पूजा स्थल नहीं": ASI का कोर्ट में हलफनामा
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