प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. अदालत ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर जवाब मांगा् है. केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए फरवरी अंत तक का समय दिया गया है. मुस्लिम पक्षकारों ने कानून को चुनौती देने वालों की याचिकाओं का विरोध किया है. उनकी तरफ से कहा गया है कि इस कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती है.केंद्र द्वारा जवाब में देरी के चलते ज्ञानवापी और मथुरा में यथास्थिति से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो याचिका के सुनवाई योग्य होने पर प्रारंभिक आपत्ति पर सुनवाई के दौरान विचार करेगा.
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. कहा कि सरकार विचार विमर्श की प्रक्रिया कर रही है. वहीं मुस्लिम पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि हमें प्रारंभिक आपत्ति है. इन याचिकाओं को सुनवाई योग्य नहीं कहा जा सकता. वहीं वकील वृंदा ग्रोवर ने भी याचिकाओं का विरोध किया उन्होंने कहा कि कानून के खिलाफ ज्ञानवापी और मथुरा में यथास्थिति से छेड़छाड़ की जा रही है.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई की. 9 सितंबर 2022 को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था.सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 31 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा था. बाद में 12 दिसंबर तक जवाब देने को कहा था. याचिकाओं में कहा गया है यह कानून संविधान द्वारा दिए गए न्यायिक समीक्षा के अधिकार पर रोक लगाता है. कानून के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत दिए गए अदालत जाने के मौलिक अधिकार के चलते निष्प्रभावी हो जाते हैं.
याचिका में कहा गया है कि ये ऐक्ट समानता, जीने के अधिकार और पूजा के अधिकार का हनन करता है. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका के तहत प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है. ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए, उन्हें वापस उन्हें सौंपा जा सकें जो उनका असली हकदार है.
बताते चलें कि देश की तत्कालीन नरसिंम्हा राव सरकार ने 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी उपासना स्थल कानून बनाया था. कानून लाने का मकसद अयोध्या रामजन्मभूमि आंदोलन को बढ़ती तीव्रता और उग्रता को शांत करना था. सरकार ने कानून में यह प्रावधान कर दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के सिवा देश की किसी भी अन्य जगह पर किसी भी पूजा स्थल पर दूसरे धर्म के लोगों के दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसमें कहा गया कि देश की आजादी के दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को कोई धार्मिक ढांचा या पूजा स्थल जहां, जिस रूप में भी था, उन पर दूसरे धर्म के लोग दावा नहीं कर पाएंगे.इस कानून से अयोध्या की बाबरी मस्जिद को अलग कर दिया गया या इसे अपवाद बना दिया गया.क्योंकि ये विवाद आजादी से पहले से अदालतों में विचाराधीन था.
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