राजनीति में चुनाव जीतने या हारने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उस चुनाव के माध्यम से जनता तक अपना संदेश पहुंचाना.यही वजह है कि चुनाव में वोटों के अंतर से जीत की तुलना में आपने अपनी रणनीति से क्या मैसेज दिया है, वो ज्यादा जरूरी हो जाता है. कई बार जब रणनीति सटीक बैठती है तो नतीजे आपके फेवर में होते हैं और कई बार इसके उलट होता है. हरियाणा चुनाव का जो परिणाम आया है वो भी कई मायनों में ये बताता है कि आखिर इस राज्य में अब भविष्य की राजनीति कैसी होगी और जनता अपने नेता से क्या कुछ चाहती है.
चुनाव को जीतने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों से लेकर ग्राउंड पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की भूमिका सबसे अहम होती है. किसी पार्टी की जीत या हार के बीच का अंतर भी इन्हीं की मेहनत का नतीजा होता है. हरियाणा में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है. उसकी इस जीत में पीएम मोदी से लेकर धर्मेंद्र प्रधान और सीएम सैनी से लेकर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर की अहम भूमिका रही है. वहीं, कांग्रेस के राहुल गांधी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के लिए ये चुनाव एक बड़ी सबक की तरह रहा है. उधर, अगर बात अगर क्षेत्रीय दलों की करें तो दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के लिए भी ये चुनाव काफी कुछ सीखाने वाला रहा है. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर हरियाणा चुनाव में प्रदेश की जनता ने किसे सबसे बड़ा 'विनर' और किसे सबसे बड़ा 'लूजर' साबित किया है.
ये हैं हरियाणा चुनाव के सबसे बड़े 'विनर'
काम आई मोदी की गारंटी
हरियाणा चुनाव में प्रचार की कमान पीएम मोदी ने संभाली थी. उन्होंने इस चुनाव प्रचार की ना सिर्फ अगुवाई की बल्कि जनता को विश्वास भी दिलाया की उनके नेतृत्व में भाजपा आने वाले समय में भी जनता के लिए वैसे ही काम करेगी जैसे वो बीते दस साल से करती आ रही है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कांग्रेस पर भी जमकर हमला बोला था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के लिए, परिवारवाद के लिए और झूठे वादों के लिए जानी जाती है. ऐसे में हरियाणा के भविष्य के लिए बीजेपी ही सबसे ज्यादा जरूरी है. पीएम मोदी के दावों पर जनता ने भरोसा किया और कई दशकों बाद बीजेपी ने सूबे में जीत की हैट्रिक लगाई.
हरियाणआ के चाणक्य साबित हुए धर्मेद्र प्रधान
हरियाणा में पार्टी की ऐतिहासिक जीत का काफी हद तक श्रेय बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को जाता है. हालांकि राजनीतिक जीवन में ये उनकी पहली उपलब्धि नहीं है. कई मौकों पर उन्होंने इसको साबित किया है. धर्मेंद्र प्रधान की अगुवाई में ही विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र का मसौदा तैयार हुआ. हरियाणा चुनाव में भी उनकी रणनीति पार्टी के लिए रिकॉर्ड जीत लेकर आई है. पूरे चुनाव प्रचार पर धर्मेंद्र प्रधान की पैनी नजर बनी हुई थी. वो किसी भी तरह से विपक्ष को कोई मौका नहीं देना चाह रहे थे. राज्य में भाजपा के खिलाफ किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर काम ना करे इसके लिए उन्होंने अपनी टीम के साथ काम करते हुए ऐसे नेताओं की लिस्ट बनवाई जिन्हें लेकर जनता में गुस्सा था. और जब उम्मीदवारों की सूची जारी करने की बारी आई तो धर्मेंद्र प्रधान ने उन नेताओं को टिकट नहीं मिलने दिया. इन नेताओं में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल थे. चुनाव के बीच में जब अनिल विज ने खुदको मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावनाओं पर बात की उन्होंने उन्हें फटकार लगाई. धर्मेंद्र प्रधान हरियाणा में चुनाव के दौरान ये जानते थे कि आखिर विपक्ष को सत्ता से दूर रखने के लिए उन्हें क्या कुछ करना होगा. और उन्होंने वैसा ही किया.
OBC वोटर्स को नायब सिंह पर भरोसा
हरियाणा में भाजपा की जीत के पीछे ओबीसी वोटर्स का भी बड़ा रोल माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि सीएम सैनी की वजह से ही ओबीसी वोटर्स एक बार फिर बीजेपी की तरफ मुडा है. और ये एक बड़ी वजह है कि पार्टी नायब सिंह को एक बार फिर सूबे की जिम्मेदारी देने पर विचार कर रही है. अपने कम समय के ही कार्यकाल में नायब सिंह सैनी ने मनोहर लाल खट्टर की कम मिलनसार वाली छवि को भी सुधारा. सैनी ने अपने घर के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए थे. उन्होंने जनता से अपनी समस्याएं CM आवास पर लाने के लिए कहा था. CM खुद इनका निपटारा भी करते थे. ये भी एक बड़ा फैक्टर है, जिस वजह से सैनी को BJP दोबारा हरियाणा की कमान दे रही है.
खट्टर का रहा 100 परसेंट का सक्सेस रेट
इस बार के हरियाणा चुनाव में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का दाव भी बेहद खास रहा है. खट्टर इस चुनाव में हरियाणा में दलितों की बात करने वाले पहले नेताओं में से एक थे. खट्टर ने चुनाव प्रचार के दौरान सबसे पहले कांग्रेस की सरकार में राज्य के अंदर दलितों के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार किए जाने की बात की थी. उनकी इस बात को बाद में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपनी रैलियों में जोर-शोर से उठाया था. बताया जाता है कि उनके इसी दाव से बीजेपी को दलितों का भी वोट पहले के मुकाबले ज्यादा मिला है. इसके साथ-साथ ही खट्टर ने करनाल लोकसभा सीट के तहत आने वाली तमाम विधानसभा सीट पर पार्टी को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई है. आपको बता दें करनाल की सभी 9 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई है. यानी जिस संसदीय सीट से खट्टर आते हैं वहां पार्टी ने 100 फीसदी सीटें जीती हैं. करनाल लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 सीटें करनाल जिले से और 4 पानीपत जिले में आते हैं.
बड़ी संख्या में महिलाएं जीतकर पहुंची विधानसभा
इस बार के विधानसभा में 13 महिला उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचीं हैं. हरियाणा ऐसे राज्य में महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी आने वाले भविष्य के लिए बेहद शुभ संकेत है. महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी आधी आबादी की महत्ता को भी दर्शाता है. इससे पहले 2014 में 13 महिलाएं विधानसभा पहुंची थी. जबकि 2005 के चुनाव में 11 महिलाएं जीती थीं. 1972 से लेकर 2024 तक सिर्फ तीन बार ही ऐसे मौके आए जब 10 या उससे ज्यादा महिलाएं चुनाव में जीतकर विधानसभा तक पहुंची थीं.
साल | महिला विधायकों की संख्या |
1972 | 4 |
1977 | 4 |
1982 | 7 |
1987 | 5 |
1991 | 6 |
1996 | 4 |
2000 | 4 |
2005 | 11 |
2009 | 9 |
2014 | 13 |
2019 | 9 |
2024 | 13 |
ये हैं हरियाणा चुनाव के 'लूजर्स'
फिकी पड़ गई राहुल गांधी की 'जलेबी'
हरियाणा चुनाव में दो शब्दों की चर्चा सबसे ज्यादा रही. पहला- जाट और दूसरा- जलेबी. कांग्रेस ने दोनों पर बहुत जोर दिया, लेकिन ट्रेंड बताते हैं कि इससे पार्टी को कुछ खास हासिल नहीं हुआ. चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ये साफ हो गया है कि राहुल गांधी हरियाणा की जनता को जो जलेबी खिलाना चाह रहे थे उसका स्वाद फिका हो गया है. और हरियाणा की जनता ने राहुल गांधी के तमाम वादों को झुटलाते हुए बीजेपी पर अपना भरोसा बरकरार रखा है. कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ राहुल गांधी के लिए भी हरियाणा चुनाव के परिणाम काफी हैरान और परेशान करने वाले हैं. अब यहां से पार्टी आगे किस रणनीति पर काम करेगी इसे लेकर जल्द ही कुछ तय करना बेहद जरूरी मालूम पड़ रहा है. कांग्रेस के लिए ना तो इस चुनाव में जाट फैक्टर ही काम किया और ना ही पार्टी को दलित वोटरों का ही साथ मिलता हुआ दिखा. ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी पार्टी का प्रदर्शन ज्यादा उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा को देने होंगे कई जवाब
चुनाव की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस हरियाणा में दो धड़ों में बटी दिख रही थी. एक धड़ा था भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों का तो दूसरा था कुमारी सैलजा का. पार्टी हाईकमान ने भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सैलाज से ज्यादा तरजीह दी और जब उम्मीदवारों की सूची जारी की गई तब हुड्डा गुट के नेताओं को प्रमुखता से उम्मीदवार बनाया. लेकिन अब जब चुनाव नतीजे आए हैं तो पार्टी हुड्डा की तरफ देख रही है. यानी अब हुड्डा को पार्टी को कई तरह के सवालों के जवाब देना होगा. जिनमें पार्टी की हार की वजह से लेकर जाट और दलित वोटरों को आकर्षित ना कर पाने जैसे सवाल भी शामिल हो सकते हैं.
कुमारी सैलजा भी पार्टी के लिए दलित वोटरों को नहीं जुटा सकीं
कांग्रेस की इस हार के पीछे दलित वोटरों का साथ ना मिलना भी एक बड़ी वजहों में से एक है.कहा जा रहा है कि पार्टी की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा के प्रयासों के बाद भी उतने दलित वोट पार्टी के खाते में नहीं आए जितने की उम्मीद थी. ऐसे में सवालों के घेरे में तो कुमारी सैलजा भी हैं. कुमारी सैलजा ने चुनाव के दौरान एक बड़ा सवाल उठाते हुए कहा था कि क्या हरियाणा में कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं हो सकता है. कहा जा रहा है कि कुमारी सैलजा के इस सवाल का बीजेपी का खासा फायदा हुआ और कांग्रेस के लिए उनका ये सवाल गले की फांस बनकर रह गया. बीजेपी ने दलित के मुद्दे को चुनाव में जमकर भुनाया जबकि कांग्रेस दलित वोटरों तक अपनी बात पहुंचा पाने में उस कदर सफल नहीं हुई जितना उसे भरोसा था.
एक भी सीट नहीं जीत सकी दुष्यंत चौटाला की पार्टी
दुष्यंत चौटाला की जेपीपी पिछले चुनाव में हरियाणा में किंगमेकर की भूमिका में थी. लेकिन इस बार के चुनाव में जनता ने उनकी पार्टी को सिरे से नकार दिया है. सूबे की जनता जेपीपी से इतनी नाराज दिखी कि उन्होंने दुष्यंत चौटाला को भी नहीं जिताया. इस चुनाव में दुष्यंत चौटाला खुद पांचवें स्थान पर रहे हैं.
अभय चौटाला को भी नहीं मिला जनता का आशीर्वाद
आईएनएलडी के अभय चौटाला इस बार 15000 वोटों से हार गए हैं. हालांकि, उनकी पार्टी को दो सीट जीतने में सफलता जरूर हाथ लगी है. आईएनएलडी ने जो दो सीटें जीती हैं उनमें से एक है दाबवाली और दूसरी रानिया.इस चुनाव में अभय चौटाला की हार ये साफ करती है कि जनता अब नए विकल्प तलाशने की तरफ देख रही है.
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