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This Article is From May 30, 2016

गुजरात : दलित पंचायत प्रतिनिधि भेदभाव के शिकार, राज्य सरकार खामोश

गुजरात : दलित पंचायत प्रतिनिधि भेदभाव के शिकार, राज्य सरकार खामोश
प्रतीकात्मक फोटो
अहमदाबाद: पंचायती राज में पंच और सरपंचों के पद आरक्षित होने से दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व का मौका तो मिल रहा है लेकिन वास्तव में अगड़ी जातियों के प्रभुत्व के आगे दलित समुदाय के प्रतिनिधि कठपुतली बने रहने के लिए मजबूर हैं। यदि वे किसी दबाव को स्वीकार न करें तो उन्हें पद से हटाने के लिए तुरंत चक्रव्यूह रच दिए जाते हैं। इस तरह के हालातों की शिकायतों पर सरकार खामोश बनी हुई है। गुजरात में दलित प्रतिनिधियों की व्यथा के कई उदाहरण सामने आए हैं।    

अविश्वास प्रस्ताव आया तो इस्तीफा दे दिया
चंदुभाई मकवाणा गुजरात के नोर्तुल गांव के सरपंच थे। वे सरपंच इसलिए बने क्योंकि उनकी ग्राम पंचायत में सरपंच का पद इस बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। इस साल जनवरी में पतंगबाजी के दिन कुछ लोगों ने उनके घर पर पत्थरबाजी की। घटना से आहत चंदुभाई ने कुछ लोगों के खिलाफ स्थानीय थाने में एफआईआर लिखवाई। बात आगे बढ़ी तो चंदुभाई पर पंचायत के अन्य सदस्यों ने एफआईआर वापस लेने के लिए दबाव डाला। जब उन्होंने फरियाद वापस नहीं ली तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। उन्होंने आखिरकार थक हारकर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही सरपंच पद से इस्तीफा दे दिया।

एक दलित को हटाया, दूसरे को धमकियां
ऐसा ही मामला हेबुवा गांव के संजय परमार का है। यहां पर भी सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने की वजह से एक दलित व्यक्ति सरपंच बना। उनके साथ अगड़े समुदाय का विरोध रहा, इसलिए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटा दिया गया। उनकी जगह पर दूसरे दलित सरपंच संजय परमार बने तो उन्हें भी लगातार डराया-धमकाया जाता रहा है, ऐसा संजय का आरोप है।

सराहना मिली तो रास नहीं आ रहीं दलित महिला सरपंच
कमलाबेन मकवाणा भी दलित सरपंच हैं। कमलाबेन जब लाखवड गांव की सरपंच बनीं तब वहां गांव में पंचायत की आर्थिक स्थिति पूरी तरह खस्ता थी। उन्होंने मेहनत करके ग्राम पंचायत को आर्थिक तौर पर विकसित किया। उनके काम की प्रशंसा राज्य सरकार ने भी की इसलिए सरकार की ग्राम पंचायत की पुस्तिका में उनके नाम का विशेष उल्लेख कर उनके काम को सराहा गया। लेकिन स्थानीय अगड़े पंचायत सदस्यों को वे रास नहीं आ रही थीं इसलिए उनके खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। कमलाबेन उस अविश्वास प्रस्ताव को हराकर डटी रहीं।

भेदभाव की शिकायत पर नहीं कोई कार्रवाई
सामाजिक कार्यकर्ता कौशिक परमार का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री समेत सभी संबंधित मंत्रियों और विभागों से इस भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई करने की गुजारिश की है और कई पत्र भी लिखे हैं, लेकिन कहीं के कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। उनका आरोप है कि ऐसे अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ दलित सरपंचों के खिलाफ ही आते हैं, अगड़े सरपंचों के खिलाफ नहीं।

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