गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) द्वारा विधानसभा चुनाव से पहले लुभावने वादों की झड़ी लगाने के बाद सवाल यह उठने लगा है कि क्या राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी मतदाताओं को रिझाने तथा सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए ऐसी ही कुछ रियायतों की घोषणा करेगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पार्टियां बड़े-बड़े वादे कर रही हैं, क्योंकि वे कुछ भी अपने जेब से नहीं दे रही हैं और इन वादों को आखिरकार करदाताओं के पैसों से ही पूरा किया जाएगा.
भाजपा ने अभी तक यही रुख अपनाया है कि वह लोगों को ‘मुफ्त की रेवड़ियां' बांटने की दौड़ने में शामिल नहीं है और उसने मतदाताओं को ‘AAP' के वादों के झांसे में न आने को लेकर आगाह किया है.
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‘AAP' गुजरात की चुनावी राजनीति में अपेक्षाकृत नयी पार्टी है. उसका पूरा अभियान भाजपा को सत्ता से बाहर करने और साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में मजबूत प्रदर्शन करने के लिए व्यापक मतदाताओं से पैमाने पर लुभावने वादे करने के इर्द-गिर्द केंद्रित है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, सरकारी स्कूलों में निशुल्क शिक्षा, बेरोजगारी भत्ता, महिलाओं को 1,000 रुपये का भत्ता और नए वकीलों को मासिक वेतन देने जैसी कई रियायतें देने के आश्वासन के साथ अपनी पार्टी के अभियान की शुरुआत की है.
केजरीवाल जब भी गुजरात आते हैं, मतदाताओं को कम से कम एक नयी ‘गारंटी' देकर जाते हैं.
‘आप' को मात देने की कवायद में कांग्रेस भी मतदाताओं को रिझाने और सत्ता में लौटने के अपने लंबे इंतजार को खत्म करने के लिए कई लुभावने वादे लेकर आई है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुछ दिनों पहले राज्य में एक रैली को संबोधित करते हुए वादा किया था कि उनकी पार्टी लोगों को वे सभी रियायतें देगी, जिनकी ‘आप' ने अभी तक पेशकश की है.
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इसके अलावा, उन्होंने 500 रुपये में एलपीजी (रसोई गैस) सिलेंडर मुहैया कराने, कोविड-19 के पीड़ितों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा देने और किसानों का तीन लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का भी वादा किया.
अब सभी की निगाहें भाजपा पर टिकी हैं और बड़ा सवाल यह है कि क्या गुजरात में दो दशकों से अधिक समय से सत्ता में बैठी भाजपा भी मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘मुफ्त की रेवड़ियां' बांटने की दौड़ में शामिल होगी या फिर वह कोई अलग राह चुनेगी. गुजरात के मतदाता बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं कि भाजपा उन्हें क्या पेशकश करेगी.
अहमदाबाद निवासी कोमल चिडवानी ने कहा, ‘इस बार हमारे पास विकल्प है कि जो भी ज्यादा वादे करता है, उसे वोट दें. इन वादों के कारण इस बार अंतिम विकल्प का चुनाव करना मुश्किल होगा.'
राजनीतिक विश्लेषक हरी देसाई ने कहा, ‘सभी दल मुफ्त की रेवड़ियां बांट रहे हैं. भाजपा ने पहले यह किया है. पार्टियां कुछ भी अपनी जेब से नहीं दे रही हैं, इसलिए उनके लिए बड़े वादे करना आसान है.'
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उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस का मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए वादे करने का इतिहास रहा है.
देसाई ने कहा, ‘भाजपा नेता कहते हैं कि वे निशुल्क टीके, गरीबों को मुफ्त राशन दे रहे हैं. उन्होंने करदाताओं के पैसे से यह किया है. कांग्रेस जब सत्ता में थी तो उसने किसानों के कर्ज माफ कर दिए थे और कई अन्य ‘मुफ्त की रेवड़ियां' बांटी थी.'
उन्होंने कहा, ‘गुजरात में ‘मुफ्त की रेवड़ियां' बांटने से जुड़ी घोषणाएं शुरू करने वाली ‘आप' के नेतृत्व में पंजाब सरकार की स्थिति देखिए. वह सरकारी कर्मचारियों को वक्त पर वेतन तक नहीं दे पा रही है.'
देसाई ने मतदाताओं को चौकन्ना रहने और राजनीतिक दलेां के चुनाव पूर्व वादों के झांसे में न आने की सलाह दी.
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