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This Article is From Jul 03, 2014

गोपाल सुब्रह्मण्यम पर फैसला ठोस आधार पर आधारित : सरकार

गोपाल सुब्रह्मण्यम पर फैसला ठोस आधार पर आधारित : सरकार
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

न्यायपालिका से आलोचना झेलने के बावजूद सरकार ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए शीर्ष अदालत कॉलेजियम की सिफारिश को लौटाने का बचाव किया। सरकार ने कहा कि यह कदम 'उचित, पक्के और ठोस' आधार पर आधारित था।

विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यहां संवाददाताओं से कहा, '(न्यायाधीशों की नियुक्ति) की प्रक्रिया में सरकार को परामर्श लिए जाने का अधिकार मिला है और सरकार ने जो भी राय दी है वह पक्के, उचित और ठोस आधार पर आधारित है।'

हालांकि, उन्होंने कार्यपालिका की सुब्रह्मण्यम की आपत्तियों के बारे में विस्तार से जानकारी देने से इनकार कर दिया।

प्रसाद प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा द्वारा तीन अन्य नामों से सुब्रह्मण्यम के नाम को एकतरफा अलग किए जाने पर जताई गई आपत्ति से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा था, 'मैं इस बात को समझने में विफल रहा कि कैसे उच्च संवैधानिक पद पर नियुक्ति के मामले से इतने लापरवाह तरीके से निपटा गया। गोपाल सुब्रह्मण्यम की फाइल को मेरी जानकारी और सहमति के बिना अलग किया जाना उचित नहीं था।'

सीजेआई की आलोचना के मद्देनजर कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर प्रतिशोध की राजनीति करने और संवैधानिक मानदंडों का घोर उल्लंघन करने का आरोप लगाया।

पार्टी प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा, 'देश के मन में कोई संदेह नहीं है कि एकमात्र गुनाह गोपाल सुब्रह्मण्यम ने यह किया कि न्याय मित्र के तौर पर उन्होंने गुजरात में मोदी सरकार के खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट दी।'

हालांकि, प्रसाद ने कहा कि सरकार के पास उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में परामर्श लिए जाने का अधिकार है।

साथ ही प्रसाद ने कहा कि सरकार के मन में न्यायपालिका, उच्चतम न्यायालय और सीजेआई के लिए 'सर्वोच्च सम्मान' है।

प्रसाद ने कहा, 'मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी है। लेकिन मैं बेहद दृढ़ता से दोहराना चाहता हूं कि नरेंद्र मोदी सरकार के मन में न्यायपालिका के लिए सर्वोच्च सम्मान है। उच्चतम न्यायालय समेत न्यायपालिका की स्वतंत्रता सरकार के लिए विश्वास की वस्तु है। भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रति हमारे मन में सर्वोच्च सम्मान है।'

पूर्व विधि मंत्री और कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि मोदी सरकार न्यायपालिका के साथ टकराव के खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रही है और प्रधान न्यायाधीश की तरफ से व्यथा जाहिर करना उचित था।

उन्होंने कहा, 'सरकार संविधान में किसी संशोधन की अनुपस्थिति में खुद से दृढ़तापूर्वक नहीं कह सकती।' विवाद पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आज कहा कि यह 'अरचिकर विवाद' था जो अब समाप्त हो गया है।

उन्होंने कहा, 'प्रधान न्यायाधीश ने अपना बयान दे दिया है क्योंकि वह यहां नहीं थे और 28 जून को विदेश से आए हैं। यह उनकी भावना है और उन्होंने जो कुछ भी कहा मैं उसके गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर सकता हूं।'

उन्होंने कहा, 'भद्र पुरुष (गोपाल सुब्रह्मण्यम) जिनके नाम की सिफारिश की गई है। उन्होंने खुद ही दौड़ से खुद को अलग कर लिया है। मामला समाप्त हो गया है और प्रेस उसे बढ़ा रहा है।'

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए अपनी सहमति को वापस लेते हुए सुब्रह्मण्यम ने मोदी सरकार पर ढिठाई से सीबीआई को उनके खिलाफ 'गंदगी' एकत्र करने का आदेश देने का आरोप लगाया था ताकि शीर्ष अदालत में उनकी नियुक्ति को विफल किया जा सके।

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