सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बेहद अहम फैसला सुनाया. अदालत ने विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत एक आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए व्यवस्था दी कि इस तरह के विशेष कानूनों के तहत अपराधों में भी ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद है' का सिद्धांत लागू होता है. ऐसे मामलों में आमतौर पर आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए, अगर ऐसा होता है, तो यह मौलिक अधिकार का हनन है.
‘जमानत नियम है, जेल अपवाद है'
न्यायमूर्ति अभय एस ओका एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अगर अदालतें उचित मामलों में जमानत से इनकार करना शुरू कर देंगी, तो यह बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन होगा. पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, "जब जमानत देने का मामला बनता है, तो अदालत को जमानत देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए. अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करना अदालत का कर्तव्य है. जमानत नियम है और जेल अपवाद है, यह सिद्धांत विशेष कानूनों पर भी लागू होता है."
अदालत जमानत देने से इनकार नहीं कर सकती
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में भी, जहां जमानत देने के लिए कड़ी शर्तें रखी गई हैं, यही नियम लागू होता है, केवल इतना बदलाव किया गया है कि यदि कानून में दी गई शर्तें पूरी होती हैं तो जमानत दी जा सकती है. पीठ ने कहा, "नियम का यह भी अर्थ है कि एक बार जमानत देने का मामला बन जाने पर अदालत जमानत देने से इनकार नहीं कर सकती. अगर अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देंगी, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन होगा."
पुलिस कांस्टेबल जलालुद्दीन खान पर क्या हैं आरोप?
यह फैसला सेवानिवृत्त पुलिस कांस्टेबल जलालुद्दीन खान को जमानत पर रिहा करते हुए सुनाया गया. खान पर प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को अपने मकान की ऊपरी मंजिल किराए पर देने के लिए यूएपीए और अब समाप्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) के अनुसार, जांच से पता चला कि यह आपराधिक साजिश आतंकवादी और हिंसा की घटनाओं को अंजाम देने के इरादे से रची गई थी, ताकि आतंक का माहौल पैदा हो और देश की एकता और अखंडता को खतरा हो. आरोप लगाया गया कि अपनी साजिश को आगे बढ़ाते हुए आरोपी ने फुलवारीशरीफ (पटना) में अहमद पैलेस में किराए पर आवास की व्यवस्था की और इसके परिसर का इस्तेमाल हिंसक कृत्यों को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण और अपराध की साजिश रचने के मकसद से बैठकें आयोजित करने को लेकर किया.
PM मोदी के बिहार दौरे से जुड़ा है मामला
NIA ने दावा किया कि बिहार पुलिस को 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के दौरान अशांति फैलाने की आरोपियों की साजिश के बारे में जानकारी मिली थी. गुप्त सूचना के आधार पर फुलवारीशरीफ पुलिस ने 11 जुलाई 2022 को खान के घर पर छापेमारी की थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपपत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि खान ने यूएपीए में परिभाषित गैरकानूनी गतिविधियों में हिस्सा लिया या उन्हें अंजाम दिया. न्यायालय ने कहा कि यह मानते हुए भी कि सह-आरोपी आतंकवादी कृत्यों में लिप्त थे या ऐसे कृत्यों को अंजाम देने वाले थे, रिकॉर्ड पर ऐसा कोई भी सबूत नहीं है जिससे पता चले कि खान साजिश में शामिल था. पीठ ने कहा, "ऐसा कोई सबूत रिकार्ड में प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता ने आतंकवादी कृत्यों या इससे जुड़ी अन्य गतिविधि की वकालत की, उसे बढ़ावा दिया, सलाह दी या उकसाया."
...और अदालत ने आरोपी जमानत पर कर दिया रहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खान के बेटे ने अन्य आरोपियों के साथ मकान की पहली मंजिल को किराए पर देने के लिए बातचीत की थी. पीठ ने कहा, "आरोपपत्र को सही मानते हुए, प्रथमदृष्टया यह निष्कर्ष निकाल पाना संभव नहीं है कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर पहली मंजिल को किराए पर देकर आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने या तैयारी में मदद की. इसके अलावा याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपपत्र में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उसने आतंकवाद का प्रशिक्षण देने के लिए कोई शिविर आयोजित किया था." शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपपत्र में यह आरोप भी नहीं है कि याचिकाकर्ता किसी आतंकवादी गिरोह का सदस्य था. इसके साथ, अदालत ने खान को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
(भाषा इनपुट के साथ...)
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