त्रिपुरा में वाम दलों के लिए बड़ा चेहरा माने जाने वाले और चार बार मुख्यमंत्री रहे माणिक सरकार (Manik Sarkar) अगले माह होने वाले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. सूत्रों ने बताया कि माकपा ने 74 साल के सरकार को टिकट नहीं दिया है. हालांकि पार्टी की ओर से ऐलान किया गया है कि माणिक सरकार, राज्य में वाम दलों के प्रचार अभियान की अगुवाई करेंगे. बता दें, माकपा ने 1978 से 2018 तक त्रिपुरा में शासन किया है, इस दौरान बीच में पांच साल का ब्रेक रहा. अपने कार्यकाल के दौरान सरकार, बांग्लादेश की सीमा से लगे इस छोटे से राज्य में भी शांति बनाए रखने में कामयाब रहे जो कभी उग्रवाद और बंगालियों-आदिवासियों के बीच संघर्ष का केंद्रबिंदु रहा.
साफ-सुथरे शासन के लिए जाने जाने वाले सरकार के कार्यकाल के दौरान साक्षरता में वृद्धि तथा गरीबी और कुपोषण में कमी देखी गई और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला था. खांटी कम्युनिस्ट और पार्टी पोलितब्यूरो के सदस्य माणिक सरकार की छवि ईमानदार राजनेता की थी. कभी देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री के रूप में पहचाने जाने वाले सरकार, राज्य की पार्टी के सबसे विश्वसनीय चेहरा हैं. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि 1998 से 2018 तक राज्य सरकार का नेतृत्व करने वाले सरकार फिर से वामपंथियों के उस सबसे बड़े वोट बैंक, आदिवासियों और दलितों को लुभाने में सक्षम रहेंगे जो बीजेपी-आईपीएफटी (Indigenous Progressive Front of Tripura) की ओर शिफ्ट हो गया था. माकपा सूत्रों ने कहा कि सरकार को पूरे राज्य में प्रचार करने की जरूरत है. उन्हें सिर्फ अपने पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र धनपुर तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए.
वर्ष 2018 के चुनावों में बीजेपी ने राज्य की 60 में से 36 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सत्ता में आकर इतिहास रचा था. आईपीएफटी को 8 सीटें हासिल हुई थीं जबकि माकपा को महज 16 सीटें ही मिल पाई थीं. पिछले चुनाव में मिली करारी हार के बाद माकपा ने इस बार कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे का करार किया है जिसके तहत वाम मोर्चा राज्य की 60 में से 47 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगा. शेष 13 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे.
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