झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पांच महीने बाद जेल से रिहा हो गए हैं. झारखंड हाईकोर्ट ने जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में हेमंत सोरेन को जमानत दे दी थी. इसके बाद हाईकोर्ट का ऑर्डर फैक्स के जरिए रांची सिविल कोर्ट पहुंचा. बेल बांड भरने और फिर रिलीज ऑर्डर जेल पहुंचने के बाद उन्हें रिहाई मिल गई.
कोर्ट से जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन के छोटे भाई और राज्य के पथ निर्माण मंत्री बसंत सोरेन बेल बांड भरने के लिए दस्तावेजों के साथ सिविल कोर्ट पहुंचे. कोर्ट के आदेश के अनुसार 50-50 हजार रुपए के दो मुचलके भरे गए.
झारखंड हाईकोर्ट में जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की कोर्ट ने हेमंत सोरेन की जमानत याचिका पर तीन दिनों तक बहस और सुनवाई पूरी करने के बाद 13 जून को फैसला सुरक्षित रख लिया था. शुक्रवार सुबह अदालत द्वारा जमानत मंजूर किए जाने की खबर मिलते ही गठबंधन सरकार के नेताओं और सोरेन के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई.
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।#JusticeDelivered pic.twitter.com/4ZAWTvbdk9
— Champai Soren (@ChampaiSoren) June 28, 2024
झारखंड के सीएम चंपई सोरेन ने सोशल मीडिया एक्स पर खुशी व्यक्त करते लिखा है, "सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं. सत्यमेव जयते."
सोरेन को जमानत मिलने की खुशी में झारखंड कांग्रेस कार्यालय में नेताओं-कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार दोपहर मिठाइयां बांटीं. कांग्रेस की महगामा इलाके की विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने अपने समर्थकों के साथ अबीर-गुलाल उड़ाए.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमानत मिलने पर खुशी जताई.
राजनीतिक प्रतिशोध के कारण झूठे केस में फंसाए गए राजनीतिक कैदी भाई हेमंत सोरेन को जमानत मिलने पर हार्दिक बधाई।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 28, 2024
देश की न्यायप्रिय जनता जानती है कि कैसे विपक्ष के नेताओं को एजेंसियों का दुरुपयोग कर उन्हें रेड, समन और जेल के नाम पर सताया गया है। अहंकारी और तानाशाह लोग अब भी जनता के… https://t.co/SQ6xI7kMrF
सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय के वकील एस वी राजू ने अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) पुलिस थाने में ईडी अधिकारियों के खिलाफ दर्ज मामलों का जिक्र करते हुए दलील दी कि अगर सोरेन को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह इसी तरह का अपराध फिर करेंगे.
एकल पीठ के आदेश में ये भी उल्लेख किया गया कि अदालत का निष्कर्ष है कि ‘‘पीएमएलए, 2002 की धारा 45 की शर्त के तहत यह मानने का कारण है कि याचिकाकर्ता आरोपित अपराध का दोषी नहीं है.''
बचाव पक्ष और ईडी की ओर से दलीले पूरी होने के बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित कर लिया था.
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