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This Article is From Aug 25, 2022

EC की सलाह ज्‍यूडीशियल नेचर की होती है, इसमें बदलाव नहीं हो सकता : हेमंत सोरेन मामले में एसवाय कुरैशी

उन्‍होंने कहा कि ऐसे मामले इससे पहले कई बार हो चुके हैं. जया बच्‍चन और सोनिया गांधी का केस हुआ था. यह समस्‍या सत्‍तारूढ़ पार्टी के सामने बार बार आती रही है

नई दिल्‍ली:

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुश्किलों में फंस गए हैं. उनकी कुर्सी खतरे में बताई जा रही है. निर्वाचन आयोग (EC) ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ राज्यपाल को रिपोर्ट भेजी है. विधानसभा सदस्यता रद्द करने के मुद्दे पर चुनाव आयोग ने राज्यपाल को ये रिपोर्ट भेजी है. बता दें कि हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन मामले में जांच चल रही है. ये मामला खुद के नाम पर खनन पट्टा आवंटन मामले से जुड़ा है. हेमंत पर पद का दुरुपयोग करने के आरोप है.  झारखंड में आए इस संवैधनिक संकट मुद्दे पर पूर्व चुनाव आयुक्‍त एसवाय कुरैशी ने कहा कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के केस इलेक्‍शन कमीशन के पास आते हैं. नियम यह है कि यदि एलएलए का केस है तो राज्‍यपाल से शिकायत की जाती है और अगर सांसद के खिलाफ केस है तो राष्‍ट्रपति से शिकायत की जाती है. राष्‍ट्रपति और गवर्नर ये केस इलेक्‍शन कमीशन को उनकी एडवाइज के लिए रेफर करते हैं. इस एडवाइज में चुनाव आयोग पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाता है. चुनाव आयोग अदालत बनकर बैठकर बैठता है, दोनों पार्टियों के वकील पेश होकर अपना-अपना पक्ष रखते हैं. 

कुरैशी ने बताया कि उसके बाद चुनाव आयोग अपनी एडवाइस लिखकर देता है. यह एडवाइस ज्‍यूडिशियल नेचर की होती है और इसमें राज्‍यपाल या राष्‍ट्रपति कोई फेरबदल नहीं कर सकता. कामा फुलस्‍टाप भी चेंज नहीं कर सकते. ज्‍यों की त्‍यों स्‍वीकार करना होता है. यदि स्‍वीकार न भी करना चाहें तो रद्दोबदल नहीं कर सकते. अभी यह नहीं मालूम कि ईसी ने रिपार्ट में क्‍या लिखा है. उनको बरी किया है या उनके खिलाफ गई है लेकिन अगर बर्खास्‍तगी के ऑफिस या प्रॉफिट साबित हुआ है तो जब तक वे सुप्रीम कोर्ट में जाकर स्‍टे ले लेते हैं, राहत नहीं. ईसी की सलाह के आधार पर गवर्नर आदेश जारी कर सकते हैं. यदि गवर्नर के फैसले को कोर्ट स्‍टे करेगी वरना उन्‍हें दूसरा इलेक्‍शन लड़कर ही आना पड़ेगा. इस बीच इस्‍तीफा फौरन देना होगा.  

उन्‍होंने कहा कि ऐसे मामले इससे पहले कई बार हो चुके हैं. जया बच्‍चन और सोनिया गांधी का केस हुआ था. यह समस्‍या सत्‍तारूढ़ पार्टी के सामने बार बार आती रही है इस कारण उन्‍होंने पांच बार संविधान को बदला है. 2006 में तो सिथति गंभीर हुई थी जब  संसद ने 59 पोस्‍ट को ऑफिस ऑफ प्राफिट से छूट देने का कानून लागू किया था. उस समय एपीजे अब्‍दुल कलाम राष्‍ट्रपति थे, उन्‍होंने मंजूरी देने से इनकार कर‍ दिया और इस पर फिर से विचार करने को कहा था. संसद ने इसे दोबारा ज्‍यो का त्‍यों पास कर दिया. संविधान लोकसभा के दोबारा पास करने पर राष्‍ट्रपति इसे लागू करने पर बाध्‍य है, वैसे राष्‍ट्रपति खुश नहीं थे, उन्‍होंने इसे मंजूरी देने में दो सप्‍ताह लगा दिए थे.

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