देश में किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलाने के लिए नया MSP कानून बनाने को लेकर किसान संगठनों और भारत सरकार के बीच तीन दौर की बैठक के बाद भी गतिरोध बना हुआ है. दरअसल, MSP पर कानून बनाने के रास्ते में कई अड़चने हैं. किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलाने के लिए नए MSP कानून और कई दूसरी मांगों को लेकर किसान संगठन शम्भू बॉर्डर से लेकर जंतर मंतर तक विरोध प्रदर्शन प्रदर्शन कर रहे हैं.
शुक्रवार को ग्रामीण भारत बंद और इंडस्ट्रियल स्ट्राइक के समर्थन में संयुक्त किसान मोर्चा और बड़े ट्रेड यूनियन के नेता एक साथ जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते दिखे. लेकिन इस गतिरोध के बीच पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा है कि देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाना एक मुश्किल चुनौती है.
MSP की लीगल गारंटी देने में क्या हैं मुख्य अड़चनें?
MSP व्यवस्था के तहत अधिकांश फसलों की बिक्री APMC में नहीं होती है. इस वजह से क्रेता (Purchaser) या विक्रेता किसान का कोई रिकॉर्ड नहीं दर्ज होता है. इस तरह के लेनदेन के लिए MSP की गारंटी देना मुश्किल है. कई छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज ग्रामीण व्यापारियों को बेचते हैं, जिनका APMC में कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं होता है.
- हार्वेस्ट सीजन में हाई डिमांड के दौरान खेती उत्पादकों की कीमतें सबसे कम होती है. इससे निजी व्यापार को लाभ होता है. इसलिए वह एमएसपी की किसी भी कानूनी गारंटी का विरोध कर सकते हैं. 2018 में महाराष्ट्र में इस व्यवस्था को बदलने की कोशिश सफल नहीं रही.
- सरकार के पास बड़ी मात्रा में उपज खरीदने, भंडारण और उसे मार्किट करने के लिए संसाधन नहीं हैं, अगर उसे MSP रेट पर भुगतान के इच्छुक खरीदारों की अनुपस्थिति के कारण इसे खरीदना पड़ा.
- सरकारी एजेंसियों द्वारा की गयी खरीदारी बहुत महंगी होती है क्योंकि उन्हें रेगुलेटरी आर्डर का पालन करना होता है, जबकि निजी व्यापारी अक्सर कायदे कानूनों की अनदेखी कर सकते हैं.
उधर, शुक्रवार को किसान संगठनों के "दिल्ली चलो" मार्च के बाद पहली बार ट्रेड यूनियन CITU, AITUC, BMS और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता "ग्रामीण भारत बंद" और इंडस्ट्रियल स्ट्राइक के समर्थन में जंतर मंतर पर एक मंच पर जमा हुए. MSP पर नए कानून और दूसरी मांगों को लेकर "ग्रामीण भारत बंद" और इंडस्ट्रियल स्ट्राइक के समर्थन में जंतर मंतर पर संयुक्त किसान मोर्चा और कई ट्रेड यूनियन के नेता और कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन किया.
संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक हनन मोल्लाह ने NDTV से कहा कि हम पिछले 20 साल से किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिले. इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं. स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी की एमएसपी रेट C2 + 50% होना चाहिए. MSP पर कानून बहुत जरूरी है.
CITU के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन ने NDTV से कहा कि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिले इसके लिए MSP पर नए कानून बनाने की किसान संगठनों की मांग का हम समर्थन करते हैं. मैं अभी कोलकाता गया था. वहां के आलू किसानों की शिकायत थी कि उन्हें प्रति किलो ₹5.50 मिले जबकि जब मैं बाजार में गया तो आलू ₹20 किलो बिक रहा था... MSP पर कानून की मांग जरूरी है. इस मुद्दे पर बीच का कोई रास्ता नहीं है"..
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