
किसानों की पिटाई का फाइल फोटो.
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कर्नाटक हाई कोर्ट ने बगैर सुओ मोटो सुनवाई की
पीड़ितों का इलाज सुनिश्चित करने की हिदायत
कोर्ट ने कहा मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो
घेरकर पीटने का क्या जरूरत थी?
जस्टिस वेणुगोपाल ने अधिवक्ता जनरल से यह भी जानना चाहा कि इस तरह किसानों को घेरकर पीटने की क्या जरूरत थी. राज्य सरकार को हिदायत दी गई कि मानवाधिकारों का उल्लंघन किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए.
सरकारी संस्थाओं को बनाया था निशाना
दरअसल 28 जुलाई को महादायी नदी के पानी के बंटवारे से उठे विवाद को लेकर उत्तर कर्नाटक बंद का आह्वान किया गया था. इस बंद के दौरान आंदोलनकारियों ने पुलिस स्टेशन कोर्ट और कई अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया था. इससे पुलिसकर्मी खासे नाराज थे.
वाहनों के बीच में की पिटाई
30 जुलाई के कर्नाटक बंद को देखते हुए बड़ी तादाद में गांव वालों को हिरासत में लिया गया और दोपहर में उन्हें छोड़ दिया गया. लेकिन पुलिस स्टेशन के बाहर दोनों तरफ पुलिस वाहन लगाकर एक रास्ता पुलिस कर्मियों ने बनाया और गांव वालों को उसी से गुजरने को कहा.जब वे वहां से जाने लगे तो वहां दोनों तरफ खड़े पुलिस कर्मियों ने ग्रामीणों पर हमला बोल दिया. वहां खड़े वाहनों में से एक गाड़ी अतिरिक्त पुलिस निदेशक रैंक के अधिकारी की थी. यानी उनकी मौजूदगी में पुलिस ने इस बर्बरता से कार्रवाई को अंजाम दिया.
गांव में भी की मारपीट
मामला यही नहीं थमा. बाद में पुलिसकर्मियों ने गांव में घरों से बच्चे, बूढ़े और महिलाओं से भी मारपीट की. दो निजी चैनलों के स्थानिय कैमरामैन ने इस पूरी वारदात को रिकार्ड कर लिया और इसके बाद बवाल उठ खड़ा हुआ. मामला बिगड़ता देख सरकार ने स्थानिय एसएचओ सहित छह पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया और मामले की जांच करने का जिम्मा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कमल पंत को सौंप दिया.
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