इटली के मशहूर लक्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुशल कारीगरों के साथ मिलकर कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित सैंडल बनाने के लिए दो सरकारी संगठनों लिडकॉम और लिडकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. इस एमओयू पर बुधवार को मुंबई स्थित इटली के महावाणिज्य दुतावास में हस्ताक्षर किए गए. प्राडा, लिडकॉम और लिडकार के बीच हुए समझौते में परियोजना के ढांचे, क्रियान्वयन और मार्गदर्शन का विवरण शामिल हैं.
एनडीटीवी ने इस संभावित घटनाक्रम की खबर तब दी थी जब इस साल की शुरुआत में लग्जरी फैशन हाउस की एक उच्च स्तरीय टीम स्थानीय कारीगरों के साथ संभावित सहयोग के लिए आधारभूत कार्य शुरू करने के लिए महाराष्ट्र के कोल्हापुर पहुंची थी.
प्राडा की मुख्य तकनीकी टीम सहित यह दौरा करने वाला समूह कोल्हापुरी चप्पलों की पारंपरिक उत्पादन प्रक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए शहर में आया था और उन्होंने शिल्प की बारीकियों को समझने के लिए कारीगरों, सहकारी समितियों के प्रमुखों और हितधारकों के साथ बैठकें कीं. इस साल की शुरुआत में, प्राडा ने 1.2 लाख रुपये की कीमत वाली कोल्हापुरी शैली की चप्पलें लॉन्च करके सुर्खियां बटोरीं. महाराष्ट्र के पारंपरिक हस्तनिर्मित जूतों से प्रेरित इन सैंडल की अत्यधिक कीमत और मूल कारीगरों को श्रेय न देने के कारण आलोचना हुई.
संयुक्त बयान के मुताबिक, यह पहल 'प्राडा मेड इन इंडिया.. इंस्पायर्ड बाय कोल्हापुरी चप्पल्स' परियोजना के तहत भारतीय हस्तशिल्प को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करेगी. बयान के मुताबिक, सैंडल का यह सीमित संग्रह परंपरागत कारीगरी को प्राडा की आधुनिक डिजाइन और प्रीमियम सामग्री के साथ मिलाकर भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक लक्ज़री के बीच अनोखा मेल स्थापित करेगा.
दोनों ही संगठन भारतीय चमड़ा उद्योग और कोल्हापुरी चप्पल की परंपरा को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए समर्पित हैं. ये संस्थान स्थानीय कारीगरों का समर्थन करते हैं और उनकी पारंपरिक कला को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
परंपरागत कोल्हापुरी चप्पलों को 2019 में 'भौगोलिक संकेत' (जीआई) टैग मिला था. इन्हें महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा एवं सोलापुर के अलावा पड़ोसी राज्य कर्नाटक के बेलगावी, बगलकोट, धारवाड़ एवं बीजापुर के हस्तशिल्पी भी बनाते हैं.
जून, 2025 में प्राडा की ‘स्प्रिंग/समर' 2026 कलेक्शन में प्रदर्शित कुछ सैंडल कोल्हापुरी चप्पलों से बहुत साम्यता रखते हुए नजर आए थे. आलोचकों ने इसे सांस्कृतिक पहचान के अनुचित इस्तेमाल और जीआई टैग का उल्लंघन बताया था.
हालांकि प्राडा ने नाम के इस्तेमाल से बचने और केवल प्रेरणा लेने का हवाला देते हुए इन आरोपों से इनकार किया था. लेकिन उसने अपने भावी कलेक्शन के लिए भारतीय कारीगरों के साथ साझेदारी करने पर सहमति जताई थी. इस पहल के तहत प्राडा ग्रुप, लिडकॉम और लिडकार स्थानीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करेंगे, जिससे कारीगर अपनी पारंपरिक तकनीकों के साथ आधुनिक कौशल भी सीख सकेंगे.
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