सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को शादी (Same-Sex Marriage) या बच्चा गोद लेने की मान्यता देने से इनकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है. कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है. हालांकि, कोर्ट (Supreme Court) ने फैसले में समलैंगिंक जोड़ों को कई तरह के अधिकार देने की बात कही है.
17 अक्टूबर को 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने 11 मई को सेम सेक्स मैरिज (Same-Sex Marriage)पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 160 दिन बाद आज फैसला सुनाया गया. सीजेआई के मुताबिक, इसमें कुल 4 जजमेंट हैं और जजों की राय बंटी हुई है. आइए समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद समलैंगिक कपल के लिए क्या बदल जाएगा?
कोर्ट के फैसले में क्या अच्छा है?
समलैंगिक शादी को वैध बनाने से पांच जजों की बेंच का इनकार शादी की समानता के सैद्धांतिक विरोध पर आधारित नहीं है, बल्कि कानूनी बारीकियों और न्यायिक कानून की चिंताओं पर आधारित है. मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र के एक तर्क का विरोध करते हुए सभी जज इस बात से सहमत थे कि क्वीयर कपल(Queer Couples) न तो शहरी हैं और न ही एलीट क्लास के.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में क्या तर्क दिए गए थे?
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सीनियर वकील और मामले में कई याचिकाकर्ताओं की वकील गीता लूथरा ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया, "भले ही शादी का अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन CJI ने कहा है कि समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए वही अधिकार उपलब्ध होने चाहिए, जो आम विवाहित जोड़े के पास हैं."
"कानून यह नहीं मान सकता कि सिर्फ होमोसेक्सुअल जोड़े ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं": CJI
LGBTQIA+ कार्यकर्ता हरीश अय्यर ने भी समलैंगिक समुदाय के पक्ष में कोर्ट की टिप्पणियों पर ध्यान दिया. उन्होंने कहा, "हालांकि, आखिर में फैसला हमारे पक्ष में नहीं था, लेकिन कई बातें हमारे पक्ष में थीं. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार पर डाल दी है. सॉलिसिटर जनरल ने हमारे खिलाफ इतनी सारी बातें कही हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है." अय्यर ने कहा, "हमें अपनी चुनी हुई सरकार, सांसदों और विधायकों के पास जाना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि हम दो लोगों की तरह अलग हैं. युद्ध चल रहा है... इसमें कुछ समय लग सकता है लेकिन हमें सामाजिक समानता मिलेगी.''
फैसला आने में देरी पर भी चिंता
केंद्र ने इस साल मई में कहा था कि वह समलैंगिक जोड़ों के लिए प्रॉविडेंट फंड और पेंशन जैसी सर्विस पर गौर करने के लिए कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक पैनल बनाने पर विचार कर रहा है. उसके बाद इस मामले में कोई अपडेट नहीं आया है कि क्या इस पैनल की बैठक हुई और इस मुद्दे पर चर्चा हुई.
समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं : कानून में बदलाव का फ़ैसला संसद करेगी
समलैंगिक जोड़ों के अधिकार कोई चुनावी मुद्दा नहीं हैं, लेकिन इस मामले पर किसी भी कदम के महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं. समलैंगिक शादी को वैध बनाने की दिशा में किसी भी कदम को धार्मिक संगठनों समेत समाज के अंदर से विरोध का सामना करना पड़ेगा.
कोर्ट के फैसले की खास बातें
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भारत में हिंदू, सिख, जैन, ईसाई धर्मों में शादी के लिए संसद से कानून बने हैं. मुस्लिम समुदाय की शादियां उनके व्यक्तिगत रीति-रिवाजों यानी पर्सनल लॉ से संचालित होती हैं. एक धर्म से दूसरे धर्म के लोगों की शादी के लिए विशेष विवाह कानून बना है, जिसके तहत सेम सेक्स मैरिज के रजिस्ट्रेशन की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कानून में संशोधन का अधिकार संसद के पास है. इसलिए याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांग को सभी जजों ने बहुमत के फैसले से खारिज कर दिया गया है.
समलैंगिंक जोड़ों को सिविल अधिकार देने के बारे में संविधान बेंच के 5 जजों के बीच मतभेद हैं. 2 जज जिनमें चीफ जस्टिस भी शामिल हैं, उनके अनुसार समलैंगिंक जोड़ों को साथ रहने का और बच्चे गोद लेने का अधिकार है. जबकि बहुमत से दिए गए 3 जजों के फैसले के अनुसार कानून के बगैर समलैंगिंक जोड़ों को ऐसे अधिकार हासिल नहीं हो सकते हैं.
संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अनुसार लोगों को जीवन और समानता का अधिकार है. उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो सकता. फैसले को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को भी कई निर्देश दिए हैं. इसके अनुसार समलैंगिक जोड़ों के साथ किसी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती. उनके खिलाफ एफआईआर करने के पहले शुरुआती जांच करना जरूरी है.
अदालत ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों में पति-पत्नी का निर्धारण और उनकी कानूनी उम्र के बारे में कई विवाद होने से वैवाहिक और सामाजिक व्यवस्था में अराजकता आ सकती है. इस फैसले के बाद समान नागरिक संहिता को लागू करना बड़ी चुनौती होगी
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