महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की तीसरी सरकार होगी, जो हाल ही के वर्षों में मराठाओं को आरक्षण देने जा रही है. 1980 में पहली बार मराठा आरक्षण की मांग मण्डल आयोग के बाद शुरू हुई, जो मराठा नेता अन्ना साहब पाटिल ने शुरू की थी. आरक्षण और मराठा समुदाय की अन्य मांगों पर चर्चा के लिए आज महाराष्ट्र विधानमंडल का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया है.
फडणवीस सरकार ने 2018 में दिया था आरक्षण...
तीन केंद्रीय और तीन राज्य आयोग ने मराठाओं को पिछड़ा मनाने से इनकार कर दिया. साल 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण सरकार ने मराठा समाज को 16% आरक्षण दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. साल 2016-17 कोपर्डी की घटना के बाद महाराष्ट्र फिर एक बार मराठा आरक्षण की मांग तेज हुई. इसके बाद 2018 में फडणवीस सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा होने के आधार और मराठा समाज को 16% आरक्षण देने का फैसला किया. लेकिन 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरी में 13 प्रतिशत कर दिया. हालांकि, साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कोई असाधारण स्तिथि नहीं दिखती, जिसके आधार पर मराठा को पिछड़ा मानते हुए उन्हें आरक्षण दिया जाए.
महाराष्ट्र में अब तक आरक्षण की स्थति
SC : 13 प्रतिशत
ST : 07 प्रतिशत
OBC : 19 प्रतिशत
विमुक्त और भटकी हुई जनजाति : 11 प्रतिशत
एसईबीसी (सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) : 02 फीसदी
कुल मिलाकर : 52 फीसदी
अगर इसमें ईडब्ल्यूएस (EWS) के 10 फीसदी को जोड़ दें, तो आंकड़ा 62 फीसदी हो जाता है. और अब अगर आज मराठा समुदाय को 10 से 12% आरक्षण दिया जाता है, तो यह आंकड़ा 70 पार कर जाएगा. ऐसे में सवाल है कि क्या इस बार सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण कैसे टिक पायेगा.
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