मोकामा... नाम सुनते ही अब उद्योगों की नहीं, गोलियों की गूंज याद आती है. कभी यह धरती कारखानों के धुएं से महकती थी. लेकिन आज बारूद की गंध में डूबी है. 1980 का दशक... जब बाकी बिहार राजनीति की भाषा सीख रहा था, मोकामा ने बुलेटों से अपनी सियासी जुबान लिखी. यहां का इतिहास सिर्फ तारीखों से नहीं, खून की धारों से लिखा गया है. सत्ता की कुर्सी हो या जमीन की जिद... हर लड़ाई में बंदूकें बोलती थीं और बदले की आग में कई घर जलते रहे.
अनंत सिंह, सूरजभान, सोनू-मोनू और टाल—चार नाम, चार चेहरे. लेकिन कहानी एक ही. दबदबे की, डर की और दौलत की. 30 अक्टूबर को जब दुलारचंद की हत्या की खबर आती है, तो मोकामा फिर वही सवाल पूछता है—क्या यहां कभी खून की ये दास्तान खत्म होगी, या हर चुनाव के साथ एक नई गोली फिर इतिहास लिखेगी?
जहां कारखानों का धुआं बारूद में बदल गया...
कहानी की शुरुआत वहां से होती है, जब मोकामा की सुबहें रेल इंजन की सीटी और कारखानों के धुएं से जागती थीं. रेलवे यार्ड की रौनक थी. फैक्ट्री की चहल-पहल थी और गंगा किनारे के टाल क्षेत्र में दलहन की हरियाली लहराती थी. तब मोकामा ‘उद्योग नगरी' कहलाता था. मेहनत की खुशबू और उम्मीद की हवा में डूबा हुआ.
लेकिन वक्त बदला और धुआं अब बारूद का हो गया. 1980 के दशक में अपराध ने धीरे-धीरे इस इलाके की बागडोर संभाल ली. गंगा के टाल इलाके की जमीनें सिर्फ खेती की नहीं रहीं, वे वर्चस्व की जंग का मैदान बन गईं. इन्हीं गलियों से एक नया नाम उभरा... अनंत सिंह. उनके साथ मोकामा का चेहरा भी बदल गया. जहां कभी खेतों में दाल की फसलें लहलहाती थीं. वहां अब बंदूकों की आवाज गूंजने लगी. हर साल गोलीबारी की दर्जनों वारदातें होती और मोकामा की मिट्टी बार-बार लाल होती रही.
मोकामा के लदमा गांव में 1961 में जन्मे अनंत सिंह ने गरीबी से नहीं, गोली से अपनी पहचान बनाई. भूमिहार समाज से आने वाले अनंत 1990 के दशक में राजनीति की सीढ़ी पर चढ़े और विधायक बने. कभी जेडीयू तो कभी राजद. हर पार्टी में उनकी मौजूदगी रही, लेकिन पहचान हमेशा एक ही रही डॉन की. अपहरण और रंगदारी जैसे 30 से ज्यादा केस दर्ज रहे. 2019 में उनके घर से AK-47 बरामद होने पर उन्हें 10 साल की सजा हुई. लेकिन 2024 में वे बरी हो गए.
दुलारचंद यादव... टाल के पुराने बादशाह
गंगा किनारे बसे टाल क्षेत्र में दशकों तक दुलारचंद यादव का नाम डर का पर्याय था. 1980 के दशक से ही वे इस इलाके के ‘अघोषित राजा' बने रहे. जमीन कब्जा, रंगदारी और फायरिंग के मामलों में लिप्त. 2019 में उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन उनका दबदबा बरकरार रहा. 76 वर्षीय दुलारचंद खुलेआम अनंत सिंह को ललकारते थे. 2025 के चुनाव में वे जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के लिए प्रचार कर रहे थे. लेकिन 30 अक्टूबर 2025 को गोलियों ने उनकी कहानी खत्म कर दी.
गैंगवार की जड़ें और जातीय आग
मोकामा में गैंगवार कोई नई बात नहीं. 1980 से यहां अपराध और राजनीति एक-दूसरे के पूरक बन गए.
अनंत सिंह और विवेका पहलवान की रंजिश, भूमिहार-राजपूत जातीय तनाव और जमीन की लालच ने आग को और हवा दी.
दुलारचंद की हत्या से दहला मोकामा
30 अक्टूबर की शाम घोसवारी में गोलियों की आवाज गूंजी और दुलारचंद यादव की हत्या हो गई. वे जनसुराज के प्रचार में थे और बताया जाता है कि अनंत सिंह के काफिले के पास मौजूद थे. FIR में अनंत सिंह और उनके समर्थकों के नाम हैं. परिवार का आरोप है, 'छोटे सरकार ने ही दादा की हत्या कराई.' लेकिन अनंत का दावा है कि ये सूरजभान की साजिश है.
यहां 5 दिन बाद पहले चरण में वोटिंग है. लेकिन माहौल सन्नाटे से भरा है. अनंत सिंह जेडीयू से, वीणा देवी राजद से और पीयूष प्रियदर्शी जनसुराज से मैदान में हैं. दुलारचंद की हत्या ने चुनाव को हिंसा के मुहाने पर ला खड़ा किया है. अब सवाल है कि क्या इस बार वोट गोली पर भारी पड़ेगा, या मोकामा की मिट्टी फिर से लाल होगी?
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