डीआरडीओ के प्रदर्शन पर मिसाइल वैज्ञानिक डॉ. वीके सारस्वत
नीति आयोग के सदस्य और टॉप मिसाइल साइंटिस्ट डॉ. वीके सारस्वत ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का प्रदर्शन शानदार रहा. डीआरडीओ की तरफ से विकसित स्वदेशी सैन्य हथियारों ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया. इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि DRDO को ध्वस्त करने की सभी कोशिशों को हमेशा के लिए दफना दिया जाना चाहिए.
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DRDO पर क्या बोले मिसाइल साइंटिस्ट
उन्होंने कहा कि 5,000 वैज्ञानिकों वाले डीआरडीओ का मनोबल तब से प्रभावित हुआ जब दो उच्चस्तरीय समितियों ने इसे बड़े स्तर पर पुनर्गठित करने की कोशिश की. दरअसल साल 2016 में डीआरडीओ की समीक्षा के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव डॉ. पी रामा राव की अध्यक्षता में एक सरकारी समिति का गठन किया गया था. इस वजह से अलग-अलग महानिदेशकों की अध्यक्षता में सात प्रौद्योगिकी डोमेन-आधारित क्लस्टर बनाए गए. डॉ. सारस्वत का कहना है कि इससे नौकरशाही और बढ़ गई.
डॉ. सारस्वत ने बताया कि इसके बाद साल 2023 में डीआरडीओ में सुधार के लिए एक 9 सदस्यीय समिति गठित की गई. इस समिति की अध्यक्षता डॉ. के. विजय राघवन ने की, जो कि बेसिक साइंस रिसर्चर थे. हालांकि उनकी रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, इसमें डीआरडीओ को विघटित करने और इसकी यूनिट्स को अन्य मंत्रालयों को सौंपने का सुझाव दिया गया था. यह एक निरर्थक अभ्यास था.

आज दुनिया देख रही DRDO की क्षमता
डॉ. सारस्वत ने एक खास इंटरव्यू में एनडीटीवी से कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने आधुनिक हथियार सिस्टम के निर्माण में डीआरडीओ की क्षमता और योग्यता दुनिया को दिखा दिया. आकाश, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों की सफलता, पाकिस्तानी लक्ष्यों को सटीक रूप से भेदना, चीनी विमानों को निशाना बनाना, यह दिखाता है कि डीआरडीओ के पास ऐसा सिस्टम बनाने की क्षमता और योग्यता है.
डीआरडीओ के पास क्षमता और योग्यता दोनों हैं. जो लोग ये कहते हैं कि डीआरडीओ प्रदर्शन नहीं कर रहा है, आज इसकी हथियार प्रणाली के प्रदर्शन से ये बातें पूरी तरह से गलत साबित हुई हैं.
DRDO पर सवाल उठाने वालों को मिला जवाब
डॉ. सारस्वत ने कहा कि एक समय था जब कुछ आलोचक DRDO को रक्षाहीन अनुसंधान और बेकार संगठन कहते थे. लेकिन DRDO के शानदार प्रदर्शन से आलोचकों को जवाब मिल गया है. ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए साइंटिस्ट ने कहा कि यह डीआरडीओ के बनाए स्वदेशी हथियार प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के साथ भारत द्वारा लड़ा गया एक आत्मनिर्भर युद्ध था.
डीआरडीओ के पास इंडस्ट्री, शिक्षा और देश की 39 प्रयोगशालाओं के साथ रिसर्च एंड डेवलपमेंट का मजबूत सिस्टम है. उन्होंने कहा कि हमारे पास काम करने का एक बहुत ही सुसंगत तरीका है. काम के कोई नियम-कायदे नहीं हैं. DRDO के पास रिसर्च और डेवलपमेंट की एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है.
ऑपरेशन सिंदूर ने DRDO की योग्यता को दिखा दिया
आकाश का उदाहरण देते हुए डॉ. सारस्वत ने कहा कि जब हमें लगा कि भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में आकाश को बनाया जाना चाहिए तो हम दो उत्पादन एजेंसियों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड के पास गए. आकाश के कई सबसिस्टम प्राइवेट सेक्टर से लाए गए. उन्होंने कहा कि
ऑपरेशन सिंदूर और कई पिछली घटनाओं ने यह बता दिया है कि डीआरडीओ के वैज्ञानिक अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों को डिजाइन, विकसित और निर्माण कर सकते हैं, चाहे वे जमीन आधारित, मिसाइल, विमान या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली हों. हथियारों का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे डीआरडीओ कंट्रोल नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि उनको नहीं लगता कि इतना व्यापक स्पेक्ट्रम कहीं और उपलब्ध है.
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