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This Article is From May 14, 2024

चुनाव में कम वोट से बीजेपी को क्‍या वाकई फायदा? अमित शाह के इस बयान का गुणा-भाग समझिए

Lok Sabha Elections: मतदाताओं के मूड को समझना आसान नहीं होता. लेकिन राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक, कम वोटिंग प्रतिशत को आमतौर पर सत्‍ता पक्ष के विरूद्ध देखा जाता है. पिछले 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिले है. ऐसा देखा गया है कि जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी आई है, तब-तब 4 बार सरकार बदल गयी है.

कम वोटिंग परसेंट में भी बीजेपी को हो रहा फायदा...

नई दिल्‍ली:

लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत चर्चा का विषय बना हुआ है. चुनाव के पहले तीन चरणों में मतदाताओं की सुस्‍ती के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं. हालांकि, सोमवार को हुए चौथे चरण के मतदान में कुछ बेहतर मतदान प्रतिशत देखने को मिला. लेकिन गृह मंत्री अमित शाह को इसे लेकर कोई संशय नहीं है कि कम वोटिंग प्रतिशत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को नुकसान नहीं हो रहा है. टाइम्‍स ऑफ इंडिया को दिये एक इंटरव्‍यू में अमित शाह ने कहा कि बीजेपी के पक्ष में सकारात्मक वोट पड़ रहा है. गृह मंत्री ने इस आकलन को खारिज कर दिया कि मतदान प्रतिशत में गिरावट बीजेपी के 400 पार के सफर में बाधा बनेगा. वह कहते हैं कि कम मतदान प्रतिशत विपक्ष के लिए चिंता का विषय होना चाहिए, हमारे लिए नहीं. 

4 चरणों में मतदान प्रतिशत 

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के तहत सोमवार को मतदान में पिछले चरणों की तुलना में कुछ तेजी दिखी और 10 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेश के 96 निर्वाचन क्षेत्रों में 67 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ. निर्वाचन आयोग द्वारा दिये गये आंकड़ों के मुताबिक, रात पौने 12 बजे तक 67.25 प्रतिशत मतदान हुआ, हालांकि, 2019 के संसदीय चुनावों में इस चरण की तुलना में यह वोटिंग प्रतिशत फिर भी कम है. बता दें कि मौजूदा आम चुनाव के पहले चरण में 66.14 प्रतिशत, दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदान हुआ और तीसरे चरण में 65.68 प्रतिशत मतदान हुआ था.

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2019 Vs 2024 वोटिंग परसेंट 

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले फेज की वोटिंग में 65.5 प्रतिशत वोट डाले गए थे. दूसरे फेज में 66.00% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. वहीं, तीसरे चरण में 65.68 प्रतिशत मतदान हुआ. चौथे चरण में  67.25 प्रतिशत मतदान हुआ. 2019 के मुकाबले चारों चरणों में इस बार कम वोटिंग हुई है. साल 2019 लोकसभा चुनाव के पहले चरण में  69.96 प्रतिशत, दूसरे चरण में 70.09% और तीसरे चरण में 66.89 फीसदी मतदान और चौथे चरण में 69.1 प्रतिशत मतदान हुआ था. 

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अमित शाह का दावा- कोई किंतु-परंतु नहीं 

अमित शाह दावा कर रहे हैं कि भाजपा को कम वोटिंग प्रतिशत का नुकसान नहीं हो रहा है. वह तो उल्‍टा यह कह रहे हैं कि इसका नुकसान विपक्ष को उठाना पड़ेगा. केंद्रीय मंत्री ने कहा, "निश्चित तौर पर एनडीए 400 सीटें पार करने जा रहा है. इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है. कम मतदान प्रतिशत विपक्ष के लिए चिंता का विषय होना चाहिए, हमारे लिए नहीं. मैं यह बात भाजपा कार्यकर्ताओं से अपनी बातचीत के आधार पर कह रहा हूं." 

60 करोड़ लाभार्थियों की सेना PM मोदी के साथ खड़ी

अमित शाह कहते हैं, "सबसे ज्यादा संख्या में बीजेपी समर्थकों ने वोट डाला है. लोग विपक्ष को लेकर उत्साहित नहीं हैं, बल्कि वे हमारे बारे में उत्साहित हैं. इसलिए देखिएगा, हमारी जीत का अंतर और सीटें दोनों बढ़ेंगी. जहां तक ​​किसी लहर के न होने की बात की जा रही है, तो आपको बता दूं कि मैं 1975 से चुनाव देख रहा हूं, जब मैं बहुत छोटा था. यह पहली बार है कि हम इस पैमाने का सकारात्मक वोट, विकास का समर्थन देख रहे हैं. हर जगह युवा डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, शेयर मार्केट ग्रोथ जैसी योजनाओं पर चर्चा कर रहे हैं. किसानों में भी कल्याण एवं सशक्तीकरण योजनाओं को लेकर उत्साह है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 60 करोड़ से अधिक लाभार्थियों की एक सेना है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मजबूती से खड़ी है. इससे बीजेपी की जीत सुनिश्चित होगी."

वोटिंग प्रतिशत घटने-बढ़ने पर कब-कब बदली सरकार 

मतदाताओं के मूड को समझना आसान नहीं होता. लेकिन राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक, कम वोटिंग प्रतिशत को आमतौर पर सत्‍ता पक्ष के विरूद्ध देखा जाता है. पिछले 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिले है. ऐसा देखा गया है कि जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी आई है, तब-तब  4 बार सरकार बदल गयी है. हालांकि, एक बार सत्ताधारी दल की वापसी भी हुई है. 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई थी और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी. तब जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी थी. 

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इसके बाद 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी थी. तब विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी थी. साल 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी.  1999 में मतदान में गिरावट हुई, लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ. वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला था. 

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