दिल्ली में प्रदूषण (Air Pollution) का कहर जारी है. लगातार छठे दिन वायु गुणवत्ता बेहद खराब रही. प्रदूषण से लोग परेशान हैं. एनडीटीवी ने जहरीली हवा के कारण होने वाले खतरों पर मेदांता गुरुग्राम में इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन डॉ. अरविंद कुमार से बात की. एनडीटीवी ने उनसे जानना चाहा कि प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य संबंधित खतरों से कैसे निपटा जाए.
जहरीली हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहने से लोगों के स्वास्थ्य पर क्या असर होगा?
डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि यह प्रदूषण की मार हम सभी को को मार रहा है. हर किसी पर इसका प्रभाव पड़ रहा है. सबसे पहले बात करते हैं गर्भवती महिलाओं की. इसका असर गर्भ के शिशु पर भी पड़ेगा. प्रदूषण लोगों के खून तक पहुंच रहा है और इसका प्रभाव भ्रूण को भी प्रभावित करता है. यह प्रदूषण एक नवजात शिशु के लिए 25-30 सिगरेट पीने के बराबर असर कर रहा है. उनकी सांस की नलियों, फेफड़ों में सूजन होगी और उनके पूरे शरीर पर इसका असर होगा. हमारे पास अब ब्रोंकाइटिस, निमोनिया और दमा के मरीज आ रहे हैं.
हवा की गुणवत्ता 'गंभीर' श्रेणी में होना क्या होता है?
AQI हवा में छह कणों और गैसीय पदार्थों के मान से प्राप्त होता है. इसमें मुख्य कारक PM2.5 है. यह सभी कणों में सबसे अधिक हानिकारक है. PM2.5 नाक और गले की बाधा को पार करता है, फेफड़ों में जाता है, वहां जमा हो जाता है और रक्त में अवशोषित हो जाता है. जब फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों को नुकसान की बात आती है तो PM2.5 और छोटे कण सबसे अधिक नुकसान पहंचाते हैं. इसके अलावा गैसें भी नुकसान पहुंचाती हैं.
सबसे अधिक असुरक्षित कौन है?
जो कोई भी इस प्रदूषित हवा में सांस ले रहा है वह असुरक्षित है. सबसे ज्यादा नवजात शिशु पर इसका प्रभाव पड़ेगा. एक वयस्क एक मिनट में लगभग 12-14 बार सांस लेता है, एक शिशु एक मिनट में 40 बार सांस लेता है. जब आप तेजी से सांस लेते हैं, तो आपके शरीर में उतनी ही हवा जाती है. वयस्कों की तुलना में शिशुओं का जोखिम कहीं अधिक होता है. दूसरी बात नवजात बच्चों में उत्तकों का विकास तेजी से होता है. ऐसे में कोई केमिकल जब इन उत्तकों पर हमला करता है तो उसे वो क्षतिग्रस्त कर देता है. गंभीर रूप से प्रभावित होने वाला दूसरा समूह बुजुर्गों का हैं क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है इसलिए उनमें निमोनिया और अन्य समस्याओं से ग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि केवल बच्चे और बुजुर्ग ही इससे प्रभावित होते हैं. वयस्क पर भी इसका बहुत प्रभाव पड़ता है.
पहले से बीमार लोगों को क्या-क्या सावधानी की जरूरत है?
मान लीजिए आप डायबिटीज से पीड़ित हैं, जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गयी है. या आप कैंसर से पीड़ित हैं जिसके लिए आपने इम्यूनोथेरेपी, कीमोथेरेपी आदि ले रहे होंगे जिससे आप पहले से ही खतरे में हैं. सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव प्यूमोनरी डिजीज) से पीड़ित लोग सबसे अधिक असुरक्षित हैं. जो लोग लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उन्हें सीओपीडी होता है जिसमें फेफड़े बहुत कमजोर हो जाते हैं. जब एक सीओपीडी व्यक्ति इस हवा के संपर्क में आता है, तो उनके अंदर निमोनिया विकसित होने लगता है और इससे उनकी जिंदगी खतरे में आ जाती है.
क्या स्कूल बंद करने से बच्चे सुरक्षित हो जाएंगे?
घर के अंदर की हवा कमोबेश बाहर की हवा जैसी ही होती है. हालांकि, राजमार्गों, सड़कों या औद्योगिक क्षेत्रों के पास प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक होता है. जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो दो समस्याएं होती हैं. स्कूल सुबह शुरू होते हैं जब प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है. बच्चे जब स्कूल जाएंगे तो दौड़ेंगे, खेलेंगे, चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें वो एक जगह नहीं बैठ सकते हैं. जब वे दौड़ते हैं तो उनकी श्वसन दर अधिक होती है. इसलिए, वे अधिक जहरीली हवा ग्रहण करते हैं. यही कारण है कि स्कूल बंद कर दिया जाता है. लेकिन यह एक त्वरित प्रतिक्रिया है, कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है. यह बहुत दुखद है कि आठ साल से ऐसा हो रहा है और हम दीर्घकालिक उपाय नहीं कर पाए हैं.
उन लोगों का क्या जो घर पर नहीं रह सकते?
दरअसल, प्रार्थना के अलावा वे कुछ नहीं कर सकते, कि भगवान, मैं अगले 24 घंटों में अमानवीय स्तर के प्रदूषकों वाली इस हवा में 25,000 बार सांस लेने जा रहा हूं, कृपया मुझे सुरक्षित रखें. समाधान क्या हैं? शायद अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र से दूर चले जाएं, लेकिन आप कहां जाएंगे? हवा हर जगह एक जैसी है.
क्या मास्क से मदद मिलेगी?
जहां तक वायु प्रदूषण का सवाल है तो सर्जिकल मास्क या कपड़े का मास्क मदद नहीं करता है. N95 आपकी सुरक्षा करता है, बशर्ते आप अपनी नाक और मुंह को पूरी तरह से ढक लें. यह आपको खतरनाक कणों से बचाता है, लेकिन गैसीय पदार्थ फिर भी अंदर चला जाता है. लेकिन मास्क ही एकमात्र चीज है जो एक व्यक्ति कर सकता है जिसे अपनी आजीविका के लिए बाहर जाना पड़ता है. लेकिन उसे तेज चलने या कोई भी व्यायाम करने से बचना चाहिए.
अन्यथा, आपको सांस लेने में दिक्कत महसूस होगी और आपका दम भी घुट सकता है. कभी भी N95 मास्क पहनकर व्यायाम न करें. साथ ही आप इसे लगातार पहन भी नहीं सकते. लेकिन जो लोग अस्थमा के रोगी हैं या सीओपीडी से पीड़ित हैं वे इन मास्क को लंबे समय तक नहीं पहन सकते क्योंकि उन्हें घुटन और असहजता महसूस होती है. बच्चे भी इसे हटा देते हैं. मास्क को प्रदूषण के समाधान के रूप में रिकमांड नहीं किया जाना चाहिए, न ही एयर प्यूरीफायर ही कोई समाधान है.
क्या एयर प्यूरीफायर रक्षा करता है?
यदि कोई कहता है कि एयर प्यूरीफायर प्रदूषण का समाधान है, तो उत्तर 'नहीं' में होगा. एयर प्यूरीफायर एक एयर कंडीशनर की तरह होता है जो आपके कमरे से हवा खींचता है, इसे एक यांत्रिक फिल्टर, आमतौर पर HEPA फिल्टर से गुजारता है, और फिर हवा को वापस कमरे में फेंक देता है. इसके प्रभावी होने के लिए कमरे को सील करना होगा, बंद करना होगा, खिड़कियां और दरवाजे बंद करने होंगे.
क्या घर के अंदर व्यायाम करना सुरक्षित है?
जब तक आप अंदर बेहतर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं कर सकते, तब तक घर के अंदर ज़ोरदार व्यायाम से भी बचना चाहिए. आख़िर बाहर की हवा तो अंदर भी आती है.
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