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This Article is From Sep 14, 2023

KG-D6 गैस ब्लॉक केस: RIL के खिलाफ सरकार की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट करेगा सुनवाई

ये याचिका ऑयल एंड नेचुरल गैस ब्लॉक से गैस की गलत हेराफेरी से जुड़ी है. जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनि पुष्कर्णा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की ये अनुमति दी है. मामले पर सुनवाई के लिए अदालत ने 12 फरवरी 2024 की तारीख तय की गई है.

KG-D6 गैस ब्लॉक केस: RIL के खिलाफ सरकार की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट करेगा सुनवाई
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट ने KG-D6 गैस ब्लॉक के विवाद ( KG-D6 Gas Block Arbitration Case) से जुड़ी सरकार की याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जता दी है. ये विवाद पेट्रोलियम मंत्रालय और रिलायंस (RIL) के बीच है. मामले पर सुनवाई के लिए 12 फरवरी की तारीख तय की गई है. ये याचिका ऑयल एंड नेचुरल गैस ब्लॉक से गैस की गलत हेराफेरी से जुड़ी है. जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनि पुष्कर्णा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की ये अनुमति दी है.

इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने दिया था RIL के पक्ष में फैसला
इससे पहले मई में दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस अनूप जयराम भंबवानी की सिंगल जज बेंच ने मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. बेंच ने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल द्वारा RIL के पक्ष में दिए फैसले पर सुनवाई करने से इनकार किया था, बेंच को फैसले में कोई खामी नजर नहीं आई थी.

इंटरनेशनल आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने माना था कि रिलायंस को पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी में अपने कान्ट्रैक्ट एरिया के पास वाले इलाके से गैस की बिक्री की अनुमति दी गई थी.

क्या है पूरा विवाद?
रिलायंस का पेट्रोलियम मंत्रालय और, Niko Ltd और BP PLC के साथ प्राकृतिक गैस उत्खनन का करार था. ये ब्लॉक ONGC को आवंटित ब्लॉक के बगल में था. 2011 में ONGC ने डायरेक्टोरेट ऑफ हाइड्रोकार्बन्स को उनके और रिलायंस के ब्लॉक के बीच संभावित गैस माइग्रेशन के बारे में बताया. 2014 में ONGC मामले को लेकर हाई कोर्ट पहुंच गई. हाईकोर्ट ने मंत्रालय को एक्सपर्ट एजेंसी से जांच रिपोर्ट बनवाने के लिए कहा, जिसमें गैस माइग्रेशन की पुष्टि हुई.

2015 में मंत्रालय ने रिपोर्ट का विश्लेषण और आगे की कार्रवाई पर सुझाव देने के लिए एक सदस्यीय कमिटी बनाई. इस कमिटी ने कहा कि रिलायंस को गलत ढंग से ONGC ब्लॉक से फायदा मिला है. ध्यान देने वाली बात ये रही कि इस रिपोर्ट में कोई भी एक्सपर्ट मौजूद नहीं था और रिलायंस ने कमिटी की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया.

रिलायंस से सरकार ने मांगा मुआवजा
इस रिपोर्ट के आधार पर मंत्रालय ने रिलायंस से 1.72 बिलियन डॉलर की मांग की. मंत्रालय ने कहा कि ब्लॉक से गैस डायवर्ट करने के एवज में 1.55 बिलियन डॉलर और बचे हुए- 174 मिलियन डॉलर 'Unjust Enrichment' के लिए दिए जाएं.

जवाब में रिलायंस ने PSA कॉन्ट्रैक्ट का आर्बिट्रल क्लॉज का इस्तेमाल किया. जब ट्रिब्यूनल ने रिलायंस के पक्ष में 2:1 से फैसला दिया, तो मंत्रालय ने आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलेशन एक्ट के सेक्शन 34 के तहत कोर्ट जाने का फैसला किया.
 

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