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2 साल में 66 हॉस्पिटलों में लग चुकी आग, आखिर दिल्ली में क्यों जल रहे इतने हॉस्पिटल?

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि लापरवाही बरतने वाले या गलत काम में लिप्त लोगों को सख्त से सख्त सजा दी जाएगी. घटना के बाद, जीटीबी अस्पताल पहुंची शाहदरा की जिलाधिकारी को बच्चों के परिवार के सदस्यों के गुस्से का सामना करना पड़ा, जिन्होंने ‘‘हमें इंसाफ चाहिए’’ नारे लगाए.

2 साल में 66 हॉस्पिटलों में लग चुकी आग, आखिर दिल्ली में क्यों जल रहे इतने हॉस्पिटल?
इस साल फरवरी में दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में आग लगी थी.
नई दिल्ली:

दिल्ली में एक शिशु देखभाल केंद्र में आग लगने से सात नवजात बच्चों की मौत हो गई. 25 दिन के एक बच्चे को छोड़कर अन्य सभी शिशु महज 15 दिन के थे. दिल्ली में पिछले कई सालों से अस्पताल में आग लगने की कई घटनाएं सामने आई है. पिछले दो सालों में राजधानी के कुल 66 अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं घटीं. आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 30 मामले और पिछले साल 36 आग लगने के मामले दर्ज किए गए थे. वहीं इस साल फरवरी में दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में आग लगने की घटना सामने आई थी. मरीजों और अस्पताल के कर्मचारियों सहित लगभग 50 लोगों को इस हादसे में बचाया गया था. अस्पताल की तीसरी मंजिल के आपातकालीन वार्ड में ये आग लगी थी. पुलिस और अस्पताल के कर्मचारियों ने मरीजों को भूतल से बाहर निकाला था.

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आग में झुलसे 7 बच्चे

अस्पताल में आग लगने का हाल ही का मामला दिल्ली के विवेक विहार केयर न्यू बोर्न एंड चाइल्ड हॉस्पिटल का है. जहां पर शनिवार रात को आग लग गई. इस अस्पताल में 12 नवजात शिशु भर्ती थे. आग में झुलसकर 7 बच्चों की मौत हो गई. जबकि अन्य 5 को अस्पताल में भर्ती किया गया है. जहां उनका इलाज चल रहा है. इस अस्पताल में कोई आपातकालीन गेट नहीं था. लोगों ने खिड़की तोड़कर बच्चों को बाहर निकाला था. 

दिल्ली सरकार ने अग्निकांड की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं. एक आदेश में, संभागीय आयुक्त अश्विनी कुमार ने शाहदरा की जिलाधिकारी को घटना की जांच करने का निर्देश दिया. पुलिस ने कहा कि लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के अलावा, अस्पताल में योग्य डॉक्टर भी नहीं थे और अग्निशमन विभाग से कोई मंजूरी भी नहीं ली गई थी.

पुलिस उपायुक्त (शाहदरा) ने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) द्वारा ‘बेबी केयर न्यू बोर्न चाइल्ड हॉस्पिटल' को जारी किया गया लाइसेंस 31 मार्च को ही समाप्त हो चुका है.'' उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि उक्त अस्पताल को जारी किया गया लाइसेंस भी केवल पांच बिस्तरों की ही अनुमति देता है.''
 

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अस्पताल में नहीं था आपातकालीन निकास

पुलिस ने कहा कि अस्पताल में आग लगने की स्थिति से निपटने के लिए वहां कोई अग्निशामक यंत्र नहीं लगाया गया था और इसके अलावा किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में अस्पताल में कोई आपातकालीन निकास भी नहीं था. इस बीच, अग्निशमन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि अस्पताल ने विभाग से कोई एनओसी नहीं ली थी. आग पर काबू पाने के लिए दमकल की 16 गाड़ियों को लगाया गया था. मंजिला इमारत में रखे ऑक्सीजन सिलेंडर में विस्फोट हुआ, जिससे आसपास की इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं.

आखिर क्यों हो रहे हैं इतने हादसे

अस्पतालों में आग लगने का मुख्य कारण लापरवाही है. कई अस्पतालों का निर्माण करते हुए आपातकालीन गेट तक नहीं बनाया जाता है. विवेक विहार केयर न्यू बोर्न एंड चाइल्ड हॉस्पिटल में भी आपातकालीन गेट नहीं था. साथ ही इनके पास एनओसी भी नहीं था. अग्निशमन सेवा द्वारा फायर एनओसी जारी किया जाता है. इसके तहत ये सत्यापित किया जाता है कि इमारत में आग से संबंधित किसी भी दुर्घटना की संभावना है कि नहीं. हादसा होने पर उसके पास प्राप्त उपकरण है कि नहीं.

इसके साथ ही अस्पतालों में लगने वाली मशीनों में बिजली का इतना लोड हो जाता है कि जिससे शॉर्ट सर्किट भी हो जाता है. साथ ही कई अस्पतालों में बिजली के सुरक्षा मानकों का भी पालन नहीं किया जाता, जिससे बड़े हादसे हो जाते हैं.

दिल्ली फायर सर्विस के एक ऑफिसर के अनुसार हर अस्पताल में आपातकालीन गेट होने चाहिए. ताकि आपातकालीन स्थिति में रोगियों को त्वरित से निकाला जा सके. फायर सर्विस के कर्मचारियों के पास फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए पांच से छह मिनट का समय होता है. इसलिए, कंपार्टमेंटेशन की आवश्यकता है. कंपार्टमेंटेशन एक भवन डिजाइन और निर्माण तकनीक है जिसकी मदद से इमारत को अलग-अलग खंडों में विभाजित किया जाता है.

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