दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह ने गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर मानहानि के एक मामले में 26 जुलाई को उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए जारी समन को चुनौती देते हुए सत्र अदालत में मंगलवार को पुनरीक्षण याचिकाएं दायर की.
सत्र अदालत के न्यायाधीश एजे कनानी ने पुनरीक्षण याचिकाओं पर गुजरात सरकार और गुजरात विश्वविद्यालय को नोटिस जारी किया. मामले पर अगली सुनवाई के लिए पांच अगस्त की तारीख तय की.
गुजरात विश्वविद्यालय के पंजीयक पीयूष पटेल ने गुजरात हाईकोर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री पर गुजरात सूचना आयुक्त के आदेश को रद्द करने के बाद केजरीवाल और सिंह की टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज करायी थी.
केजरीवाल और सिंह ने आपराधिक दंड संहिता की धारा 397 के तहत अलग-अलग पुनरीक्षण याचिकाएं दायरी की थी. एक मजिस्ट्रेट अदालत ने अप्रैल में गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दर्ज करायी एक शिकायत के आधार पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे को मंजूर किया था और आप के दोनों नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षणिक डिग्री के संबंध में उनकी ‘‘व्यंग्यात्मक'' तथा ‘‘अपमानजक'' टिप्पणियों को लेकर बयान दर्ज कराने के लिए समन जारी किया था.
इस मामले में 13 जुलाई को हुई सुनवाई में बचाव पक्ष के वकील ने छूट संबंधी आवेदन दायर कर कहा कि केजरीवाल और सिंह दिल्ली में भारी बारिश के कारण पेश नहीं हो सके. इसके बाद अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एसजे पांचाल ने केजरीवाल और सिंह को 26 जुलाई को उपस्थित रहने का निर्देश दिया.
‘आप' के दोनों नेताओं ने पुनरीक्षण याचिकाओं में कहा कि मजिस्ट्रेट अदालत ने समन का आदेश पारित करते हुए ‘‘कानून की त्रुटि'' की है. इसमें कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 199 कहती है कि मानहानि की शिकायत ‘‘पीड़ित व्यक्ति'' ही दायर कर सकता है। हालांकि, शिकायत में भी ‘‘यह आरोप नहीं लगाया गया है कि पीयूष पटेल ने अपनी मानहानि किए जाने का दावा किया है.''
उन्होंने अदालत ने मानहानि की मुख्य शिकायत को रद्द करने का भी अनुरोध किया है. गुजरात विश्वविद्यालय के पंजीयक द्वारा दर्ज करायी शिकायत में कहा गया है कि दोनों नेताओं ने संवाददाता सम्मेलनों और ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को लेकर विश्वविद्यालय को निशाना बनाते हुए 'अपमानजनक' बयान दिए.
इसमें कहा गया कि गुजरात विश्वविद्यालय के खिलाफ उनकी टिप्पणियां अपमानजनक थीं और उनका उद्देश्य विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना था.
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