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This Article is From Oct 21, 2011

नोएडा एक्स. : 3 गांवों में जमीन अधिग्रहण रद्द

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नोएडा और ग्रेटर नोएडा जमीन अधिग्रहण मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाहबेरी, देवला और असदुल्लाहपुर गांव की जमीनों का अधिग्रहण रद्द कर दिया है।
इलाहाबाद: नोएडा और ग्रेटर नोएडा जमीन अधिग्रहण मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाहबेरी, देवला और असदुल्लाहपुर गांव की जमीनों का अधिग्रहण रद्द कर दिया है। अदालत ने बाकी गांवों में किसानों को बढ़ी हुई दर से (64% अधिक) मुआवजा और 10% विकसित जमीन देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने कहा है कि इन तीन गांवों में जिन किसानों ने मुआवजा ले लिया है, वे मुआवजा जमाकर अपनी जमीन वापस ले सकते हैं। अदालत ने 40 गांवों में बिल्डरों को फिलहाल निर्माण रोक कर एनसीआर प्लानिंग बोर्ड से मंजूरी लेने को कहा है, जिसके बाद वे फिर से निर्माण कार्य शुरू कर सकते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हुए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली 491 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जो आदेश दिया है वे निवेशकों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। गौरतलब है कि नोएडा के 23 और ग्रेटर नोएडा के 40 गांव के किसानों की ओर से दाखिल इन याचिकाओं में किसानों ने करीब 5,000 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण को चुनौती दी थी। किसानों का कहना है कि अथॉरिटी ने अर्जेंसी क्लॉज लगाकर उनकी जमीन औने-पौने भाव में ले ली और बाद में बड़े-बड़े बिल्डरों को बेच दिया। हाईकोर्ट के तीन जज जस्टिस एसयू खान, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस वीके शुक्ल ने 30 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।न्यायालय ने इस बात को गंभीरता से लिया कि जिले में आपात धारा लगाकर नियोजित औद्योगिक विकास के उद्देश्य से व्यापक स्तर पर भूमि का अधिग्रहण किया गया, लेकिन बाद में इसे रिहाइशी परिसरों के निर्माण के लिए निजी बिल्डरों को सौंप दिया गया। पीठ ने कहा, राज्य के मुख्य सचिव को एक ऐसे अधिकारी जो सचिव के रैंक से नीचे न हो, के जरिए निजी बिल्डरों को भूमि आबंटन की संपूर्ण प्रक्रिया की जांच कराने और इसकी रपट राज्य सरकार को सौंपने का निर्देश दिया जाता है। किसानों की ओर से पेश हुए एक वकील ने कहा, प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से एक तरह का माफिया काम कर रहा है क्योंकि जिस तरह से भूमि का अधिग्रहण किया गया, वह अनुचित था। उन्होंने कहा, मेरी निवेशकों से पूरी सहानुभूति है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यह विवाद पूरी तरह से किसानों और बिल्डरों के बीच है। मुआवजा प्राप्त करने वाले इतारा गांव के किसान सुरेन्द्र यादव ने कहा, हम इस आदेश से संतुष्ट नहीं है। इसमें नया कुछ नहीं। हम यह सौदा दो-तीन महीने पहले कर सकते थे। अगर वे इसे खत्म नहीं करते तो हम उच्चतम न्यायालय जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून की आपात धारा लागू करना याचिकाकर्ताओं के बीच नाराजगी की एक प्रमुख वजह रही है और प्रभावित किसानों का दावा है कि इससे वे आपत्ति उठाने एवं बेहतर मुआवजे के लिए मोलभाव करने के अवसर से वंचित हो गए। इसके अलावा, वे भूमि के इस्तेमाल में बदलाव पर भी आपत्ति करते रहे है और उनका कहना था कि जहां सरकारी अधिसूचना में नियोजित औद्योगिक विकास का हवाला देकर भूमि अधिग्रहण किया गया, इसे बाद में बिल्डरों को मकान बनाने के लिए सौंप दिया गया। कई बिल्डरों एवं फ्लैट मालिकों ने भी उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी थी और न्यायालय से अनुरोध किया था कि प्रतिकूल आदेश से वे बुरी तरह प्रभावित होंगे। गौरतलब है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन के इलाकों का विकास मायावती सरकार की प्राथमिकता सूची में काफी उपर रहा है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है और सरकार किसानों के भारी विरोध एवं विपक्षी दलों द्वारा आलोचना किए जाने से खुद को असमंजस की स्थिति में पा रही है। इससे पहले, 12 मई को उच्च न्यायालय ने गौतम बुद्ध नगर के शाहबेरी गांव में 156 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इस गांव की भूमि का अधिग्रहण औद्योगिक विकास के नाम पर किया था, लेकिन बाद में इसे निजी बिल्डरों को बेच दिया था। उच्च न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील की थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने ठुकरा दिया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन जजों की एक विशेष पीठ का गठन किया था।

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नोएडा एक्सटेंशन, जमीन विवाद, भूमि अधिग्रहण, इलाहाबाद हाईकोर्ट
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