- दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि के उस विज्ञापन पर सवाल उठाया है, जिसमें डाबर के च्यवनप्राश को "धोखा" बताया गया था.
- हाई कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ दलीलों को सुनते हुए सवाल किया कि आप अन्य को धोखा कैसे कह सकते हैं.
- अदालत ने कहा कि पतंजलि सर्वश्रेष्ठ होने का दावा कर सकता है लेकिन अन्य उत्पादों को धोखेबाज नहीं कह सकते.
च्यवनप्राश के एक विज्ञापन का लेकर पतंजलि और डाबर आमने-सामने है. दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि के उस विज्ञापन पर सवाल उठाया है, जिसमें डाबर के च्यवनप्राश को "धोखा" बताया गया था. हाई कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ दलीलों को सुनते हुए सवाल किया कि आप अन्य को धोखा कैसे कह सकते हैं? पतंजलि पर अपने उत्पाद का प्रचार करने वाले विज्ञापन को लेकर डाबर ने मुकदमा दायर किया है. हाई कोर्ट ने इस मुकदमे में अंतरिम रोक लगाने को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापन में कथित तौर पर अन्य सभी च्यवनप्राश ब्रांडों को "धोखा" कहा गया था. गुरुवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस तेजस करिया ने पतंजलि से सवाल किया कि वे अन्य कंपनियों द्वारा तैयार च्यवनप्राश को "धोखा" कैसे कह सकते हैं.
सर्वश्रेष्ठ का दावा कर सकता है, लेकिन...: हाई कोर्ट
उन्होंने टिप्पणी की कि पतंजलि सर्वश्रेष्ठ होने का दावा तो कर सकता है, लेकिन यह नहीं कह सकता है कि अन्य धोखेबाज हैं. अदालत ने पूछा, "आप कह रहे हैं कि सभी धोखेबाज हैं और मैं असली हूं. आप अन्य सभी च्यवनप्राश को धोखेबाज कैसे कह सकते हैं? आप घटिया कह सकते हैं, लेकिन धोखेबाज नहीं कह सकते... क्या डिक्शनरी में "धोखा" के अलावा कोई और शब्द उपलब्ध नहीं है, जिसका इस्तेमाल किया जा सके."
अदालत ने कहा, "धोखा एक नकारात्मक शब्द है, अपमानजनक. आप कह रहे हैं कि वे धोखेबाज हैं और लोग धोखा खा रहे हैं."
पतंजलि पर झूठा दावा करने का भी लगाया आरोप
डाबर ने पतंजलि पर यह झूठा दावा करने का भी आरोप लगाया है कि उसके च्यवनप्राश में "51 आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां और केसर" हैं, जबकि 2014 में जारी एक सरकारी एडवायजरी में इसी दावे को भ्रामक बताया गया था.
इसके अलावा डाबर का तर्क है कि किसी पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि के उपसर्ग के रूप में "विशेष" शब्द का प्रयोग औषधि नियमों के नियम 157(1-बी) का उल्लंघन करता है, जो आयुर्वेदिक औषधियों के भ्रामक लेबलिंग पर रोक लगाता है.
अन्य च्यवनप्राशों का अपमान कर रही पतंजलि: डाबर
वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने डाबर की ओर से दलील दी और कहा कि च्यवनप्राश एक प्रकार का उत्पाद है और अन्य सभी च्यवनप्राशों को धोखा कहकर पतंजलि उन सभी का अपमान कर रही है.
सेठी ने कहा कि किसी को धोखा कहना अपने आप में साफ तौर पर अपमानजनक है. वे कह सकते हैं कि 'मैं आपको नहीं पहचानता', लेकिन वे सभी को एक ही चश्मे से देखते हैं. उन्होंने कहा कि एक स्वयंभू योग गुरु की ओर से यह बात कहीं अधिक गंभीर है क्योंकि लोग किसी योग गुरु को सच मानते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि डाबर अपने च्यवनप्राश को संविधान द्वारा निर्धारित शास्त्रों के अनुसार तैयार कर रहा है और यदि कोई उत्पाद ऐसा करता है तो उसे धोखा नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने कहा, “यह सब दहशत फैलाने के लिए किया जा रहा है. मेरी 100 साल पुरानी कंपनी है. मेरे पास 61% शेयर हैं. 5 दिनों में (विज्ञापन को) 9 करोड़ बार देखा गया है. यह दिखाता है कि लोग कितने संवेदनशील हैं.”
पतंजलि की ओर से हाई कोर्ट में दी गई ये दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर पतंजलि की ओर से इस विज्ञापन का बचाव करने के लिए पेश हुए. उन्होंने कहा कि पतंजलि का विज्ञापन दिखावटी और अतिशयोक्तिपूर्ण है, जो कानून के तहत जायज है. उन्होंने कहा, “हमें विज्ञापन के पूरे अर्थ को समझना होगा. सही हो या गलत, यह अतिशयोक्ति ही है. मैं कह रहा हूं कि बाकी सभी अप्रभावी हैं. मैं यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि 'बाकी च्यवनप्राश को भूल जाओ, सिर्फ मेरा ही खाओ'. मुझे यह कहने की इजाजत है कि मैं सबसे अच्छा हूं. मैं कह रहा हूं कि बाकी सभी मेरे मुकाबले कमतर हैं.”
उन्होंने आगे कहा कि डाबर डाइपरसेंसिटिव हो रहा है.
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