उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश के एक मंदिर में सात वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म करने के आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसे 30 वर्ष कैद की सजा सुनाई और उसके कृत्य को ‘‘बर्बर'' करार दिया. मंदिर में दुष्कर्म की यह घटना 2018 में हुई थी. पीड़ित बच्ची की रिश्तेदार ने नाबालिग को अगवा कर उससे दुष्कर्म करने के मामले में आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. यह अपराध किए जाने के समय आरोपी की उम्र 40 वर्ष थी. दोषी, बच्ची को एक मंदिर में ले गया था, जहां उसने इस अपराध को अंजाम दिया.
आरोपी के दोषी पाये जाने के बाद निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376बी (12 साल से कम उम्र की बच्ची से दुष्कर्म) के तहत मौत की सजा सुनाई थी लेकिन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोषी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने याचिकाकर्ता की मौजूदा उम्र और पहले से ही कारावास में रहने की बात को संज्ञान में लिया. न्यायालय ने उसकी सजा में बदलाव करते हुए दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
पीठ ने कहा कि किसी भी मंदिर में जाने से पीड़िता को इस दुर्भाग्यपूर्ण, बर्बर घटना की बुरी याद परेशान कर सकती है और उसके भावी विवाहित जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.
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