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Explainer: 6 साल या उम्रभर बैन, नेताओं को क्या मिलती रहनी चाहिए छूट? क्या कहता है कानून; यहां जानिए हर बात

दुनिया के कई देशों में दोषी राजनेताओं के लिए अलग-अलग नियम लागू हैं. अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में दोषी नेताओं पर अस्थायी प्रतिबंध का चलन है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर आजीवन प्रतिबंध की मांग को कठोर बताया है.

Explainer: 6 साल या उम्रभर बैन, नेताओं को क्या मिलती रहनी चाहिए छूट? क्या कहता है कानून; यहां जानिए हर बात
नई दिल्ली:

राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना 'कठोर' होगा और वर्तमान में लागू छह साल की अयोग्यता की अवधि निवारक के रूप में पर्याप्त है. यह बयान अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से आया है. जनहित याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध और सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निपटारे की मांग की गई थी. केंद्र सरकार की तरफ से दायर हलफनामे के बाद एक बार फिर राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने को लेकर नई बहस की शुरुआत हो गई है. इस मुद्दे ने आम लोगों के बीच भी नई चर्चा को जन्म दिया है कि क्या दोषी नेताओं को छह साल बाद फिर से चुनाव लड़ने की छूट मिलनी चाहिए या उन्हें स्थायी रूप से अयोग्य कर देना चाहिए? 

क्या कहता है कानून? 
गौरतलब है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) भारत में चुनावी प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों की योग्यता-अयोग्यता को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है. इस अधिनियम की धारा 8 आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की अयोग्यता से संबंधित है. धारा 8(1) के तहत, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा मिलती है, तो वह दोषसिद्धि की तारीख से छह साल तक या जेल से रिहाई के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहता है. धारा 8(3) में यह प्रावधान है कि यदि सजा दो साल से कम है, तो अयोग्यता केवल सजा की अवधि तक लागू होगी. वहीं, धारा 9 भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए बर्खास्त किए गए लोक सेवकों को पांच साल तक अयोग्य ठहराती है.

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केंद्र सरकार के हलफनामा में क्या है?  
इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का कहना है कि यह व्यवस्था "आनुपातिकता और तर्कसंगतता" के सिद्धांतों पर आधारित है. सरकार का कहना है कि छह साल की अवधि अपराध की गंभीरता को दंडित करने और निवारक प्रभाव डालने के लिए पर्याप्त है, जबकि आजीवन प्रतिबंध को "अनुचित कठोरता" माना जा सकता है. हालांकि, याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय का मानना है कि यह प्रावधान राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में नाकाफी है और दोषी नेताओं को जनप्रतिनिधि बनने से स्थायी रूप से रोकना चाहिए. 

  • अयोग्यता की अवधि तय करना संसद का विशेषाधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 के तहत दिया गया है. 
  • संसद को अयोग्यता के आधार और अवधि निर्धारित करने की शक्ति प्राप्त है.
  • आजीवन प्रतिबंध उचित है या नहीं, यह सवाल पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.
  • दंड का प्रभाव समय तक सीमित करना कानून का स्थापित सिद्धांत है.
  • दंड को एक निश्चित समय तक सीमित करके रोकथाम सुनिश्चित की जाती है और अनावश्यक कठोरता से बचा जाता है.

दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों में क्या हैं प्रावधान
दुनिया के कई देशों में दोषी राजनेताओं के लिए अलग-अलग नियम लागू हैं. अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में दोषी नेताओं पर अस्थायी प्रतिबंध का चलन है. भारत का छह साल का नियम वैश्विक मानकों के अनुरूप दिखता है, लेकिन क्या यह देश की विशिष्ट परिस्थितियों में पर्याप्त है, यह सवाल बना हुआ है.

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका में कोई केंद्रीय कानून दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से स्थायी रूप से अयोग्य नहीं करता है.  हालांकि, कुछ राज्यों में ऐसे प्रतिबंध हैं.  फ्लोरिडा जैसे राज्य में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को मतदान और चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, लेकिन सजा पूरी होने और कुछ शर्तों के बाद ये अधिकार बहाल हो सकते हैं. 
  • यूनाइटेड किंगडम: यूनाइटेड किंगडम में यदि कोई सांसद किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे एक साल से अधिक की सजा मिलती है, तो वह स्वतः संसद से अयोग्य हो जाता है.  यह अयोग्यता सजा की अवधि तक रहती है, न कि आजीवन. 
  • ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में संविधान की धारा 44 के तहत, एक साल से अधिक सजा पाने वाला व्यक्ति संसद के लिए अयोग्य हो जाता है, लेकिन यह प्रतिबंध सजा पूरी होने के बाद समाप्त हो जाता है.  
  • ब्राजील: ब्राजील में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आठ साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जो सजा पूरी होने के बाद शुरू होता है. यह भारत के छह साल के नियम से अधिक सख्त है, लेकिन आजीवन नहीं है.  

भारत में कई नेताओं पर लग चुके हैं बैन
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों के तहत कई प्रमुख नेताओं को अयोग्यता का सामना करना पड़ा है.  इस कानून के दायरे में लगभग तमाम दलों के नेता आए हैं. 

  • लालू प्रसाद यादव: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को 2013 में चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया था.  उन्हें पांच साल की सजा मिली थी. लालू यादव को कई मामलों में सजा मिली है. लालू यादव पर यह नियम लागू है. 
  • राशिद मसूद: कांग्रेस नेता राशिद मसूद को 2013 में एमबीबीएस सीट आवंटन घोटाले में चार साल की सजा मिली. इसके चलते वह राज्यसभा से अयोग्य हो गए थे. 
  • जयललिता: तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता को 2014 में आय से अधिक संपत्ति मामले में चार साल की सजा मिली. वह विधानसभा से अयोग्य हो गईं, लेकिन 2015 में हाई कोर्ट से बरी होने के बाद फिर से चुनाव लड़ीं थी. 
  • ओम प्रकाश चौटाला: इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के नेता ओम प्रकाश चौटाला को 2013 में शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा मिली. वह हरियाणा विधानसभा से अयोग्य हुए और अभी भी सजा काट रहे हैं.
  • मधु कोड़ा: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को 2017 में कोयला घोटाले में तीन साल की सजा मिली थी.

 पक्ष और विपक्ष में क्या हैं तर्क? 
इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष में कई तर्क हैं. समर्थकों का कहना है कि आजीवन प्रतिबंध से राजनीति में शुचिता आएगी. उनका तर्क है कि अगर एक सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचार के लिए आजीवन सेवा से अयोग्य कर दिया जाता है, तो जनप्रतिनिधियों के लिए इससे कम सजा क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 फरवरी 2025 को सुनवाई के दौरान इसी ओर इशारा किया था, जब जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, कानून तोड़ने वाला कानून बनाने वाला कैसे बन सकता है?

वहीं, केंद्र सरकार और कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि आजीवन प्रतिबंध बहुत कठोर होगा और यह व्यक्ति के सुधार के अधिकार को छीन सकता है. उनका कहना है कि छह साल की अवधि दंड और पुनर्वास के बीच संतुलन बनाती है. इसके अलावा, यह भी तर्क दिया जाता है कि आजीवन प्रतिबंध का राजनीतिक दुरुपयोग हो सकता है, खासकर जब सत्ताधारी दल विपक्षी नेताओं को निशाना बना सकते हैं.

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