
- कांस्टीट्यूशन क्लब की स्थापना फरवरी 1947 में संविधान सभा सदस्यों के सामाजिक मेल-जोल बढ़ाने के लिए हुई थी.
- यह क्लब केवल वर्तमान और पूर्व सांसदों के लिए है, जिसमें लगभग एक हजार तीन सौ सदस्य शामिल हैं.
- क्लब का पहला चुनाव 2009 में कराया गया था, इसके बाद हर पांच साल में चुनाव होता रहा है.
राजधानी दिल्ली का राजनीतिक माहौल आज काफी गर्म है. इसकी वजह बना है लुटियंस जोन में बना नताओ का कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव.यह एक ऐसा क्लब है, जिसके सदस्य केवल पूर्व और वर्तमान संसद सदस्य ही हो सकते हैं. इस क्लब की स्थापना उस समय हुई थी, जब देश आजाद भी नहीं हुआ था. कांस्टीट्यूशन क्लब का रजिस्ट्रेशन 2002 में सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत कराया गया था.आइए हम आपको बताते हैं इस क्लब के बारे में.
क्यों की गई थी कांस्टीट्यूशन क्लब की स्थापना
भारतीय संविधान सभा के सदस्यों के सामाजिक मेल-जोल बढ़ाने और क्लब जीवन की सुविधाएं देने के उद्देश्य से इस क्लब की स्थापना फरवरी 1947 में की गई थी. आजादी के बाद इसे सांसदों के क्लब के रूप में मान्यता मिली. इसकी औपचारिक उद्घाटन 1965 में राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था. यह देश की राजधानी दिल्ली में संसद के पूर्व और वर्तमान सदस्यों के मेलजोल का अवसर देता है. इस समय करीब 1300 पूर्व और वर्तमान संसद सदस्य इस क्लब के सदस्य हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी का नाम इसके सदस्यों में शामिल हैं.
शुरू में यह क्लब बहुत सक्रिय नहीं रहा. लेकिन 1998-99 के दौरान तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने एक विजन कमेटी का गठन किया था. इसी कमेटी ने इस क्लब का कायाकल्प किया. बिहार के सारण से सात बार के सांसद बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी को इस क्लव का सचिव (प्रशासन) नामित किया गया था. यूपीए सरकार में लोकसभा अध्यक्ष रहे वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी के कार्यकाल में क्लब में चुनाव आधारित व्यवस्था की शुरुआत की गई. दो अगस्त 2008 को क्लब के बायलॉज को स्वीकृति मिली. इसके बाद 18 फरवरी 2009 को इसके गवर्निंग काउंसिल का पहला चुनाव कराया गया.

हिमाचल की सांसद कंगना रनौत से वोट की अपील करते संजीव बालियान.
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किसे मिलती है कांस्टीट्यूशन क्लब की सदस्यता
इस क्लब की सदस्यता केवल वर्तमान और पूर्व सांसदों को ही दी जाती है. गवर्निंग काउंसिल के चुनाव में मतदान का अधिकार भी केवल सदस्यों को ही है.यह चौथा मौका है, जब क्लब की गवर्निंग काउंसिल का चुनाव कराया जा रहा है. इससे पहले 2009, 2014 और 2019 में चुनाव कराए गए थे.राजीव प्रताप रूडी ने पहले चुनाव में अपनी ही पार्टी के रामनाथ कोविंद को हराया था. कोविंद बाद में देश के राष्ट्रपति बने
इस साल कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव की प्रक्रिया 30 मई को मतदाता सूची के अंतिम रूप से प्रकाशन के साथ शुरू हुई थी.उम्मीदवारी वापस लेने की अंतिम तारीख 10 जुलाई थी. मतदान डाक मतपत्रों के माध्यम से भी हो रहा है. मतपत्र लेने की अंतिम तारीख 11 अगस्त थी. इस क्लब के चुनाव में दलीय मान्यताएं टूट जाती हैं. बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूड़ी के पैनल में कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी शामिल हैं.
कांस्टीट्यूशन क्लब में राजनीतिक दलों की बैठकों के साथ-साथ सामाजिक आयोजनों और सांसदों के निजी कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है. क्लब में कॉन्फ्रेंस रूम, कॉफी क्लब,आउटडोर कैफे, बिलियर्ड्स रूम, जिम, यूनिसेक्स सैलून, स्विमिंग पूल और बैडमिंटन कोर्ट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं. इस क्लब का जिम दिल्ली के कुछ बेहतरीन जिम में शामिल है. इसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के आर्थिक सहयोग से बनाया गया था. इसके लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनसीपी (एससीपी) प्रमुख शरद पवार ने पहल की थी.
कांस्टीट्यूशन क्लब की गवर्निंग काउंसिल
लोकसभा अध्यक्ष इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं. निवर्तमान गवर्निंग काउंसिल में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अध्यक्ष पद पर हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर उपाध्यक्ष, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश महासचिव के पद पर हैं. इनके अलावा राजीव प्रताप रूड़ी सचिव (प्रशासन), राजीव शुक्ल सचिव(खेल), तिरुची शिवा सचिव (संस्कृति), एपी जीतेंद्र रेड्डी कोषाध्यक्ष हैं. कार्यकारिणी सदस्यों में सुरेंद्र नागर, केसी त्यागी, संदीप दीक्षित, केआर मोहन राव, डी राजा, एपी जीतेंद्र रेड्डी, केएन सिंह देव, अजय संचेती, सुप्रिया सुले, तारीक अनवर और सतीश चंद्र मिश्रा. अरविंद कुमार इसके निदेशक हैं.

कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सदस्य और बिहार के वरिष्ठ नेता शकुनी चौधरी का स्वागत करते राजीव प्रताप रूडी.
कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव आमतौर पर सचिव (प्रशासन) , खेल सचिव, संस्कृति सचिव, कोषाध्यक्ष और 11 कार्यकारी सदस्यों के लिए कराया जाता है. इस बार खेल सचिव के पद पर कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला और बीजेपी के राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार वर्मा की दावेदारी थी. लेकिन अंतिम समय में बीजेपी के उम्मीदवारी पीछे हट गए. इससे शुक्ल निर्विरोध खेल सचिव का चुनाव जीत गए. इसी तरह डीएमके सांसद तिरुचि सिवा ने बीजेपी के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी के उम्मीदवारी वापस लेने के बाद संस्कृति सचिव चुने गए.डीएमके सांसद पी विल्सन कोषाध्यक्ष चुने गए हैं. टीआरएस के पूर्व सांसद एपी जितेंद्र रेड्डी ने कोषाध्यक्ष पद पर अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी. इससे विल्सन कोषाध्यक्ष बने.
इस बार सचिव (प्रशासन) के अलावा 11 कार्यकारी पदों पर भी मुकाबला है.इन 11 पदों के लिए बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल, बीजेपी के पूर्व लोकसभा सांसद प्रदीप गांधी, पूर्व कांग्रेस लोकसभा सांसद जसबीर सिंह गिल, बीजेपी के लोकसभा सांसद नवीन जिंदल, पूर्व कांग्रेस सांसद असलम शेर खान, टीडीपी लोकसभा सांसद कृष्ण प्रसाद तेनेटी, बीजेपी राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार वर्मा, समाजवादी पार्टी लोकसभा सांसद अक्षय यादव, टीएमसी लोकसभा सांसद प्रसून बनर्जी, पूर्व शिवसेना लोकसभा सांसद श्रीरंग अप्पा बर्णे, पूर्व बीजेडी लोकसभा सांसद कालिकेश सिंह देव, कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन और पूर्व सांसद अनूप सिंह चुनाव मैदान में हैं.
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