- कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में नई ताकत मिली लेकिन बाद में कई राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा है
- पार्टी ने 5 जनवरी से मनरेगा बचाओ अभियान शुरू कर देशभर में प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन करने का निर्णय लिया है
- अगले साल प्रियंका गांधी को कांग्रेस में संगठन की अहम भूमिका मिल सकती है.
28 दिसंबर को कांग्रेस पार्टी की स्थापना दिवस को 140 साल पूरे हो गए. तीन दिन बाद आने वाला नया साल कांग्रेस के भविष्य के सफर के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नई ताकत मिली थी लेकिन इसके बाद झारखंड छोड़ कर बाक़ी राज्यों में करारी हार का जो सिलसिला शुरू हुआ वो 2025 में भी जारी रहा. इस साल विपक्षी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति कमज़ोर पड़ती चली गई. ऐसे में 2026 कांग्रेस के लिए करो या मरो का साल है. नए साल में कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर मनरेगा की जगह लेने वाले जी राम जी क़ानून के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने में जुट गई है. स्थापना दिवस से एक दिन पहले कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में पार्टी ने 5 जनवरी से मनरेगा बचाओ अभियान शुरू करने का ऐलान किया.
इसके तहत देश भर में कांग्रेस प्रदर्शन और बड़ी रैलियों का आयोजन करेगी. 2025 में राहुल गांधी ने “वोटचोरी” को मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन खास फायदा नहीं हुआ. ऐसे में कांग्रेस नए साल में नए मुद्दे को लेकर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलेगी. इसके अलावा कांग्रेस का फ़ोकस राहुल गांधी के नेतृत्व में “सामाजिक न्याय” की सियासत ख़ास तौर पर ओबीसी वर्ग को साधने पर केंद्रित रहेगा.
संगठन की चुनौती, प्रियंका गांधी को मौक़ा
कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती संगठन को मजबूत बनाने की है. 2025 में शुरू किए गए संगठन सृजन अभियान के तहत पूरे देश में नए जिलाध्यक्ष नियुक्त करने का काम अगले साल की शुरुआत में पूरा हो जाएगा. लेकिन दिग्विजय सिंह जैसे कई वरिष्ठ नेता पार्टी में संगठन से जुड़े तौर तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं. पार्टी का एक बड़ा धड़ा चाहता है कि प्रियंका गांधी को संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी मिलनी चाहिए. ऐसे में संभव है नए साल में प्रियंका गांधी कांग्रेस में अहम भूमिका में नजर आएं.
राज्यसभा की रेस
इस साल कांग्रेस को राज्यसभा की क़रीब दस सीटों पर उम्मीदवार भी चुनने हैं. इनमें कर्नाटक से तीन, तेलंगाना से दो, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से एक–एक सीट कांग्रेस को मिलना तय है. राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी का फिर से चुना जाना पक्का है लेकिन इसके अलावा बाकी सीटों पर दिलचस्प अंदरूनी मुकाबला देखने को मिलेगा. वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया गया तो उनके बागी तेवर देखने को मिल सकते हैं.
राज्यों में वापसी की चुनौती
आने वाले साल में 5 विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें से कांग्रेस के लिए केरल, असम और पुडुचेरी का चुनाव बेहद अहम है जहां वो सीधे मुक़ाबले में है.केरल में कांग्रेस का मुक़ाबला दस सालों से सत्ता में बैठी सीपीएम से है. पिछले चुनाव में केरल में लंबे समय से हर पाँच साल पर सरकार बदलने का सिलसिला टूटा और सीपीएम ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई. ऐसे में कांग्रेस को लगता है इस बार उसे दुगनी “एंटी इनकमबेंसी का फायदा मिलेगा. हाल ही में स्थानीय चुनावों में अच्छे प्रदर्शन से भी कांग्रेस उत्साह में है लेकिन उसके सामने गुटबाजी की चुनौती है. इस चुनाव में कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव और राहुल गांधी के सबसे करीबी नेता केसी वेणुगोपाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
असम में भी कांग्रेस दस सालों से सत्ता से बाहर है.पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई की अगुवाई में कांग्रेस अपनी खोई जमीन हासिल करने में जुटी है लेकिन बीजेपी संगठन की मजबूती और राज्य में ध्रुवीकरण के माहौल में कांग्रेस की राह आसान नहीं है. कांग्रेस सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश कर रही है.
स्थानीय समीकरण साधने का है मौका
पुदुचेरी में भी कांग्रेस के पास मौक़ा है लेकिन उसके लिए उसे स्थानीय समीकरणों को साधने की ज़रूरत है. वहीं, तमिलनाडु में कांग्रेस सत्ताधारी डीएमके की सहयोगी की भूमिका में है. दोनों दलों में सीट बंटवारे का पेंच फंसा हुआ है. कांग्रेस का एक धड़ा ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए अभिनेता विजय की पार्टी टीवीके के साथ गठबंधन करने के पक्ष में है. हालांकि पार्टी नेतृत्व राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी एकजुटता के मद्देनज़र डीएमके को छोड़ने के मूड में नहीं है. कुल मिलाकर राज्य में कांग्रेस डीएमके के भरोसे है. बंगाल में कांग्रेस मुख्य मुकाबले के बाहर है. राज्य में पार्टी के पास एक भी विधायक नहीं है. बीते दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सीपीएम के साथ गठबंधन किया था. इस बार भी वैसे ही आसार हैं. हालांकि कांग्रेस में एक राय यह भी है कि इस बार अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ा जाए क्योंकि पार्टी के पास खोने को कुछ भी नहीं है.
करो या मरो का साल
इसके अलावा नए साल में कांग्रेस को 2027 में होने वाले यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की फाइनल रणनीति भी बनानी होगी. यूपी में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन है लेकिन बाकी सभी राज्यों में उसकी सीधी लड़ाई बीजेपी से होगी. 2026 का साल अगर चुनाव और संगठन के लिहाज से कांग्रेस के लिए अच्छा रहा तभी उसके लिए आगे की राह आसान होगी.
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