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This Article is From Dec 23, 2020

जिस राज्यसभा सीट को कड़ी मेहनत से जीता था अहमद पटेल ने, उसका BJP के खाते में जाना तय

कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल (Ahmed Patel) गुजरात से राज्यसभा सांसद थे. उनके निधन के बाद खाली हुई सीट अब BJP के खाते में जाएगी.

जिस राज्यसभा सीट को कड़ी मेहनत से जीता था अहमद पटेल ने, उसका BJP के खाते में जाना तय
अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा सांसद थे. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल (Ahmed Patel) के निधन के बाद खाली हुई उनकी राज्यसभा सीट अब BJP के खाते में जाएगी. इस सीट पर साल 2017 में हुए चुनाव में बामुश्किल अहमद पटेल ने जीत दर्ज की थी. बीते महीने एक निजी अस्पताल में 71 वर्षीय पटेल का निधन हो गया था. वह पांच बार राज्यसभा के लिए चुने जा चुके थे. 25 नवंबर को उनके निधन वाले दिन ही इस सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया था. उनका कार्यकाल 18 अगस्त, 2023 तक था.

एक और राज्यसभा सदस्य अभय भारद्वाज के निधन के बाद उनकी सीट रिक्त घोषित कर दी गई. भारद्वाज का कार्यकाल 21 जून, 2026 तक था. चुनाव आयोग ने दोनों रिक्त सीटों पर अलग-अलग चुनाव कराने का फैसला किया. जिसके बाद दोनों ही सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों का चुना जाना लगभग तय है.

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गुजरात के सियासी समीकरण की बात करें तो राज्य में बीजेपी के 111 विधायक हैं, वहीं कांग्रेस के 65 विधायक हैं. राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए 50 फीसदी वोट या 88 वोट जरूरी हैं. पिछले साल इसी तरह बीजेपी ने अमित शाह (Amit Shah) और स्मृति ईरानी (Smriti Irani) द्वारा खाली की गईं सीटों पर भी विजय हासिल की थी. 2019 में एक सीट पर विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने जीत दर्ज की थी. उनके चुनाव को कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

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अहमद पटेल गुजरात से आए राजनेता थे, जो राष्ट्रीय पटल पर पहली बार तब दिखे थे, जब राजीव गांधी ने 1985 में उन्हें अपने तीन संसदीय सचिवों में स्थान दिया. वे तीन लोग थे- अरुण सिंह, अहमद पटेल और ऑस्कर फर्नांडिस. राष्ट्रीय स्तर पर कुछ ही वक्त के लिए मिली उस पहचान के बाद उनके करियर में काफी उतार-चढ़ाव आए और कुछ बार तो उतार काफी गंभीर रहे.

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अहमद पटेल का भाग्य तब बदला, जब कांग्रेस पार्टी की बागडोर सोनिया गांधी ने संभाली और विश्वस्त लोगों की खोज शुरू की. राजीव गांधी की टीम में होना अहमद पटेल को सोनिया गांधी के शुरुआती सालों में बहुत काम आया, क्योंकि सोनिया का मानना था कि वह उदारवाद तथा धर्मनिरपेक्षवाद के कांग्रेस के आधारभूत मूल्यों के प्रति कटिबद्ध हैं, इसलिए पटेल सटीक पसंद साबित हुए.

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