गुजरात की सूरत जिला अदालत ने गुरुवार को 2019 के एक मामले में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई. 'मोदी सरनेम' को लेकर दिए उनके बयान को लेकर कोर्ट में मानहानी का मामला दर्ज कराया गया था. हालांकि, बाद में राहुल गांधी को कोर्ट से ही बेल मिल गई, लेकिन अब उनकी संसद सदस्यता पर संकट गहरा गया है. दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार यदि सांसद या विधायक को किसी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा होती है तो ऐसे में उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी. साथ ही वो सजा पूरी करने के बाद छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं.
कोर्ट ने राहुल गांधी को जमानत देने के साथ ही उनकी सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है, ताकि उन्हें फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने का मौका मिल सके. अदालत के आदेश के बाद उन्हें कानून के तहत संसद के सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराने का जोखिम बन गया है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) कहती है कि जैसे ही किसी संसद सदस्य को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की सजा सुनाई जाती है, तो उस पर अयोग्यता का खतरा मंडराने लगता है.
जानकारों के मुताबिक, सूरत कोर्ट के आदेश के आधार पर लोकसभा सेक्रेटेरियट राहुल गांधी को अयोग्य ठहरा सकता है और उनकी वायनाड सीट को खाली घोषित कर सकता है. इसके बाद चुनाव आयोग सीट के लिए विशेष चुनाव की घोषणा करेगा. हालांकि, यह परिदृश्य तब देखने को मिलेगा, जब उच्च न्यायालय द्वारा सजा को रोक नहीं दिया जाता. यदि किसी उच्च न्यायालय द्वारा फैसला रद्द नहीं किया जाता है, तो राहुल गांधी को भी अगले आठ वर्षों तक चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
राहुल गांधी की टीम के अनुसार, कांग्रेस नेता इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की योजना बना रहे हैं. अगर सजा के निलंबन और आदेश पर रोक की अपील वहां स्वीकार नहीं की जाती है, तो वे सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाएंगे. विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत एक आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की सजा, जिसके तहत राहुल गांधी को दोषी ठहराया गया है, अत्यंत दुर्लभ है.
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