जजों की नियुक्ति के मसले को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका आमने-सामने है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कानून मंत्रालय को एक नोट लिखकर भेजा है. इसमें जजों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार को आगाह किया गया है. इस नोट में याद दिलाया गया है कि जज नियुक्त करने के लिए अगर कॉलेजियम नाम की सिफारिश दोहराता है तो सरकार को मंज़ूरी देनी ही होगी. दूसरी ओर, सरकार भी इस मुद्दे पर, आक्रामक अंदाज में बैटिंग कर रही है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के साथ कशमकश के बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले माह जोर देकर कहा था कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है. जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते हुए रिजिजू ने कहा था, "यह चिंताजनक है कि देशभर में पांच करोड़ से अधिक केस लंबित हैं. इसके पीछे मुख्य कारण जजों की नियुक्ति है. सरकार ने केसों की लंबितता को कम करने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन जजों के रिक्त पद भरने में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है. कॉलेजियम नामों का चयन करता है, और इसके अलावा सरकार को जजों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है."
रिजिजू ने सोमवार को भी एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा. उन्होने दिल्ली कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर एस सोढ़ी के इंटरव्यू के वीडियो क्लिप को शेयर करते हुए लिखा कि यह समझदारी पूर्ण विचार हैं. बताते चलें कि देश के कई अहम फैसले सुनाने वाले और दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने लॉस्ट्रीट भारत यूट्यूब चैनल के साथ एक इंटरव्यू में कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को हाईजैक किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी. संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं हैं. दोनों स्वतंत्र हैं, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय की तरफ देखने लगते हैं और एक तरह से अधीन हो जाते हैं."
आइए जानते हैं क्या है कॉलेजियम व्यवस्था
कॉलेजियम, वास्तव में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की व्यवस्था है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के साथ ही हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस और जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर पर SC के चीफ जस्टिस और चार अन्य सबसे सीनियर जजों का ग्रुप निर्णय लेता है. हाईकोर्ट की बात करें तो यहां जजों की नियुक्ति की सिफारिश उस हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और दो सबसे सीनियर जजों का समूह करता है. बाद में इन सिफारिशों की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सीनियर जज करते हैं. बाद में ये नाम राष्ट्रपति के पास जाता है. जजों के समूह यानी कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को सरकार की ओर से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. इन सिफारिशों को मानना राष्ट्रपति और सरकार के लिए अनिवार्य होता है.
वैसे यदि, सरकार चाहे तो कॉलेजियम से एक बार ये अनुरोध कर सकती है कि वह अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे, लेकिन कॉलेजियम यदि इसी सिफारिश को फिर से भेजता है तो सरकार को इसे मंजूर करना ही होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो कॉलेजियम की ओर से दिए गए किसी नाम को लेकर सरकार केवल पुनर्विचार का ही आग्रह कर सकती है. कॉलेजियम अगर दोबारा इसे सरकार के पास भेजता है तो वह इसे मंजूरी देने के लिए बाध्य है.
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