विज्ञापन

Exclusive: चीन की चालबाजी! भारत से छद्म युद्ध की पकड़ी राह, पूर्वोत्तर में खेल रहा ड्रग्स और हथियारों का खेल

NSCN IM और ZRA जैसे हथियारबंद संगठन कई सालों से चीन द्वारा पाले-पोसे जा रहे हैं और उन्हें हथियार भी मिल रहे हैं. जैसे ही अपने आकाओं से इन संगठनों को ग्रीन सिग्नल मिलेगा, ये पूर्वोत्तर को अस्थिर करने और लोगों को संकट में डालने की कोशिश शुरू कर देंगे.

Exclusive: चीन की चालबाजी! भारत से छद्म युद्ध की पकड़ी राह, पूर्वोत्तर में खेल रहा ड्रग्स और हथियारों का खेल
नई दिल्ली:

कश्मीर में हुए आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तानी हाथ होने के सबूत बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन बहुत ऊंचे स्तर के सूत्र मानते हैं कि पाकिस्तान बस एक प्रॉक्सी था- पूरे हमले के पीछे चीन के हाथ होने के निशान मिल रहे हैं. दरअसल, ये अंदेशा हर लिहाज से है कि चीन देश की पूर्वी सरहदों पर गैरपारंपरिक हथियारों की लड़ाई छेड़ने की तैयारी में है. इस गैरपारंपरिक युद्ध में नगालैंड के सशस्त्र विद्रोही समूहों- जैसे NSCN IM और ZRA को शामिल किया जा सकता है. ये वो समूह हैं जो पहले से ही चीन के दिए अत्याधुनिक हथियारों से पूरी तरह लैस हैं और देश की पूर्वी सरहद बस मुक़ाबला शुरू का इंतज़ार कर रही है.

एनडीटीवी को उच्चस्तरीय अधिकारियों ने ये जानकारी दी है कि दो साल पहले मणिपुर हिंसा के बीज चीन द्वारा बोए गए थे. अवैध ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के सहारे बढ़ाई जा रही ये हिंसा ही चीन द्वारा भारत के ख़िलाफ़ छेड़े गए गैरपारंपरिक युद्ध का बर्बादी भरा नतीजा है.

बीते दस वर्षों में चीन की रणनीति बदल चुकी है. अब वे थ्री वारफेयर्स की रणनीति पर अमल कर रहे हैं.

  • पहला - मनोवैज्ञानिक युद्ध
  • दूसरा - जनमत के सहारे युद्ध
  • तीसरा - कानूनी युद्ध
Latest and Breaking News on NDTV

चीन ने अब सीधे संघर्ष में उलझने की जगह हमारे मुल्क के ताने-बाने पर चोट करने की रणनीति अपनाई है- दरारें खोजने और उनको फैलाने की रणनीति. मकसद- पूर्वोत्तर के राज्यों को ड्रग्स के सहारे आर्थिक और सामाजिक तौर पर तोड़ दिया जाए और हथियारबंद उग्रवादियों को पैसे और मदद दी जाए, जो बड़े पैमाने पर वसूली में लगे रहते हैं और इलाके के विकास को रोके रहते हैं.

कौन हैं NSCN IM और ZRA? क्यों हथियारबंद होकर कर रहे हैं लड़ाई?

NSCN-IM यानी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- इसाक-मुइवा

ये वो संगठन है जो नगा नेशनल काउंसिल से टूटकर बना है. जिसका गठन भारत सरकार पर नगाओं के लिए अलग देश बनाने का दबाव बनाने के लिए किया गया था. नगा बस भारत में ही नहीं रहते, बल्कि म्यांमार के भारत से लगते इलाक़ों में भी बसे हुए हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात के राज्यपाल रह चुके एससी ज़मीर नगा नेशनल काउंसिल से भी कभी जुड़े रहे थे- दरअसल वो उन प्रमुख नेताओं में थे, जिन्होंने भारत में अलग नगा राज्य के लिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ बातचीत की थी. जमीर ने एनडीटीवी से कहा कि NSCN IM नगा पहचान और नगा राष्ट्र के लिए अहिंसक संघर्ष के आदर्श से बहुत दूर जा चुकी है.

NSCN IM को चीन में ट्रेनिंग मिली थी- वो नगा नेशनल काउंसिल का पूरा मक़सद ही बदल चुके हैं. NSCN IM चीन से ट्रेनिंग लेकर आते थे और माओवादी विचारधारा पर अमल करते थे- सत्ता बंदूक की नली में होती है. उन्होंने नगा नेशनल काउंसिल के कई नेताओं का सफाया कर दिया. एससी ज़मीर ने कहा कि जब ये गुट मुइवा के हाथ में गया, मैंने उनका खुलकर विरोध किया और स्वाभाविक तौर पर मैं उनके निशाने पर आ गया और उन्होंने 4 बार मुझे मारने की कोशिश की.

NSCN I-M का 2025-26 में 158 करोड़ से ज़्यादा की उगाही का इरादा  

पूर्वोत्तर के लोगों पर लगातार बंदूक की नली तनी रहती है. NSCN I-M और ZRA लगातार बड़े पैमाने पर वसूली में लगे रहते हैं. NSCN I-M के 2024-25 के बजट की एक्सक्लूसिव कॉपी एनडीटीवी के हाथ लगी है, जिसमें 2025-26 के लिए उसकी लक्षित आय का ज़िक्र है. NSCN I-M का इरादा 158 करोड़ से ज़्यादा उगाहने का है, जिसे वो संप्रभुता टैक्स कहते हैं- वसूली के लिए एक अलग सा नाम. तो यहां खाने-पीने का सामान हो, ईंधन हो या फिर निर्माण सामग्री- कुछ भी लाने की इजाज़त तब मिलती है जब इस समूह को पैसे दिए जाते हैं. छोटे दुकानदारों को भी NSCN I-M के लोगों को पैसे देने पड़ते हैं- वे बंदूक की नोक पर पैसे देते हैं.

म्यांमार से सुपारी की तस्करी भी आम है और इन हथियारबंद संगठनों को मोटी रक़म दिलाती है. इस वित्त वर्ष में NSCN I-M का इरादा बस सुपारी से 2 करोड़ रुपये उगाहने का है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, म्यांमार से आई ये सस्ती सुपारी ज़्यादातर गुटखा कारख़ानों में पहुंच जाती है- एक और अवैध अर्थव्यवस्था को मज़बूत करती हुई.

Latest and Breaking News on NDTV

उग्रवाद की वजह से बहुत सारे गुट हो गए जो लोगों से वसूली कर रहे थे. महंगाई बढ़ने की कोई वजह नहीं. सुबह एक किलो टमाटर 30 रुपये का मिलता था और शाम को बेवजह 60 रुपये का. सामाजिक संगठनों ने सवाल पूछना शुरू किया कि ये महंगाई क्यों. युवाओं का समूह ये जानने पहुंचा कि क्या हो रहा है. उन्होंने पाया कि बाज़ार में हर चीज़ पर टैक्स लग रहा है. वो इसे संप्रभुता कर कह रहे थे.

राज्य सरकारें भी NSCN IM और ZRA जैसे संगठनों को दिए जा रहे इस पैसे को लेकर इन वर्षों में ढिलाई बरतती रही हैं, जबकि उन्हें लोगों की हिफ़ाज़त के लिए कार्रवाई करनी चाहिए. यहां तक राज्य सरकार भी कुछ बड़े समूहों को टैक्स देती रही है. विकास के लिए जो पैसा आता है, विभाग को उसका 5-6% इन समूहों को दे देने का आदेश सीधे मुख्यालय से ही आ जाता है. फिर पैसा इलाक़े में पहुंचता है- फील्ड ऑफिसर और ठेकेदारों से भी टैक्स लिया जाता है. राज्य सरकार इससे इनकार करेगी. राज्य सरकार के कर्मचारी अपनी सैलरी का 22% दे रहे हैं जो सीधे डिसबर्समेंट ऑफिस में उनको दिए जाने से पहले ही कट जाती है.

डिसबर्समेंट ऑफिसर हथियारबंद समूहों से मोलतोल करता है कि वो 22 फीसदी से घटा कर इसे 10-12 फीसदी कर दें और बाक़ी रकम सरकारी कर्मचारियों को दे दी जाती है.

सुरक्षाबल वसूली को रोकने की कर रहे कोशिश

असम रायफ़ल्स और लोकल पुलिस इस बेइंतहा वसूली को रोकने की कोशिश करते हैं. 16 मई को, असम रायफ़ल ने एक अनाम संगठन के 10 लोगों को मार गिराया और सात AK-47, एक RPG launcher, एक M4 रायफल और 4 सिंगल बैरल ब्रीच-लोडिंग रायफल बरामद किए. उन्होंने भारत-म्यांमार सीमा पर मणिपुर के चंदेल ज़िले में बड़ी तादाद में गोलाबारूद और युद्ध जैसे भंडार देखे. लेकिन चीनी पैसे और हथियारों से लैस ये संगठन और भी युवाओं की भर्ती करते हैं और नतीजतन हिंसा आम हो जाती है.

मणिपुर हिंसा के पीछे चीन की गैरपारंपरिक युद्ध नीति

2023 की मणिपुर हिंसा के पीछे भी चीन की गैरपारंपरिक युद्ध नीति थी- भारत में ड्रग्स भेजो, हथियारबंद हिंसक समूह खड़े करो और जब ज़रूरत हो, उनके कंधों पर रखकर बंदूक चलाओ. दो साल बाद, मणिपुर में बहुत कड़े सुरक्षा इंतज़ाम हैं. अब मिज़ोरम तरह-तरह के ड्ग्स भारत में भेजने का सबसे पसंदीदा रूट है. म्यांमार की मिलिटरी जुंटा को चीन का समर्थन हासिल है- वह भारत में बड़े पैमाने पर इस ड्रग्स तस्करी को बढ़ावा देती है.

Latest and Breaking News on NDTV

बीते कुछ सालों में ज़ब्ती लगातार बढ़ी है- असम रायफल्स और स्थानीय पुलिस ने सीमा पर गश्त तेज़ की है और चेकिंग सख़्त की है. लेकिन खुली सरहद चीन के लिए वरदान है. ड्रग्स भेजना और भारत के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने को तैयार हथियारबंद उग्रवादियों की मदद करना आसान है.

2023 में तालिबान ने अफीम का अवैध उत्पादन रोक दिया तो म्यांमार दुनिया में अफीम के सबसे बड़े उत्पादक के तौर पर उभरा है. UNODC के मुताबिक 2024 में म्यांमार में अफीम की पैदावार अफ़गानिस्तान से दोगुनी थी. म्यांमार में 45,000 हेक्टेयर ज़मीन पर अफीम बोई जा रही है. अफीम से हेरोइन और ब्राउन शुगर बनते हैं. ये ख़तरनाक गोल्डन ट्रांयगल या डेथ ट्रायंगल है- वो इलाक़ा जहां म्यांमार, थाइलैंड और लाओस मिलते हैं. ये नार्कोटिक्स में ग्लोबल कारोबार का हब है. ये और ऐसे ही ड्रग्स का बड़ा हिस्सा पूर्वोत्तर के राज्यों की मार्फ़त भारत में आता है.

चीनी म्यांमार की मिलिटरी जुंटा को पैसे और मदद देते हैं. जुंटा बदले में नगालैंड और मणिपुर के NSCN IM और ZRA जैसे हथियारबंद संगठनों में भर्ती कराती है. ZRA, ख़ासकर म्यांमार के चिन और शान इलाक़ों में अफीम के खेत देखता है और उन समूहों से लड़ता है जो मिलिटरी जुंटा का विरोध करते हैं.

पूर्वोत्तर के हर राज्य की अलग-अलग ड्रग्स में विशेषज्ञता

पूर्वोत्तर के हर राज्य की अलग-अलग ड्रग्स में विशेषज्ञता है. त्रिपुरा में गांजा और मारिजुआना है. मिज़ोरम में मेथैंफेटामाइन्स और हथियार स्मगल किए जाते हैं. पहले मणिपुर इसका हब था, अब मिज़ोरम है.  मणिपुर सब कुछ का हब है. नगालैंड में हथियारबंद उग्रवादी हैं, जो आज़ादी से पहले से ही भारत से अलग होना चाहते हैं. नगालैंड ट्रांज़िट रूट भी है. दक्षिण अरुणाचल और नगालैंड भी वसूली के हब हैं और यहां हथियारबंद गैंग खौफ़ पैदा करते हैं.

जब से म्यांमार में लोकतांत्रिक नेशनल यूनिटी सरकार को 2021 में एक बगावत से बेदख़ल कर दिया गया, मिलिटरी जुंटा ने ज़्यादातर म्यांमार को कंट्रोल में ले लिया है. इसका नाम एसएसी- या स्टेट ऐडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल है.
हथियारबंद लड़ाकों के विद्रोही गुट खड़े हो गए हैं और उन्होंने एसएसी की हथियारबंद हिंसा का जवाब देने के लिए गठजोड़ बना लिया है.

म्यांमार की मिलिटरी जुंटा के ख़िलाफ़ लड़ रही है चिन नेशनल आर्मी

म्यांमार की मिलिटरी जुंटा के ख़िलाफ़ लड़ रहे इन बाग़ी गुटों में एक चिन नेशनल आर्मी है. इन गुटों की नज़र अब ZRA पर है जो, इनका दावा है कि अफीम पैदावार को बढ़ावा देकर म्यांमारी समाज को बरबाद कर रहा है. चिन नेशनल आर्मी ने बहुत सारे क्षेत्रों को क़ब्ज़े में ले लिया है और अफ़ीम के खेतों में आग लगा दी है जिनकी हिफ़ाज़त करना जेडआरए का काम था. चिन नेशनल आर्मी (सीएनए) ख़ुद को लोकतंत्र समर्थक बागी गुट कहती है- जो म्यांमार में मिलिटरी जुंटा से लड़ रही है.

Latest and Breaking News on NDTV

एनडीटीवी द्वारा भेजे गए सवालों के जवाब देते हुए इस हथियारबंद समूह ने कहा कि भारत का हथियारबंद समूह जेडआरए म्यांमार की मिलिटरी जुंटा के साथ पूरी तरह सक्रिय था और चिन राज्य में अफीम पैदावार को बढ़ावा दे रहा था. चिन नेशनल आर्मी ने ये भी कहा कि ZRA, म्यांमार सेना और मणिपुर के कुछ भारतीय उग्रवादी समूह चिन में अफीम किसानों से प्रोटेक्शन मनी वसूल रहे हैं. NSCN-IM की भी म्यांमार के चिन राज्य में मौजूदगी दिखती है जो ZRA के साथ काम कर रहा है.

यहां बच्चों को भी नहीं छोड़ा जाता. म्यांमार के चिन की किसी अनजानी जगह पर ZRA के अध्यक्ष की एक बाल सैनिक को सम्मानित करते हुए तस्वीर भी सामने आई थी, जो बिल्कुल सिहरा देने वाली है.

पूर्वोत्तर को बर्बाद कर रही चीन की गैरपारपंरिक जंग

चीन की गैरपारपंरिक जंग ने पूर्वोत्तर को सामाजिक और आर्थिक तौर पर इन दशकों में बर्बाद कर दिया है. 1970 के दशक में हेरोइन म्यांमार से भारत बेरोकटोक आती थी. यूज़र ओपिएट फूंकते थे. 90 के दशक तक, हेरोइन इंजेक्शन से ली जाने लगी. गांजा और मारिजुआना की भी भारतीय बाज़ारों में बाढ़ आ गईय नब्बे के दशक में ही, स्माज़्मो प्रॉक्सिवोन या एसपी जैसी दर्दनाशक दवाएं पूर्वोत्तर में बिल्कुल आम हो गईं- यूज़र इन टैबलेट्स को पीस लेते, उन्हें तरल बनाकर इंजेक्ट कर लेते. एक ही सुई से ये इंजेक्शन लेने की वजह से बड़े पैमाने पर एचआईवी एड्स का फैलाव हुआ.

नई सदी की शुरुआत में फर्मास्युटिकिल कंपनियों ने एसपी का फॉर्मुलेशन बदल दिया है- इसे अब डाइल्यूट कर इंजेक्ट नहीं कराया जा सकता. अब मेथांफेटामाइन्स का ज़ोर है- जिसे YABA या WY – कहते हैं- यानी World is Yours – दुनिया तुम्हारी है.
 

2020 के बाद से सबसे पसंदीदा ड्रग शैनफ्लावर है- हेरोइन से बनने वाली एक सस्ती सी ड्रग है, जिसे चेज़ या इंजेक्ट किया जा सकता है. इसे स्थानीय बोली में एसएफ कहते हैं- ये ड्रग बेहद ख़तरनाक है, क्योंकि इसकी बुरी तरह लत लग जाती है. इसके नशे के आदी 95 फीसदी लोग रिहैब के लिए जाते हैं. लेकिन ये समस्या फिर से हमला करती है. सातवीं में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चे ये ड्रग लेते हैं.

एक युवक ने कहा कि 17 साल से ड्रग्स लेने लगा था- अब 21 का हूं. पहले मैंने दोस्तों के साथ शुरू किया. हफ़्ते में एक या दो बार ड्रग्स लेता था. संतोष नहीं होता था, इसलिए मैंने फिक्सिंग शुरू की. मेरे भाई ने समझाया कि इसमें न पड़ूं नहीं तो पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी, लेकिन मैंने सुना नहीं. मेरा मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य गिरने लगा. मेरी पढ़ाई छूट गई. मैंने पढ़ना बंद कर दिया. इसकी वजह से मैं अपने परिवार के सामान चुराने लगा. वो सब गलत काम किए जो नशे से पहले नहीं किए थे, जो मैंने सोचा नहीं था कि एक दिन ये सब करूंगा. 

Latest and Breaking News on NDTV

तंबाकू के एक कंटेनर का दाम 4000 से 5000 पड़ता है. इसमें शैनफ्लावर ड्रग्स लाया जाता है. कंटेनर के 2 साइड है. इतना ड्रग्स किसी के लिए 2 दिन चलता है. हालांकि यूज़ करने वाले पर निर्भर है.

रिहैब सेंटर से लौटने वाले 95 फीसदी लोगों को फिर से नशे की लत 

ड्रग रिहैब सेंटर 90 के दशक से ही रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा चलाया जा रहा है. ऐसे सेंटर पूर्वोत्तर के राज्यों में ऊंट के मुंह में जीरे जैसे हैं. बर्बाद परिवार अपने बेटे-बेटियों को इन केंद्रों में भेजते हैं कि शायद इनकी लत छूटे, लेकिन राज्य सरकार के मुताबिक फिर लत लौटने की दर 95 फ़ीसदी है. पहले झटके महसूस होते हैं, फिर जोड़ो में दर्द. ज़्यादातर नशेड़ी कुछ दिन तरह-तरह की कल्पना करते हैं, लेकिन शारीरिक तौर पर वो कमज़ोर होते हैं.

2020-21 में एक नए तरह का ड्रग मिला, जिसकी लत बहुत तेज़ी से लगती थी- इसे शैनफ्लावर कहते हैं. ये बहुत नशीला होता है और इसकी जड़ें यहां काफी जम गई हैं. यह बहुत डरावना है. हर घर में कम से कम एक-दो लोग इसकी चपेट में हैं. गांव या शहर का मामला नहीं है- ये हर जगह है और ये बहुत डराने वाला है. इसे रोकना अभी बेहद जरूरी है.

NSCN IM और ZRA जैसे हथियारबंद संगठन कई सालों से चीन द्वारा पाले-पोसे जा रहे हैं और उन्हें हथियार भी मिल रहे हैं. जैसे ही अपने आकाओं से इन संगठनों को ग्रीन सिग्नल मिलेगा, ये भारत में अपनी भूमिका निभाना शुरू कर देंगे. उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक कोशिश पूर्वोत्तर को अस्थिर करने की है और भारतीय आबादी को संकट में डालने की है.

नगालैंड के लोग थक चुके हैं. वे वसूली से, इन ड्रग्स से थक चुके हैं. वे रोज़गार चाहते हैं, खौफ़ से निजात चाहते हैं और  ये वो चीज़ है जो सिर्फ सेना और सरकार दे सकती है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com