12 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की दौलत बरामद हो जाने के बावजूद सस्पेंड तक नहीं किए गए यादव सिंह के बारे में एनडीटीवी इंडिया के पास ऐसे ढेरों दस्तावेज मौजूद हैं, जिनसे साफ ज़ाहिर होता है कि किस तरह तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों ने यादव सिंह को तरक्की और मलाईदार पद दिए।
आगरा के एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले यादव सिंह ने वर्ष 1981 में जूनियर इंजीनियर के पद पर नोएडा अथॉरिटी में अपने करियर की शुरुआत की, और वर्ष 1989 में उन्हें एपीई, यानि असिसटेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाया गया। फिर वर्ष 1995 में मायावती के आशीर्वाद से यादव सिंह की किस्मत का सितारा जागा, और उन्हें प्रमोशन देकर प्रोजेक्टर इंजीनियर बना दिया गया, तथा अगले दो साल के भीतर ही उन्हें वरिष्ठ परियोजना अभियंता के पद पर बिठा दिया गया।
दूसरी ओर, एनडीटीवी को मिले दस्तावेज बताते हैं कि वर्ष 1991 में यादव सिंह वरिष्ठता की सूची में सबसे नीचे, यानि 20वें नंबर पर थे, जबकि वर्ष 1997 में वरिष्ठ परियोजना अभियंता के पद पर हुए प्रमोशन के वक्त वह वरिष्ठता सूची में आठवें नंबर पर थे।
यही नहीं, नोएडा अथॉरिटी के ही नियमों के मुताबिक सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिए इंजीनियरिंग की डिग्री होना ज़रूरी है, लेकिन यादव सिंह के मामले में अथॉरिटी के ही विशेष कार्याधिकारी ने प्रमोशन देकर पत्र लिखा कि यादव सिंह अपनी डिग्री अगले तीन साल में पूरी करेंगे। इससे नाराज इंजीनियरिंग विभाग के उस समय के सबसे वरिष्ठ अधिकारी एके गोयल ने 6 अक्टूबर, 1997 को अथॉरिटी के सीईओ को चिट्ठी लिखी कि यादव का प्रमोशन नियम के तहत तो हुआ ही नहीं है, बल्कि इसके लिए उनकी अनदेखी की गई है। लेकिन यादव का फिर भी बाल बांका नहीं हुआ, क्योंकि वह सरकार के लिए 'कमाऊ पूत' थे।
इसके बाद वर्ष 2012 में जब सपा सरकार आई, तब तक यादव सिंह अपना करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर चुके थे, और नई सरकार ने फौरन उन पर 954 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाकर उनके खिलाफ सीबीसीआईडी में मामला दर्ज करवा दिया। आरोपी के तौर यादव सिंह के भाई ज्ञानचंद का भी नाम था, जो नोएडा अथॉरिटी में ही लॉ ऑफिसर है। इसके बाद यादव सिंह फरार हो गए, और उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस तक जारी हो गया, लेकिन डेढ़ साल में वह सपा के इतने करीब आ गए कि सीबीसीआईडी ने उन्हें और उनके भाई को क्लीट चिट दे दी।
इतना ही नहीं, नियमों के विपरीत जाकर यादव सिंह को नया पद क्रिएट कर नोएडा-ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी का इंजीनयर-इन-चीफ बना दिया गया, जबकि एनडीटीवी के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि इंजीनियीरग विभाग में सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर से बड़ा कोई पद है ही नहीं।
इस पर ही बस नहीं हुआ, और यादव सिंह के भाई और उसके बेटे को भी अथॉरिटी में ही नौकरी मिल गई। अब भी यादव सिंह को सरकार ने सस्पेंड करने तक की कार्रवाई नहीं की है, जबकि उनके ठिकानों से 12 करोड़ से ऊपर की दौलत और दो किलो गहने बरामद हो चुके हैं।
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