पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में नया हलफनामा दाखिल किया है. उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ आरोप और कार्रवाई राजनीतिक विवाद कराने के लिए की जा रही है. उन्होंने कहा है कि मुझे निशाना बनाया जा रहा है, सताया गया है. मेरी प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए आरोप लगाए गए हैं. चिदंबरम ने कहा है कि विदेशी बैंक खातों, संपत्तियों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आरोप बेबुनियाद हैं.
चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ईडी द्वारा हिरासत में 'जबरदस्ती के तरीकों' का इस्तेमाल करने की आशंका है. उन्होंने कहा है कि उन्हें सिर्फ इसलिए रिमांड पर नहीं भेजा जा सकता ताकि एजेंसी उनसे अपने बयान निकाल सके. ईडी को फ्री हैंड नहीं मिल सकता. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि मैं किसी विदेशी कंपनी का लाभकारी स्वामी या निर्माता / एजेंट नहीं हूं.
इससे पहले पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की कानूनी टीम ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर ईडी की पूछताछ की ट्रांसस्क्रिप्ट मांगी. चिदंबरम के वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कहा, 'एजेंसी कहीं से भी अचानक दस्तावेज मांग लेती है. याचिका में कहा गया है कि कोर्ट ED द्वारा उनसे पूछताछ की ट्रांसस्क्रिप्ट देने का आदेश जारी करे. केस डायरी को सही नहीं मान सकते.' सिब्बल ने यह भी कहा, 'इससे पहले तीन बार की जो पूछताछ हुई है उसकी ट्रांसस्क्रिप्ट कोर्ट के समक्ष रखी जाए. ED कोर्ट को बताए कि उन्होंने चिदंबरम को दस्तावेजों से कंफ्रंट कराया या नहीं.'
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बता दें सुप्रीम कोर्ट में पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम के मामले में सुनवाई चल रही है. ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में साफ कहा है कि आरोपी चिदंबरम को हिरासत में लेकर पूछताछ किए बगैर इस गहरे घोटाले का खुलासा होना नामुमकिन है. इसलिए कोर्ट चिदंबरम की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करे. वहीं चिदंबरम के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'जांच एजेंसी के लिए ये लाज़िमी है कि हिरासत में लेने के दावे के समर्थन में आरोपी के खिलाफ सामग्री को कोर्ट के सामने रखे. ईडी की तमाम दलीलें और तर्क आधारहीन तथ्यों पर हैं. यानी कानून का मनमाना मतलब निकाल रहे हैं.'
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सिंघवी ने कहा, 'दिल्ली हाईकोर्ट ने एजेंसी की इन्हीं दलीलों और तर्कों की तस्दीक के बगैर बेल अर्ज़ी खारिज करने का आदेश दे दिया. इनकी जांच में मैं पूछताछ के लिए मौजूद रहता हूं पर इसका मतलब ये नहीं कि इनके हर सवाल का जवाब मैं इनके मनमाफिक ही दूं. पूछताछ में एजेंसी ने ऐसे सवाल किए जिनका उत्तर देने को मैं बाध्य नहीं हूं. ये अपने मन मुताबिक जवाब चाहते हैं. इसके अलावा एजेंसी की पूछताछ टीम बार-बार एक ही सवाल पूछती है, तो हर बार जवाब भी एक ही होता है. अब जब जवाब ना देना भी मेरा अधिकार है, आर्टिकल 20 के तहत मेरा ये अधिकार है कि मुझे जबरन जवाब देने को मजबूर नहीं किया जा सकता. हालांकि मैंने सारे सवालों के समुचित जवाब दे दिए हैं लेकिन आप तब तक मुझसे पूछताछ करना चाहते हैं जब तक मुझसे अपराध कबूल ना करा लें.'
सिंघवी ने कहा, 'संवैधानिक कानून कहता है कि किसी व्यक्ति पर उस अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता है जो अपराध के घटने के समय अपराध नहीं था. ना ही उसे अपराध के लिए निर्धारित से अधिक सजा दी जा सकती है. जब आपातकाल की घोषणा हो तब भी अनुच्छेद 20, 21 बने रहते हैं. राइट टू लिबर्टी यानी स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण है.'
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सिंघवी ने कहा, 'आप किसी व्यक्ति को किंगपिन के रूप में उस वक्त चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं जब कथित अपराध PMLA के तहत अपराध के रूप में मौजूद नहीं था और अपराध के रूप में परिभाषित ही नहीं था.' ऐसे में जांच एजेंसी मनमाने ढंग से इसे भूतलक्षित (रेट्रोस्पेक्टिव) रूप से कैसे इस्तेमाल कर सकती है?
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