छावला गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीड़िता के परिवार ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका  

पीड़िता के पिता का कहना है कि ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट के समवर्ती निष्कर्षों से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए थी. ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट के निष्कर्ष सबूतों के आधार पर थे.

छावला गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीड़िता के परिवार ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका   

छावला गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीड़िता का परिवार पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा.  

छावला गैंगरेप मामले में पीड़िता के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की. पीड़िता के पिता की तरफ से पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई. सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को दिए फैसले में तीनों दोषियों को बरी कर दिया था, जबकि निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी. कुछ दिन पहले दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी दिल्ली पुलिस को पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की इजाजत दी थी.

पीड़िता के पिता का कहना है कि ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट के समवर्ती निष्कर्षों से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए थी. ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट के निष्कर्ष सबूतों के आधार पर थे. सुप्रीम कोर्ट ने मजबूत परिस्थितिजन्य सबूतों की अनदेखी की. आरोपी राहुल की कार में खून से सना जैक पुख्ता सबूत है. सुप्रीम कोर्ट ने डीएनए सबूतों की अनदेखी की है.

दरअसल, साल 2012 में दिल्ली के छावला गैंगरेप के तीनों दोषियों को 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था. कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को भी पलट दिया, जिसमें इन्हें फांसी की सजा दी गई थी. दिल्ली में साल 2012 में निर्भया की ही तरह उत्तराखंड की लड़की के साथ भी वैसी ही हैवानियत की गई थी. पीड़िता के परिवार को उम्मीद थी कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को बरी कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन आरोपियों के खिलाफ अपराध से जुड़े ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा, इसीलिए इस अदालत के पास जघन्य अपराध से जुड़े इस मामले में आरोपियों को बरी करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सच हो सकता है कि यदि जघन्य अपराध में शामिल अभियुक्त को सजा न सुनाई जाए या उनके बरी होने पर साधारण रूप से समाज में और खासतौर पर पीड़ित के परिवार के लिए एक तरह का दुख और निराशा पैदा हो सकती है, हालांकि कानून अदालतों को नैतिक या अकेले संदेह के आधार पर दोषियों को सजा देने की इजाजत नहीं देता है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी दोषसिद्धि केवल फैसले का विरोध या निंदा की आशंका के आधार पर नहीं होनी चाहिए. अदालतों को हर मामले का फैसला कानून के मुताबिक कड़ाई से उनके अपने गुण-दोष के आधार पर करना चाहिए. किसी भी तरह के बाहरी नैतिकता या दबाव से प्रभावित हुए बिना.

पीड़िता के साथ निर्भया जैसी दरिंदगी की गई थी. जांच में पता चला था कि लड़की से गैंगरेप के बाद उसके शरीर को सिगरेट और गर्म लोहे से दागा गया था. चेहरे और आंखों पर तेजाब डाला गया था. पुलिस पक्ष के मुताबिक, पीड़िता मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली थी. दिल्ली में वह छावला इलाके में रहती थी. घटना वाले दिन वह गुड़गांव के साइबर सिटी इलाके से काम के बाद लौट रही थी, तभी घर के पास तीन लोगों ने कार में उसे अगवा किया.
लड़की घर नहीं लौटी तो माता-पिता ने गुमशुदगी दर्ज करवाई. तीन दिन बाद लड़की का शव सड़ी-गली हालत में हरियाणा के रेवाड़ी के पास मिला. पुलिस ने तीन लोगों रवि, राहुल और विनोद को गिरफ्तार किया. पुलिस के मुताबिक लड़की ने रवि का शादी का प्रस्ताव खारिज किया था, जिसके बाद उसने दोस्तों के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया.

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