Exclusive: नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर रहे छत्तीसगढ़ के चांदामेटा में लोकसभा चुनाव में क्या हैं हालात, ग्राउंड रिपोर्ट

चांदामेटा में परिवर्तन साफ देखा जा सकता है. चांदामेटा एक समय नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर और तुलसी डोंगरी नक्सलियों का हेडक्वॉर्टर हुआ करता था. अब नक्‍सलियों की दखल कम हो गई है.

Exclusive: नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर रहे छत्तीसगढ़ के चांदामेटा में लोकसभा चुनाव में क्या हैं हालात, ग्राउंड रिपोर्ट

चांदामेटा गांव में 2023 के विधानसभा चुनाव में पहली बार पोलिंग सेंटर बना...

चांदामेटा:

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. साथ ही शुरू हो चुकी है एनडीटीवी की चुनाव यात्रा. एनडीटीवी की टीम पहुंची छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के चांदामेटा गांव, जो कभी नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर रहा है. 2023 के विधानसभा चुनाव में पहली बार इस गांव में पोलिंग सेंटर बना, तब आदिवासियों का दिल जीतने का दावा किया गया. अब यहां के क्या हैं हालात, देखिए खास रिपोर्ट...

चांदामेटा में परिवर्तन साफ देखा जा सकता है...

साल 2023 विधानसभा चुनाव, आजादी के बाद पहली बार ओडिशा की सीमा पर बसे छत्तीसगढ़ के इस अंतिम गांव में पोलिंग सेंटर बना. चांदामेटा में परिवर्तन साफ देखा जा सकता है. चांदामेटा एक समय नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर और तुलसी डोंगरी नक्सलियों का हेडक्वॉर्टर हुआ करता था. अब नक्‍सलियों की दखल कम हो गई है. अलग-अलग छह पारों में बसे इस गांव में 300 से अधिक लोग रहते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के हर घर का कोई न कोई सदस्य, कभी न कभी नक्सल मामलों में जेल गया ही है. ग्रामीण बामन लखमा बताते हैं, "फोर्स को हम देखने गए थे, तो हमें रास्ता बताने के लिए कहा. हम छह लोग उनके साथ गए, तो पकड़ लिया और झीरम में हुए हमले मामले में हमें जेल में डाल दिया, मैं 2 साल बाद छूटा." 

सुरक्षाबल का कैंप, पक्की सड़क, बिजली...

चांदामेटा के अंडलपारा में अब सुरक्षाबल का कैंप है. अंडलपारा से होते हुए पटेलपारा तक पक्की सड़क, बिजली पहुंच चुकी है. एक-दुक्का ही सही, लेकिन सरकारी कनेक्शन वाले नल भी लगे हैं. हालांकि, अभी लोगों की समस्‍याएं खत्‍म नहीं हुई हैं. स्‍थानीय निवासी कहते हैं, "हम वोट नहीं देंगे, सरकार हमारे लिए कुछ कर ही नहीं रही है, हम लोग गंदा पानी पीने से लोग बीमार हो रहे हैं, सड़क नहीं होने से लोगों को अस्पताल नहीं ले जा पाते हैं."  ग्रामीण श्याम कवासी बताते हैं, "कुछ दिन पहले एक महिला प्रेग्नेंट थीं, अस्‍पताल ले जाने के लिए यहां तक गाड़ी नहीं आई, चार किलोमीटर दूर बाइक पर बिठाकर ले गए. जब अस्पताल में भर्ती किया गया, तब पेट में ही बच्चा खत्म हो गया था.

अभी बहुत कुछ होना बाकी...

ट्रेंडेपारा में समस्या सिर्फ पानी की ही नहीं है. गंदा पानी पीने से आदिवासी बीमार हो रहे हैं. पौष्टिक भोजन नहीं मिलने से बच्चों पर कुपोषण का खतरा है. सड़क नहीं होने से आंगनबाड़ी जाने वाले बच्चों को भी पहाड़ी सफर तय करना पड़ता है. सरकार की उज्ज्वला योजना की लौ अब तक यहां नहीं जली. ग्रामीण श्याम व रीना ने बताया, "उज्‍ज्‍वला योजना का लाभ नहीं मिला, पिछले तीन दिन से बिजली कट है, चार महीने पहले ही बिजली पहुंची, लेकिन ज्यादातर समय कट ही रहती है. सरकारी राशन की दुकान छह किलोमीटर दूर गांव में है, चांदमेटा गांव में टोंड्रेपारा, पटेलपारा, अंडलपारा, मुड़ियामा पारा, पटनमपारा है, लेकिन सड़क, बिजली की सुविधा सिर्फ अंडलापारा और पटेलपारा में है, लेकिन कहा जाता है कि पूरे चांदामेटा की तस्वीर बदल गई जो गलत है." चुनावी माहौल में कई वादे किये जा रहे हैं... चांदामेटा को भी इंतज़ार है वायदों के हकीकत में बदलना का.

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