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नई दिल्ली:
आंखों की रोशनी में गड़बड़ी, पैरों में कमजोरी, चलने में लड़खड़ाहट, बच्चों में मोटापा, इंफेक्शन, पेशाब का रुकरुक कर आना, शरीर में विटामीन डी की कमी जैसे लक्षण मल्टीपल स्किलिरोसिस (multiple sclerosis) की तरफ इशारा करते हैं।
एक ऐसी बीमारी जिसकी होने की ठीक ठीक वजह का पता अब तक नहीं चल पाया है। एम्स ने एक रिसर्च में पाया है कि पुरुषों से ज्यादा औरतें इस बीमारी की शिकार हैं। 2 पुरुषों पर 3 औरतें इस बीमारी की चपेट में हैं। 101 लोगों के एम्स के सर्वे में 60 फीसदी औरतें इस बीमारी से पीड़ित दिखीं। लाख में से 1-3 लोग इस बीमारी के दायरे में हैं।
मल्टीपल स्किलिरोसिस (multiple sclerosis) तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारी है जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर करता है। दवाइयां तो हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस उपचार नहीं। एम्स के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि इस बीमारी में सालभर के दवाइयों का खर्च 3 से 5 लाख के बीच है। साथ ही दवाइंया लंबे समय के लिए चलती हैं। अगर शुरुआत में ही लक्षण दिखने पर टेस्ट करवाएं जाएं तो इस बीमारी के उपचार में आसानी हो जाती है।
न्यूरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर मंजरी त्रिपाठी ने कहा कि ये क्रॉनिक बीमारी में इसे शामिल जरूर किया गया है। इलाज का खर्च भी ज्यादा है और लंबे समय तक चलता है। इस बीमारी में दवाइयों का खर्च 18 से 60 हजार रुपये महीने तक का आता है। लिहाजा इस बीमारी को भी मेडिकल इंश्योरेंस की कैटगरी में ये शामिल होना चाहिए। क्योंकि हम सीधे मरीज से रूबरू होते हैं और पैसों को लेकर परेशानी हमें सीधे तौर पर दिखती है।
एक ऐसी बीमारी जिसकी होने की ठीक ठीक वजह का पता अब तक नहीं चल पाया है। एम्स ने एक रिसर्च में पाया है कि पुरुषों से ज्यादा औरतें इस बीमारी की शिकार हैं। 2 पुरुषों पर 3 औरतें इस बीमारी की चपेट में हैं। 101 लोगों के एम्स के सर्वे में 60 फीसदी औरतें इस बीमारी से पीड़ित दिखीं। लाख में से 1-3 लोग इस बीमारी के दायरे में हैं।
मल्टीपल स्किलिरोसिस (multiple sclerosis) तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारी है जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर करता है। दवाइयां तो हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस उपचार नहीं। एम्स के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि इस बीमारी में सालभर के दवाइयों का खर्च 3 से 5 लाख के बीच है। साथ ही दवाइंया लंबे समय के लिए चलती हैं। अगर शुरुआत में ही लक्षण दिखने पर टेस्ट करवाएं जाएं तो इस बीमारी के उपचार में आसानी हो जाती है।
न्यूरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर मंजरी त्रिपाठी ने कहा कि ये क्रॉनिक बीमारी में इसे शामिल जरूर किया गया है। इलाज का खर्च भी ज्यादा है और लंबे समय तक चलता है। इस बीमारी में दवाइयों का खर्च 18 से 60 हजार रुपये महीने तक का आता है। लिहाजा इस बीमारी को भी मेडिकल इंश्योरेंस की कैटगरी में ये शामिल होना चाहिए। क्योंकि हम सीधे मरीज से रूबरू होते हैं और पैसों को लेकर परेशानी हमें सीधे तौर पर दिखती है।
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