भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन के तहत चंद्रयान-3 बुधवार को पृथ्वी के इकलौते उपग्रह की पांचवी और अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर गया. यह चंद्रमा की सतह के और भी करीब आ गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि इसके साथ ही चंद्रयान-3 ने चंद्रमा तक पहुंचने की अपनी प्रक्रिया पूरी कर ली है. अब यह प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल को अलग करने की तैयारी करेगा.
इसरो ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, ‘‘आज की सफल प्रक्रिया संक्षिप्त अवधि के लिए आवश्यक थी. इसके तहत चंद्रमा की 153 किलोमीटर x 163 किलोमीटर की कक्षा में चंद्रयान-3 स्थापित हो गया, जिसका हमने अनुमान किया था. इसके साथ ही चंद्रमा की सीमा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो गई. अब प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर अलग होने के लिए तैयार हैं.''
अलग होने के बाद, लैंडर को ‘‘डीबूस्ट'' (धीमा करने की प्रक्रिया) से गुजरने की उम्मीद है, ताकि इसे एक ऐसी कक्षा में स्थापित किया जा सके; जहां पेरिल्यून (चंद्रमा से निकटतम बिंदु) 30 किलोमीटर और अपोल्यून (चंद्रमा से सबसे दूर का बिंदु) 100 किलोमीटर है.
इसरो ने कहा कि यहीं से 23 अगस्त को यान की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा. इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल में कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक लाने की प्रक्रिया है. यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में स्थानांतरित करने की क्षमता वह ‘‘प्रक्रिया है जहां हमें अपनी काबिलियत दिखानी होगी.''
उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह सुनिश्चित करना होगा कि ईंधन की खपत कम हो, दूरी की गणना सही हो और सभी गणितीय मानक ठीक हों. सोमनाथ ने कहा कि व्यापक सिमुलेशन (अभ्यास) किए गए हैं, मार्गदर्शन डिजाइन बदल दिए गए हैं. इन सभी चरणों में आवश्यक प्रक्रिया को नियंत्रित करने और उचित लैंडिंग करने का प्रयास करने के लिए बहुत सारे एल्गोरिदम लगाए गए हैं.
इसरो ने 14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद से तीन हफ्तों में चंद्रयान-3 को चंद्रमा की पांच से अधिक कक्षाओं में चरणबद्ध तरीके से स्थापित किया है. एक अगस्त को एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के तहत यान को पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की ओर सफलतापूर्वक भेजा गया.
प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलावा लैंडर और रोवर विन्यास चंद्रमा की कक्षा से 100 किलोमीटर दूर है. चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय मीट्रिक मापों का अध्ययन करने के लिए इसमें ‘स्पेक्ट्रो-पोलेरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ' (शेप) पेलोड लगा है.
चंद्रयान-3 मिशन के अब तक की प्रक्रिया से सफलतापूर्वक गुजरने पर खुशी व्यक्त करते हुए इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि 23 अगस्त को लैंडर का चंद्रमा की सतह को छूना ‘‘एक बड़ा क्षण होगा जिसका हम इंतजार कर रहे हैं.''सिवन दूसरे चंद्र मिशन के दौरान अंतरिक्ष एजेंसी का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने कहा कि चंद्रयान 2 भी इन सभी चरणों से सफलतापूर्वक गुजरा था, और लैंडिंग के दूसरे चरण के दौरान एक ‘‘मुद्दा'' सामने आया और मिशन को लक्ष्य के अनुसार सफलता नहीं मिली.
उन्होंने कहा, ‘‘अब लैंडिंग प्रक्रिया को लेकर निश्चित रूप से अधिक चिंता होगी. पिछली बार यह सफल नहीं हो सका. इस बार हर किसी को उस बेहतरीन पल का इंतजार है. मुझे यकीन है कि यह सफल होगा क्योंकि हमने चंद्रयान 2 के दौरान हुई असफलताओं को समझ लिया है.''
सिवन ने कहा, ‘‘कल की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतरिक्ष में कोई भी गतिविधि एक महत्वपूर्ण गतिविधि है. अंतरिक्ष में होने वाली कल की गतिविधि चंद्रयान-3 को दो भागों में अलग करती है, एक है प्रणोदन और लैंडर. यह यह बहुत महत्वपूर्ण है और हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह सामान्य होगा और बिना किसी समस्या के सफलतापूर्वक आगे बढ़ेगा.''
चंद्रमा के लिए भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 के परियोजना निदेशक डॉ. एम अन्नादुरई ने कहा कि प्रोपल्शन मॉड्यूल के लैंडर को अलविदा कहने के बाद, लैंडर की अपनी प्रारंभिक जांच होगी. उन्होंने कहा, ‘‘चार मुख्य थ्रस्टर्स, जो लैंडर को चंद्रमा की सतह पर आसानी से उतरने में सक्षम बनाएंगे, के साथ-साथ अन्य सेंसर का भी परीक्षण करने की आवश्यकता है. फिर यह (लैंडर) 100 किमी x 30 किमी की कक्षा में जाने के लिए अपना रास्ता बनाएगा और वहां से 23 अगस्त को सुबह-सुबह चंद्रमा पर जाने का सफर शुरू होगा.''
लैंडर में एक विशिष्ट चंद्र स्थल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता होगी जो अपनी गतिशीलता के दौरान चंद्रमा की सतह का यथा स्थान रासायनिक विश्लेषण करेगा. लैंडर और रोवर के पास चंद्रमा की सतह पर प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिक पेलोड हैं.
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