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This Article is From Apr 14, 2023

केंद्र ने नागालैंड विवाद पर 30 सैनिकों पर मुकदमा चलाने की नहीं दी अनुमति

राज्य पुलिस के अनुसार, केंद्र ने नागालैंड में दिसंबर 2021 में उग्रवाद-विरोधी अभियान में कथित रूप से शामिल 30 सैन्य कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है.

केंद्र ने नागालैंड विवाद पर 30 सैनिकों पर मुकदमा चलाने की नहीं दी अनुमति
नागालैंड में गोलीबारी में 14 स्‍थानीय युवक मारे गए थेत्र(फाइल फोटो)
गुवाहाटी:

केंद्र सरकार ने नागालैंड विवाद पर 30 सैनिकों पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी है. राज्य पुलिस के अनुसार, केंद्र ने नागालैंड में दिसंबर 2021 में उग्रवाद-विरोधी अभियान में कथित रूप से शामिल 30 सैन्य कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है, जिसमें 14 स्‍थानीय युवक मारे गए थे. नागालैंड के मोन जिले में गोलीबारी की जांच करने वाले नागालैंड विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दायर चार्जशीट में सेना के लोगों का नाम लिया गया था. नागालैंड पुलिस ने एक बयान में कहा, "सक्षम प्राधिकारी (सैन्य मामलों के विभाग, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) ने सभी 30 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है."

पुलिस ने बृहस्‍पतिवार को कहा कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के मंजूरी से इनकार के बारे में एक अदालत को बता दिया गया है. 4 दिसंबर, 2021 को, भारतीय सेना के 21 पैरा स्पेशल फोर्स के सैनिकों की मोन जिले के तिरु-ओटिंग क्षेत्र में छह स्थानीय कोयला खनिकों से मुठभेड़ हुए थी, जिसमें वे मारे गए थे. खनिकों को ले जा रहे पिकअप ट्रक पर गोली चलाने वाले सैनिकों ने दावा किया कि यह गलत पहचान का मामला था. घटना के तुरंत बाद, गुस्साए ग्रामीणों ने दो सुरक्षा वाहनों में आग लगा दी, जिससे सुरक्षा बलों ने एक और दौर की गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें कम से कम सात ग्रामीणों और एक सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई. तनाव और विरोध के बीच अगले दिन मोन कस्बे में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक और नागा युवक मारा गया.

नागालैंड पुलिस प्रमुख की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने इस घटना की जांच की और 24 मार्च, 2022 को सेना के जवानों पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मांगी. एसआईटी ने 30 मई, 2022 को अदालत में अपनी चार्जशीट में 21 पैरा स्पेशल फोर्सेज के 30 कर्मियों के नाम पेश किए थे. उनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास और सबूत नष्ट करने के आरोप शामिल थे. एसआईटी ने कहा कि खनिकों को "मारने के स्पष्ट इरादे से गोली चलाई गई."

बता दें कि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) सहित विभिन्न कानूनों के तहत कर्तव्यों का निर्वहन करते समय सुरक्षा बलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए केंद्र की कानूनी मंजूरी की आवश्यकता होती है, जो अशांत क्षेत्रों में बलों को व्यापक अधिकार देता है. सेना ने इस घटना की एक स्वतंत्र कोर्ट ऑफ इंक्वायरी भी स्थापित की, जिसमें दोषी पाए गए किसी के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया गया. हालांकि, सेना ने कहा कि वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकती, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है.

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