केन्द्र सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि 2012 में केरल तट से दूर समुद्री क्षेत्र में दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी इटली के दो मरीन के खिलाफ समुद्री लुटेरे निरोधक कानून एसयूए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। इस कानून के तहत अधिकतम मौत की सजा हो सकती है।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने कहा कि इटली के दो मरीन के खिलाफ एसयूए कानून लगाए जाने के मसले को भारत और इटली ने सुलझा लिया है और अब कानून मंत्रालय की राय के अनुसार ही आगे बढ़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि कानून मंत्रालय के अनुसार, इस मामले में यह कानून लागू नहीं किया जा सकता है।
लेकिन अब इतालवी सरकार ने केन्द्र के खिलाफ नया मोर्चा खोलते हुए इस मामले की जांच करने के राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दे डाली है। इटली सरकार का दावा है कि भारतीय दंड संहिता के तहत होने वाले अपराध की जांच यह एजेंसी नहीं कर सकती है।
इटली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि एसयूए और एनआईए एक साथ नहीं चल सकते हैं और यह जांच एजेंसी इस प्रकरण की जांच नहीं कर सकती है।
केन्द्र सरकार ने इस तर्क का विरोध करते हुए कहा कि अदालत के निर्देश पर एनआईए किसी भी मामले की जांच कर सकती है।
न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद इस मसले का निबटारा करने पर सहमति व्यक्त की और इटली सरकार को एक सप्ताह के भीतर अर्जी दायर करने का निर्देश दिया। इसके बाद एक सप्ताह में केन्द्र अपना जवाब दाखिल करेगा।
न्यायालय इटली के दो मरीन पर आतंकवाद निरोधक एसयूए कानून लगाये जाने के खिलाफ इतालवी सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इटली सरकार का तर्क है कि यह शीर्ष अदालत के आदेश के खिलाफ था, जिसने समुद्री क्षेत्र कानून, भारतीय दंड संहिता, अपराध दंड संहिता और यूएनसीएलओएस के तहत ही कार्यवाही की अनुमति दी थी।
इटली के राजदूत डैनियल मैनसिनी और दोनों मरीन मैसीमिलियानो लटोरे तथा सल्वाटोर गिरोने ने याचिका दायर करके इस मामले की कार्यवाही तेज करने या फिर दोनों मरीन को आरोप मुक्त करने का अनुरोध किया था।
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