केंद्र सरकार ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की चुनौतियों से निपटने, मंत्रालयों में समन्वय स्थापित करने, नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने और प्रभावी परियोजना प्रबंधन के लिए एक ओवरसाइट कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी का कार्यकाल दो साल होगा.
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अगले वर्ष पूरा होने की उम्मीद है, जब भारत आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा. परियोजना के हिस्से के रूप में संसद भवन और मंत्रालय के कार्यालयों सहित कई सरकारी भवनों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के एक आदेश में कहा गया है, "जैसे-जैसे परियोजना आगे बढ़ रही है, उसके कार्यान्वयन में जटिलताएं बढ़ने की संभावना है. इसके अलावा, सांस्कृतिक स्थानों के विकास और विभिन्न हितधारकों के बीच निर्बाध समन्वय सहित परियोजना से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता होगी. तदनुसार, एक ओवरसाइट कमेटी स्थापित की गई है."
ओवरसाइट कमेटी को अपेक्षानुसार कार्यालय आवास, सचिवीय सहायता आदि आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय उपलब्ध कराएगा. मंत्रालय ने बताया कि पांच सदस्यीय समिति समय-समय पर मिलेगी और प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य की स्वतंत्र समीक्षा और निगरानी करेगी. समिति समय-समय पर अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी.
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पूर्व वित्त सचिव रतन पी. वटल की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय कमेटी यह सुनिश्चित करेगी कि विभिन्न परियोजना कार्यों का निर्बाध एकीकरण हो और प्रोजेक्ट समय सीमा के अंदर पूरी हो. कमेटी लागत के संबंध में भी उचित कार्य करेगी. कमेटी को यह भी सुनिश्चित करना है कि काम की गुणवत्ता में उच्च मानकों को बनाए रखा जाए.
मंत्रालय के आदेश के अनुसार, डिप्टी कैग पी. के. तिवारी, एल एंड टी के पूर्व निदेशक शैलेन्द्र रॉय, आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर मौसम और मंत्रालय के संयुक्त सचिव को भी समिति में शामिल किया गया है. बता दें कि 20,000 करोड़ की लागत वाली सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में संसद भवन के पास के 3.2 किमी लंबे हिस्से का पुनर्निर्माण शामिल है, जिसे अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता से पहले डिजाइन किया गया था.
सेंट्रल विस्टा के पुन:विकास में नये संसद भवन और एक साझा सचिवालय का निर्माण, राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे राजपथ का सौंदर्यीकरण, प्रधानमंत्री के लिए नये कार्यालय और आवास का निर्माण और उपराष्ट्रपति के लिए नया एन्क्लेव शामिल है. इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थीं जिसे दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.
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