नोटबंदी पर केंद्र सरकार का फैसला सही, सुप्रीम कोर्ट ने 6 अहम सवालों के दिए जवाब

केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 को अचानक देश में नोटबंदी लागू की थी. इसके तहत 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. इस फैसले के बाद पूरे देश को नोट बदलवाने के लिए लाइनों में लगना पड़ा था. नोटबंदी के फैसले के खिलाफ 58 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया.

नोटबंदी पर केंद्र सरकार का फैसला सही, सुप्रीम कोर्ट ने 6 अहम सवालों के दिए जवाब

केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 को अचानक देश में नोटबंदी लागू की थी. इसके तहत 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. इस फैसले के बाद पूरे देश को नोट बदलवाने के लिए लाइनों में लगना पड़ा था. नोटबंदी के फैसले के खिलाफ 58 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. 5 न्यायमूर्तियों की बेंच में 4 ने बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला दिया. वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय अलग रही.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी की घोषणा से पहले छह महीने तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार के बीच परामर्श हुआ था. गौरतलब है कि अदालत ने कहा कि यह "प्रासंगिक नहीं" है कि क्या रातोंरात प्रतिबंध का उद्देश्य हासिल किया गया था.

 सुप्रीम कोर्ट के फैसले अहम बातें:-

1.  क्या बैंक नोटों की सभी श्रृंखलाओं का केंद्र विमुद्रीकरण कर सकता है?
आदेश: केंद्र की शक्ति को केवल "एक" या "कुछ" बैंक नोटों की श्रृंखला के विमुद्रीकरण तक सीमित नहीं किया जा सकता है. इसके पास बैंक नोटों की सभी श्रृंखलाओं के लिए ऐसा करने की शक्ति है.

2. विमुद्रीकरण के लिए आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) अधिनियम के तहत एक अंतर्निहित सुरक्षा है?
आदेश: आरबीआई अधिनियम अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल के लिए प्रदान नहीं करता है. एक अंतर्निहित सुरक्षा है कि केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए. इसलिए इसे गिराया नहीं जा सकता है.

3. निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई दोष नहीं?
आदेश: 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना में निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है.

4. विमुद्रीकरण अधिसूचना आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट करती है. अदालत ने आकलन किया कि क्या नकली मुद्रा और काले धन को जड़ से खत्म करने और औपचारिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने जैसे उद्देश्यों से निपटने के लिए नोटबंदी ही एकमात्र विकल्प था?
आदेश: निर्णय आनुपातिकता की कसौटी पर खरा उतरता है और उस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है. आनुपातिकता के परीक्षण का अर्थ उद्देश्य और उस उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले साधनों के बीच एक "उचित लिंक" है. 
5. नोट बदलने के लिए 52 दिन अनुचित नहीं?
इस सवाल पर कि इसके लिए लोगों को समय नहीं दिया गया, कोर्ट ने कहा, ''लोगों को नोट बदलने के लिए 52 दिन का समय दिया गया. हमें नहीं लगता कि यह कहीं से भी गलत है.''

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6. आरबीआई एक निश्चित अवधि के बाद बैंकों को विमुद्रीकृत नोटों को स्वीकार करने का निर्देश नहीं दे सकता था?असहमति जताने वाले जज जस्टिस बीवी नागरथना ने केंद्र द्वारा शुरू की गई नोटबंदी को "दूषित और गैरकानूनी" कहा, लेकिन कहा कि यथास्थिति को अब बहाल नहीं किया जा सकता है. न्यायाधीश ने कहा कि इस कदम को संसद के एक अधिनियम के माध्यम से क्रियान्वित किया जा सकता था.