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समय की मांग, सियासी जरूरत... जानें, मोदी सरकार क्‍यों कराने जा रही जाति जनगणना?

भारत में जनगणना 1871 से नियमित रूप से होती रही. पहली पूर्ण जनगणना 1881 में हुई थी. आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन में जाति डेटा जुटाया गया था. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली:

जाति जनगणना पर मोदी सरकार ने मास्टर स्ट्रोक चल दिया है. सड़क से लेकर संसद तक सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर थी. बुधवार को सरकार ने एक ऐलान से इस घेराबंदी को तोड़ दिया. अब अगली जनगणना होगी तो जाति पूछी जाएगी. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद जैसी ही इसकी जानकारी दी, सियासी हलचल मच गई.  कांग्रेस, आरजेडी समेत विपक्षी नेता इसे अपनी जीत बता रहे हैं. तेजस्वी यादव ने कहा- यह लालू प्रसाद यादव की जीत है. अगली लड़ाई अब आरक्षण की लाइन आगे खींचने की है. वहीं बिहार में बीजेपी ऑफिस में भी जश्न है. बीजेपी बिहार चुनाव से पहले इसे अपनी जीत ना रही है. पार्टी को लगता है जाति जनगणना के फैसले से विधानसभा चुनाव में अजेय बढ़त तय है. नीतीश खुश हैं. उन्होंने पीएम मोदी को शुक्रिया कहा है. जानिए जाति जनगणना के फैसले पर किसने क्या कहा है... 

जाति जनगणना समय की जरूरत क्यों?

  • बीजेपी के लिए जाति जनगणना समय की मांग है. मोदी सरकार की नीति 'सबका साथ, सबका विकास' की रही है. पिछले काफी समय से विपक्ष की पार्टियां जातियों में असमानताओं का मुद्दा उठाती रही है. ये सवाल उठता रहा है कि कुछ जातियों के साथ न्‍याय नहीं हो रहा है.
  • जातियों के अंदर सामाजिक और आर्थिक आधार पर कितनी असमानता है, यह पहचानने और संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने में मदद करता है. पॉलिसी बनाने में सरकार को मदद मिलती है. मौजूदा रिजर्वेशन पॉलिसी में बदलाव के लिए डेटा मिलता है. साथ ही संसाधन आवंटन और कल्याणकारी योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करेगा.  
  • बिहार की 2023 की जाति जनगणना से पता चला कि 84% आबादी OBC, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), और SC से संबंधित है. 

सियासी जरूरत जाति जनगणना 

जाति जनगणना इस समय बीजेपी की सियासी जरूरत भी नजर आती है. दरअसल, विपक्ष लगातार जाति जनगणना के मुद्दे को उठा रहा था. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संसद में भी जाति जनगणना का मुद्दा उठाया था. कांग्रेस ने ऐसा कर अपने इरादे साफ कर दिये थे कि वो जाति जनगणना के मुद्दे को आगामी बिहार चुनाव में भी उठाएगी. लेकिन विपक्ष के इस मुद्दे पर हमले की हवा मोदी सरकार ने निकाल दी है. जाति जनगणना कराने के फैसले से बिहार चुनाव में बीजेपी को यकीनन बढ़त मिलेगी. नीतीश सरकार बिहार में पहले ही जातिगत सर्वे करा चुकी है. इसके बाद यहां विपक्षी पार्टियां जाति जनगणना कराने की लगातार मांग कर रही थीं. इसकी मांग बीजेपी के सहयोगी दल जेडीयू, एलजेपी (पासवान) भी करते रहे थे. अब ये मुद्दा विपक्षियों के हाथों से छीन लिया है. जाति जनगणना को बीजेपी की पहचान में बदलाव की अगली बड़ी कड़ी के रूप में भी देखा जा रहा है. बीजेपी का वोट बैंक आज किसी एक जाति से जुड़ा नहीं है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले वोट प्रतिशत को देखें, तो यह बात साफ नजर आती है.    

  
जानें सरकार ने इस पर क्या-क्या कहा 

  • कांग्रेस ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है.
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2010 में संसद में कहा था कि इस पर विचार किया जाएगा, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. केवल एक सर्वेक्षण करा दिया गया. 
  • विपक्ष के इंडी गठबंधन के नेताओं ने अपने फायदे के लिए जाति जनगणना के मुद्दे का इस्तेमाल किया.
  • कई राज्यों ने जातियों की गणना की है, लेकिन यह केंद्र की सूची का विषय है. कई राज्यों ने यह काम अच्छे से किया, लेकिन कुछ में यह कार्य गैर-प्रामाणिक तरीके से किया गया.

केंद्र सरकार ने पहले जाति जनगणना से इनकार किया था. मोदी सरकार ने 2021 में संसद में कहा था कि ओबीसी की जनगणना करने की कोई योजना नहीं है. 2018 में मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2021 की जनगणना में पहली बार ओबीसी का डेटा इकट्ठा किया जाएगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ था.

जाति जनगणना क्या है

-जाति जनगणना में भारत की आबादी की गिनती जाति की कैटिगरी में बांटकर की जाती है. 
-अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की गिनती 1951 से हर जनगणना में की जाती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और उप-जातियों का डेटा जारी नहीं किया गया. इससे पॉलिसी बनाने में एक गैप आया. 

जाति जनगणना का इतिहास

भारत में जनगणना 1871 से नियमित रूप से होती रही. पहली पूर्ण जनगणना 1881 में हुई थी. आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन में जाति डेटा जुटाया गया था. 

संविधान क्या कहता है? 
हमारा संविधान भी जाति जनगणना के पक्ष में है. अनुच्छेद 340 सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तबकों की स्थिति की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त करने और उसकी सिफारिशों पर अमल की बात कहता है. 

  • 1961 से 2001 तक की जनगणना में सरकारें जाति जनगणना से बचती रहीं.
  • 2011 की जनगणना में पहली बार जाति आधारित डेटा (सामाजिक-आर्थिक जाति) जुटाया गया, लेकिन इसे पब्लिक नहीं किया गया.  
  • 1931 की जनगणना रिपोर्ट में कुल 4147 जातियां थीं.  
  • 1941 की जनगणना में जाति जनगणना की गई, लेकिन इसे पब्लिश नहीं किया गया.  
  • आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना में हुई. यह ब्रिटिश शासन की जनगणना से पूरी तरह अलग थी. सर्वे का तरीका भी बदला गया.
  • 1980 के मंडल आयोग की रिपोर्ट 1931 की जनगणना पर आधारित था.  
  • 2011 की जनगणना में 46 लाख जातियां मिली थीं.
  • 2021 में होने वाली जनगणना कोरोना के कारण टल गई थी. यह अभी तक शुरू नहीं हो सकी है.

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