
मोदी कैबिनेट ने बुधवार को जाति जनगणना को मंजूरी दे दी है. मोदी कैबिनेट के इस फैसले को ऐतिहासिक माना जा रहा है और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा इसका ऐलान किया गया है. बता दें कि 1947 के बाद से देश में जाति जनगणना नहीं हुई है. वैष्णव ने इसकी घोषणा करते हुए बताया था कि पीएम मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने यह फैसला किया है कि आगामी जनगणना में जाति गणना को भी शामिल किया जाए. हालांकि, इस फैसले को सच करते हुए और इस दिशा में आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है. तो असल में यह चुनौतियां क्या होंगी इस बारे में आपको डीटेल में बताते हैं.
- सबसे पहली चुनौती सरकार के सामने प्रपोशनल रीप्रिजेंटेशन को लेकर होगी.
- विपक्ष की कई पार्टियों की ओर से जाति जनगणना कराए जाने को लेकर कहा जा रहा था. कांग्रेस पिछले काफी वक्त से जाति जनगणना के लिए सरकार पर दबाव बनाती आ रही है.
- सभी सेक्टर के लिए ये एक पेंडोरा बॉक्स के खुलने जैसा है और इसका असर कई सेक्टर्स पर भी हो सकता है.
- कई जातियों के लोग कर सकते हैं आरक्षण की मांग.
दरअसल, सेंसस डेटा को लेकर सबसे पहले प्रेशर इसके प्रपोशनल रीप्रिजेंटेशन को लेकर होगा. यहां बता दें कि यह एक अलग किस्म की राजनीति है और इसकी शुरुआत 90 के दशक में हुई थी. मंडल कमीशन द्वारा जाति जनगणना कराए जाने की सलाह दी गई थी. साथ ही इस फैसले का सबसे पहला असर बिहार में जल्द होने वाले चुनावों में देखने को मिलेगा.
इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर या फिर प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन आदि सभी सेक्टर्स में भी प्रपोशनल रीप्रिजेंटेशन की मांग सामने आ सकती है. माना जा रहा था कि शायद जाति जनगणना की घोषणा नहीं होगी लेकिन अब आख़िरकार केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा की है तो उन्हें आगे चलकर इसमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
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