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This Article is From Jan 28, 2024

Analysis: बिहार में BJP का 'मिशन-40', नई सरकार के जरिए 'मंडल-कमंडल' के समीकरण को साधने की तैयारी

JDU के बीजेपी के साथ आने के बाद बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण पर भी एनडीए गठबंधन की मजबूत पकड़ हो गयी है. जानकारों का मानना है कि जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान जैसे नेता अगर एनडीए के साथ बने रहते हैं तो एनडीए का वोट शेयऱ 60 प्रतिशत के पार पहुंच सकता है.

Analysis: बिहार में BJP का 'मिशन-40', नई सरकार के जरिए 'मंडल-कमंडल' के समीकरण को साधने की तैयारी
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) से पहले रविवार को बीजेपी को एक बड़ी सफलता हाथ लगी. राजनीति की पाठशाला कहे जाने वाले बिहार की सत्ता में एक बार फिर बीजेपी की धमाकेदार एंट्री हो गयी है. पिछले एक साल से लंबे समय से बीजेपी के लिए बिहार की राजनीति देशस्तर पर एक चुनौती बनती जा रही थी. बिहार में पिछली राजद-जदयू (RJD-JDU) सरकार द्वारा करवाए गए जातिगत सर्वे के बाद पूरे देश भर में इसकी मांग तेज हो गयी थी. 

बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति के खिलाफ कांग्रेस सहित अन्य दलों की तरफ से जातिगत प्रतिनिधित्व की राजनीति को बढ़ाने की मांग तेज हुई थी. जिसका असर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में देखने को भी मिला था. कई अन्य राज्यों में भी इसे मुद्दा बनाया जा रहा था. 

BJP ने एक झटके में विरोधियों को कर दिया चित
कर्नाटक चुनाव के बाद ऐसा माना जा रहा था कि बिहार में हुए जातिगत सर्वे को आधार बनाकर विपक्षी दल बीजेपी को लोकसभा चुनाव में घेरेंगे. हालांकि जातिगत सर्वे करवाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए में एंट्री के साथ ही विपक्षी दलों के हाथ से यह एक बड़ा मुद्दा बहुत हद तक दूर चला गया है. साथ ही कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर बीजेपी ने बिहार के जातिगत गणित को साधने की भी कोशिश की है. नीतीश की एंट्री के बाद अतिपिछड़ा मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर बीजेपी गठबंधन की एंट्री बेहद सहज दिख रही है. जो कुछ समय पहले तक बीजेपी के लिए एक मुश्किल टास्क दिख रहा था. 

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मंत्रिमंडल में बीजेपी वाले सोशल इंजीनियरिंग का रखा गया ध्यान
रविवार को मंत्रिपरिषद में शपथ लेने वालों मंत्रियों में जातीय अंकगणित का पूरा ध्यान रखा गया. साथ ही बीजेपी के हिंदुत्व फर्स्ट की नीतियों को भी ध्यान रखने का प्रयास किया गया. नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियारिंग काफी चर्चित रही है लेकिन इस बार इसमें बीजेपी का हस्तक्षेप भी देखने को मिला. नीतीश के कैबिनेट में पहले दिन किसी मुस्लिम मंत्री ने शपथ नहीं ली.

हालांकि जातिगत सर्वे में यादव के बाद सबसे अधिक आबादी वाली जातियों में प्रमुख ओबीसी जाति कोईरी जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया.  वहीं बीजेपी के कोर वोटर रहे भूमिहार समुदाय से विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. साथ ही एक अन्य नेता विजय चौधरी को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गयी.

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यादव समाज से विजेंद्र यादव, कुर्मी समाज से नीतीश कुमार के अलावा श्रवण कुमार. दलित प्रतिनिधित्व के नाम पर संतोष कुमार सुमन. राजपूत समाज से सुमित सिंह को जगह दी गयी है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, नीतीश कुमार मंत्रिमंडल को अंतिम रूप देते समय राजग के सहयोगी दलों के शीर्ष नेताओं ने बेहतर जातीय संतुलन बनाया है.

नीतीश कुमार के कैबिनेट में पहले दिन 8 में से तीन मंत्री लगभग 40 प्रतिशत सवर्ण समाज से बनाए गए हैं. हालांकि बिहार जातिगत सर्वे में हिंदू सवर्णों की आबादी लगभग 12 प्रतिशत ही बतायी गयी थी. इससे साफ होता है कि बीजेपी जदयू गठबंधन की तरफ से जातिगत जनगणना के जैसे मुद्दों को दूर रखने की कोशिश हुई है. और पुराने सोशल इंजीनियरिंग को तरजीह दी गयी है.

जदयू के आने के बाद कितना बदला समीकरण
जनता दल यूनाइटेड के बीजेपी के साथ आने के बाद बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण पर भी एनडीए गठबंधन की मजबूत पकड़ हो गयी है. जानकारों का मानना है कि जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान जैसे नेता अगर एनडीए के साथ बने रहते हैं तो एनडीए का वोट शेयऱ 60 प्रतिशत से पार पहुंच सकता है. यादव और मुस्लिम ही राजद के आधार वोटर माने जाते हैं. उनकी आबादी लगभग 31 प्रतिशत के आसपास ही दिखती है. इसके अलावा अभी के समय में राजद और कांग्रेस के साथ किसी बड़े जातिगत समूह के नेताओं की गोलबंदी नहीं देखने को मिल रही है.

पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए को लगभग 53 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में जदयू की एंट्री के बाद एनडीए का मिशन 40 बहुत हद तक करीब दिखता है. हालांकि किशनगंज, कटिहार और अररिया जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की भारी संख्या है. ऐसे में इन क्षेत्रों के लिए एनडीए को अभी अलग रणनाति बनानी होगी.

एनडीए के सामने क्या हैं चुनौती?
नीतीश कुमार की एनडीए में एंट्री के साथ ही एनडीए में सीट बंटवारे की चुनौती भी उभरकर सामने आ गयी है. 40 सीटों वाले राज्य में अभी एनडीए के पास 39 सीटें हैं. बीजेपी के पास 17, जदयू के पास 16 और लोजपा के पास 6 सीटें हैं. हालांकि लोजपा में विभाजन के बाद दोनों गुटों की तरफ से 6-6 सीटों का दावा होता रहा है. इसके अलावा नीतीश कुमार की सरकार का हिस्सा जीतन राम मांझी की पार्टी भी कम से कम 2 सीटों पर दावा कर रही है. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी 3 सीटों की मांग करती रही है. ऐसे में सभी दलों को सीट देकर संतुष्ट कर पाना बेहद कठिन माना जा रहा है. इसके साथ ही बीजेपी गठबंधन को नीतीश कुमार की तेजी से कम होती विश्वसनीयता के मुद्दे से भी 2-4 होना होगा. 

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2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिली थी कड़ी टक्कर
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को प्रचंड जीत मिली थी. हालांकि उसके ठीक डेढ़ साल बाद ही हुए बिहार विधानसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन ने कड़ी टक्कर दी थी. उस समय भी एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बनी थी. जिसके बाद चिराग पासवान की पार्टी लोजपा ने जदयू के खिलाफ सभी सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया था. लोजपा उम्मीदवारों के कारण नीतीश कुमार की पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. साथ ही तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुए आक्रामक प्रचार के कारण राजद को अच्छी सफलता मिली थी. 

वामदल और राजद गठबंधन है बेहद संतुलित
बिहार की राजनीति के इतिहास को अगर देखें तो लंबे समय तक बिहार की राजनीति में जिन मुद्दों के लिए वाम दल लड़ाई लड़ते रहें उन्हें ही लालू प्रसाद की एंट्री के बाद पहले जनता दल ने और बाद में राजद ने साधा. ऐसे में राजद और वामदलों का गठबंधन वैचारिक तौर पर काफी सहज माना जाता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन के उम्मीदवारों को बिहार में अच्छी सफलता मिली थी. हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव हार गए थे. ऐसे में जातिगत समीकरण से इतर वैचारिक समीकरण में बीजेपी को इस गठबंधन से ग्राउंड पर कड़ी टक्कर मिल सकती है. 

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