65 फीसदी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बिहार सरकार को बड़ा झटका लग चुका है. अब सुप्रीम कोर्ट वंचित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण से जुड़ी हुई राजद नेता तेजस्वी यादव की याचिका पर सुनवाई करेगा. हाई कोर्ट ने वंचित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के कानून को रद्द कर दिया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए कहा था कि अंतिम सुनवाई सितंबर में होगी.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली RJD का कहना है कि तमिलनाडु की तर्ज पर बिहार में भी आरक्षण की व्यवस्था लागू हो और इसे नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि न्यायपालिका के समक्ष किसी तरह की चुनौती न आए. दरअसल बिहार सरकार को बड़ा झटका देते हुए पटना हाईकोर्ट ने पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 50 से 65 प्रतिशत तक बढ़ाने के फैसले को 20 जून को रद्द कर दिया.
पटना हाई कोर्ट मेंं इस मामले में क्या हुआ
पटना हाई कोर्ट ने 2023 में बिहार विधानसभा द्वारा पारित संशोधनों को खारिज करते हुए कहा कि वे संविधान की शक्तियों से परे हैं और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता खंड का उल्लंघन करते हैं. बिहार विधानसभा ने 2023 में आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया था. जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद प्रदेश सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित वर्गों के लिए कोटा दिए जाने का मुद्दा उठाया था. फ़िलहाल विपक्ष मे बैठी RJD ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जबकि बिहार सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट मे फैसले को चुनौती दे चुकी है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि सुप्रीम ने इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर नोटिस जारी किया था
राजग जाति जनगणना और आरक्षण के खिलाफ
तेजस्वी यादव ने रविवार को आरोप लगाया कि केंद्र और बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार जाति जनगणना और आरक्षण के खिलाफ हैं. यादव ने कहा कि इस तरह की गणना “एक्स-रे की तरह” है, जो विभिन्न जाति समूहों की आबादी और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाती है. उन्होंने पटना में राजद कार्यालय में एक धरने का नेतृत्व करते हुए कार्यकर्ताओं से यह बात कही. पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यादव ने जनता दल (यूनाइटेड) से बिहार में वंचित जातियों के लिए बढ़ाए गए आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग पर उसका रुख जानना चाहा.
केंद्र और राज्य सरकार को भी घेरा
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता ने कहा, “बिहार में महागठबंधन प्रशासन ने पिछले साल केंद्र से राज्य सरकार की नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के फैसले को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया था. लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया. केंद्र और राज्य की राजग सरकारें समाज के वंचित वर्ग के लिए आरक्षण और जाति जनगणना के खिलाफ हैं.” उन्होंने कहा, “मैं यह कहना चाहूंगा कि जाति जनगणना एक एक्स-रे की तरह है, जो देश के विभिन्न जाति समूहों की जनसंख्या और गरीब तबके की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाएगी.”
आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
राजद ने पूरे राज्य में धरने आयोजित किए और बढ़े हुए आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने तथा देशव्यापी जाति जनगणना लागू करने की मांग की. संविधान की नौवीं अनुसूची केन्द्रीय और राज्य कानूनों की सूची है जिन्हें अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती. यादव ने पूछा, “मैं जद(यू) नेताओं से बस एक सवाल पूछता हूं, उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि वे इसे नौवीं अनुसूची में डालने के पक्ष में हैं या नहीं. अगर हां, तो राजग का हिस्सा होने के बावजूद वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं? और अगर नहीं, तो उन्हें यह बात जरूर कहनी चाहिए. मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? उन्हें क्या हो गया है?”
उन्होंने आरोप लगाया, “बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न मिलने पर जद(यू) के नेता खुश थे. बिहार के समग्र विकास में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.” यादव की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए जदयू प्रवक्ता संजय कुमार झा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने यह सुनिश्चित किया कि राज्य में जाति सर्वेक्षण हो. उन्होंने कहा, “उन्होंने इस संबंध में सभी सकारात्मक कदम उठाए. बिहार में विपक्षी नेता वही लोग हैं जिन्होंने सत्ता में रहने के दौरान पंचायतों में आरक्षण तक नहीं दिया.”
(भाषा इनपुट्स के साथ)
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